मनोज श्रीवास्तव/लखनऊ। यूपी में विधानसभा व विधानपरिषद के सभी प्रतिनिधियों के वेतन से न सिर्फ 30% की कटौती होगी बल्कि विधायकों को स्वविवेक से खर्च करने वाली विकास निधि भी दो वर्ष के लिये स्थगित हो जायेगी।भ्रष्टाचार के दुश्मन यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पास मौका भी अच्छा है। सूत्रों के अनुसार तबलीगी जमात की जाहिलियत के कारण कोरोना संक्रमण से जूझ रही यूपी सरकार शीघ्र ही केंद्र सरकार की भांति प्रदेश के सभी विधायक का वेतन 30% कम करने के अध्यादेश ला सकती है। बताते हैं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने केंद्र में सांसदों के वेतन का 30% काटने का अध्यादेश लाया है। योगी ने केंद्र सरकार के इस फैसले का स्वागत किया है।केंद्र के फैसले की कॉपी मिलने के बाद इस पर यूपी सरकार भी निर्णय करेंगी।इसके पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सभी विधायकों की विधायक निधि एक साल के लिये सस्पेंड कर दिया है। यूपी में इसी बजट सत्र 2020-21 में प्रदेश के विधानसभा में सर्वमत से प्रस्ताव पारित हुआ था कि विधायक निधि ढाई करोड़ से तीन करोड़ किया जाय। तीन करोड़ कौन कहे उनको जो ढाई करोड़ मिल रहा था। यदि कहीं यह दो वर्ष के लिये स्थगित कर दिया गया तो विधानसभा सदस्यों की मुसीबत बढ़ जायेगी। विधानसभा सदस्यों ने अपने 5 वर्षीय कार्यकाल का तीन वर्ष पूरा कर लिया, कोरोना से निपटने के लिये अधिकांश ने अपनी निधि का एक करोड़ रुपया और एक माह का वेतन मुख्यमंत्री कोष में दे दिया है। जानकार बताते हैं कि ऐसे में यदि निधि बंद हुई तो विधायक निधि की राजनीति और कथित भ्रष्टाचार दोनों समाप्त हो जाएगा। साथ ही विधायकों के दिखावा वाले रुतबे में कमी आ जायेगी। इसका कटौती से पैसा आयेगा उसे कोविड 19 की महामारी से बचाव के लिए उपयोग किया जायेगा। मोदी सरकार ने आ सुबह सभी सांसदों की 30% सैलरी कम करने के अध्यादेश को मंजूरी दिया हैं। माना जा रहा है कि राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और राज्यपाल अपनी स्वेच्छा से अपनी सैलरी का 30% भुगतान लेंगे।हालांकि गुजरात की रहने वाली यूपी की राज्यपाल ने सोमवार को ही पत्र लिख कर भेज दिया था कि वह एक साल तक अपने वेतन का 30% कम वेतन लेंगी। यूपी के विपक्षी दलों ने भी अभी तक कोई आपत्ति नहीं किया है।