अमेरिका की नजर में भारत

अमेरिका की नजर में भारत


अमेरिकी प्रशासन ने यह घोषणा की है कि वह दायरे से बाहर रखा जायेगा। वह चाबहार बंदरगाह इस बात की रत्ती भर परवाह नहीं की कि कुछ ही भारत का नाम उस सूची से हटा रहा है, जिसके सदस्यों नवनिर्माण की परियोजना में काम जारी रख सकता है, महीनों में भारत में चुनाव होने जा रहे हैं और प्रधानमंत्री को उस देश के साथ व्यापार करने में कुछ रियायतेंबशर्ते वह ईरान से तेल आयात में कटौती करने को मोदी की राजनयिक उपलब्धियों की चमक उसके इस सहूलियतें दी जाती हैं । यह अनुमान लगाया जा रहा हैराजी हो जाये। अमेरिका के संधिमित्र सऊदी अरब ने फैसले से अचानक घट जायेगी। अमेरिका के ताकतवर कि हमें इससे होनेवाले घाटे की रकम साढ़े पांच अरब तत्काल भरोसा दिलाया कि वह भारत को तेल संकट राष्ट्रपति के साथ भारत के ताकतवर प्रधानमंत्री के डॉलर की धनराशि के आसपास होगी। यह रकम बहुत से बचायेगा और अधिक मात्रा में तेल सुलभ करायेगा। व्यक्तिगत संबंधों की विशेषता का प्रचार जोर-शोर से बड़ी नहीं, परंतु जिस समय यह फैसला किया गया है, उल्लेखनीय है कि भारत ने अपने स्वाभिमान की रक्षा भारत में किया जाता रहा हैपर्यावरण का संकट हो वह निश्चय ही अप्रत्याशित तथा क्लेशदायक है। करते हुए अमेरिका की चाहत पूरी करने का प्रयास अथवा अफाानिस्तान में अराजकता-अस्थिरता के क्योंकि, पुलवामा हमले के बाद भारत यह आशा कर किया है। ईरान के साथ अपने पारंपरिक मैत्रीपूर्ण निवारण में अमेरिका के उस देश से लौटने के बाद रहा था कि उसका नया सामरिक साझीदार उसकी संबंधों को संकटग्रस्त करते हुए हमने अंतरराष्ट्रीय मंच भारत की भूमिका, हम यह मानकर चलते रहे हैं कि संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए पाकिस्तान के पर अमेरिका के राजनयिक दिशा-निर्देशों का पालन हमारे तथा अमेरिका के राष्ट्रीय हितों में साम्य न सही, उदंड शासकों पर अंकुश लगाने में मददगार होगा। किया है। इसीलिए हमें यह बात खल रही है कि हमें कम-से-कम तात्कालिक सन्निपात तो है। ऐसे में, मेरा अमेरिका यानी ट्रंप सरकार का यह आरोप है कि भारत इस घड़ी दूध में पड़ी मक्खी की तरह निकाला जा रहा तो यही मानना है कि इस विषय में पुनर्विचार की अपने बाजार में अमेरिकी उत्पादों तथा सेवाओं के है। असलियत यह है कि ट्रंप को इस बात का एहसास जरूरत है।


 



 


यह सोचना नादानी है कि अमेरिका- ट्रंप प्रवेश के मार्ग में बाधाओं को हटाने के लिए कुछ नहीं हो चुका है कि चीन अब अमेरिकी प्रतिबंधों से राष्ट्रपति हों या कोई और- चीन तथा पाकिस्तान की कर रहा हैय उसने इस संबंध में जो भी आश्वासन दिये होनेवाले आर्थिक नुकसान को सहने के लिए कमर तुलना में भारत को अहमियत देगाअमेरिका को हैं, उनको पूरा नहीं किया है। यदि इस शिकायत का कस रहा है। उत्तरी कोरिया के नेता किम जोंग-उन का अमेरिकियों के लिए आरक्षित रखने का संकल्प ग्रहण परीक्षण करें, तो यह बात साफहोते देर नहीं लगेगी कि प्रयोग चीन ने एक ताकतवर मोहरे के रूप में बहुत करने के दिखावे से ही ट्रंप चुनाव जीते थे- उसके बाद अमेरिका की शिकायत नाजायज है। भारत के बाजार कौशल से किया है। ट्रंप ने कल्पना की थी कि शिखर से अपने आलोचकों को कमजोर करने, उनको अमेरिकी आयात से पटे हैं। देश के विकास के लिए वार्ता के जरिये वह किम को मोह लेंगे और चीन से विभाजित रखने में ट्रंप अप्रत्याशित रूप से सफल रहेजरूरी परिष्कृत तकनीक ही नहीं, विलासितापूर्ण अमेरिकी में आर्थिक मंदी के लिए जिम्मेदार हैंट्रंप अलग कर उत्तर-पूर्वी एशिया में चीन के प्रभुत्व को हैं। अब किसी भी अमेरिकी नेता या प्रशासन के लिए उपभोग की वस्तुओं के आयात पर लगे प्रतिबंध धीरे- यह स्वीकार नहीं करते कि उनके देश की कंपनियां कम करने में कामयाब होंगेयदि ऐसा होता, तो अचानक दिशा-परिवर्तन कठिन होगा। भारत को धीरे समाप्त हो चुके हैं। बैंकिंग, बीमा, मीडिया आदि तथा उद्यमी अपने लाभ-लागत को ध्यान में रखते हुए अमेरिका आज चीन पर दबाव बढ़ाने की स्थिति में प्राथमिकता देना तो दूर की बात है, दक्षिण एशियाई में अमेरिकी कंपनियां भारत में सेवाओं के निर्यात के चीन या भारत की भूमि से अपना कामकाज करते रहे होता। लग रहा है कि इस मार्चे पर ट्रंप नाकाम रहे हैं, उपमहाद्वीप में भारत और पाकिस्तान को समकक्ष मामले में भी सुविधाएं हासिल कर चुकी हैं। इस दिशा हैं। मुक्त बाजार का तर्क प्रतिपादित करनेवाला अमेरिका इसलिए तुनकमिजाज परमाणु शक्तिसंपन्न उत्तरी कोरिया समझनेवाली अमेरिकी नीति में भी कोई अंतर सुदूर में यदि और अधिक प्रगति नहीं हुई है, तो कारण यह खुद अपने जाल में उलझ रहा है, तो इसका दोष वह को अनुशासित करने के लिए अमेरिका को चीन की भविष्य में आनेवाला नहींअमेरिका भलीभांति है कि अमेरिका उभयपक्षीय व्यापार को संतुलित करने भारत के सिर नहीं मढ़ सकता। चीन के विरुद्ध तो ट्रंप ही तरफदेखना पड़ेगा। इस नतीजे तक पहुंचने के साथ समझता है कि आज भारत के पास अमेरिका को के लिए एकतरफ रियायतें चाहता है और अपने बाजार ने बाकायदा वाणिज्य युद्ध (ट्रेड वार) की घोषणा कर ही अमेरिका की नजर में भारत का 'अवमूल्यन होना संतुलित-निरस्त करने के लिए रूसी विकल्प सुलभ को ‘सुरक्षित रखने पर आमादा है। जब से ट्रंप राष्ट्रपति दी है। इससे भारत को यह गलतफहमी हुई थी कि इससे आरंभ हो जाता है। अब उस 'सामरिक चतुष्कोण' की नहीं। इसीलिए वह उभयपक्षीय आर्थिक संबंधों तथा बने हैं, उन्होंने 'अमेरिका के लिए अमेरिकी उत्पाद' होनेवाले घाटे के लिए अमेरिका भारत की तरफ देखने बात नहीं सुनी जा रही, जिसके चार प्रस्तावित कर्णधार दूरदर्शी सामरिक सहमति को अलग करने की बात वाला नारा बुलंद किया है। उनकी समझ में चीन तथा को मजबूर होगा। ईरान के खिलाफलगाये कड़े आर्थिक अमेरिका, भारत, जापान तथा ऑस्ट्रेलिया थे। हिंद- सोच सकता है। भारत के लिए पाकिस्तान के साथ भारत ने अमेरिकी कामगारों से रोजगार छीना है और प्रतिबंधों के बावजूद अमेरिका ने यह संकेत दिया था प्रशांत क्षेत्र की चर्चा भी हाशिये पर पहुंच गयी है। भारत बढ़ते तनाव के माहौल में इस जटिल चुनौती का सामना वही अपने सस्ते श्रम और आर्थिक नीतियों के कारण कि कम-से-कम कुछ समय के लिए भारत को इनके के लिए सबसे चिंताजनक बात यह है कि अमेरिका ने करना आसान नहीं।