और अब श्वेत आतंकवाद का उभार

और अब श्वेत आतंकवाद का उभार


 


न्यूजीलैंड के क्राइस्टचर्च में दो मस्जिदों पर अंधाधुंध गोलीबारी कर 50 लोगों की जान लेने की घटना ने पूरी दुनिया को स्तब्ध कर दिया है. मौत का खेल खेलने वाले श्वेत आतंकवादी ब्रेटन टैरेंट को जब कोर्ट में पेश किया गया और हत्या के आरोप तय किये गये, तो वह कोर्ट में खड़ा मुस्कुरा रहा था, उसे किसी तरह का पछतावा नहीं था । 28 वर्षीय आतंकी ब्रेटन टैरेंट ऑस्ट्रेलिया का रहने वाला है और उसने न्यूजीलैंड में इस घटना को अंजाम दिया। आतंकवादी ने महिलाओं और बच्चों को भी नहीं बख्शा। हमले में 39 लोग गंभीर रूप से घायल हो हुए हैं। इनमें से कई की हालत नाजुक है। इस हमले में बांग्लादेश की क्रिकेट टीम बाल बाल बच गयी। भारत भी इस हमले से प्रभावित हुआ है। इस आतंकवादी हमले में छह भारतीयों की मौत हो गयी है। मरने वालों में चार गुजरात के और दो हैदराबाद के हैं। हैदराबाद का एक अन्य शख्स घायल है और अस्पताल में भर्ती है। यह गंभीर चिंता का विषय है कि कई पश्चिमी मीडिया संस्थान गोरे को आतंकवादी न कह कर हमलावर बता रहे हैं। यह पश्चिमी मीडिया का घटनाओं को नस्लवादी नजरिये से देखने का नतीजा है, जबकि न्यूजीलैंड की प्रधानमंत्री जेसिंडा अर्डर्न ने शुरू में ही इसे आतंकवादी हमला करार दिया था। साथ ही इसे न्यूजीलैंड के इतिहास का सबसे काला दिन बताया था। यह हमला जुमे की नमाज के दौरान किया गया। उस दिन मस्जिद में बड़ी संख्या में लोग मौजूद रहते हैं। आतंकवादी अति दक्षिणपंथी विचारधारा से प्रभावित है और इस हमले को श्वेत राष्ट्रवाद के खतरे के उभार रूप में देखा जा रहा है। दरअसल, दुनियाभर में अब नस्ली मानसिकता तेजी से पांव पसार रही है। आतंकवादी ब्रेटन टैरेंट पर श्वेत वर्चस्व कायम करने की सनक सवार थी। राष्ट्रपति ट्रंप ने हमले की कड़ी निंदा की, लेकिन कहा कि न्यूजीलैंड की मस्जिदों में नरसंहार नहीं दर्शाता कि विश्व में श्वेत अतिवाद एक बढ़ती समस्या है। हालांकि उन्होंने स्वीकार किया कि दुनिया में एक छोटा समूह है, जो श्वेत अतिवाद का पक्षधर है। टैरेंट ने इस आतंकवादी हमले के पहले एक घोषणापत्र तैयार किया, जिसमें उसने यूरोपीय नागरिकों की आतंकवादी हमलों में गयी जान का बदला लेने के साथ-साथ श्वेत वर्चस्व को कायम करने के लिए अप्रवासियों को बाहर निकालने की बात की है। आतंकी ने अपना एक घोषणापत्र श्दि ग्रेट रिप्लेसमेंटश् तैयार किया, जिसमें उसने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप को श्वेत पहचान का प्रतीक बताया है। आतंकवादी ने लिखा है कि आक्रमणकारियों को दिखाना है कि हमारी जमीन कभी उनकी जमीन नहीं होगी। वे कभी हमारे लोगों का स्थान नहीं ले पायेंगे। श्वेत आतंकवादी ने लिखा है कि यूरोपीय लोगों की संख्या कम हो रही है। साथ ही वे बूढ़े और कमजोर होते जा रहे हैं। उसका कहना है कि हमारी प्रजनन दर कम है, लेकिन बाहर से आये अप्रवासियों की प्रजनन दर ज्यादा है। लिहाजा एक दिन ये लोग श्वेतों से उनकी जमीन छीन लेंगे यह चिंताजनक है कि पश्चिमी देशों में नस्ली आधार पर संदेह करने और विशेष समुदायों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं बढ़ रही हैं। इस तरह की छिटपुट घटनाएं अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में होती रही हैं, लेकिन इस तरह का नरसंहार पहली बार देखने में आया है। पश्चिमी देशों में अब शरणार्थी और प्रवासी विरोधी हिंसा के मामले भी बढ़ रहे हैं। उदारवादी माने जाने वाले देशों में भी अब विदेशी लोगों को नापसंद किये जाने की घटनाओं में तेजी से इजाफ हुआ है। पश्चिमी देशों में अतिवादियों का हाल के उभार के लिए वहां के कुछ राजनीतिक दलों को दोषी ठहराया जा रहा है। यूरोप में कई कट्टर दक्षिणपंथी दलों ने अप्रवासी विरोधी और विशेष रूप से मुस्लिम विरोधी रुख को प्रचारित और प्रसारित किया है। ये दल बहसंस्कतिवाद को राष्ट्रीय पहचान के खतरे के रूप में देखते हैं। इनमें से कुछ दल हिंसक तौर तरीकों से श्वेत वर्चस्व कायम करने के पक्षधर हैं। भारत हमेशा से धार्मिक समरसता और विविधता में एकता की मिसाल रहा है, लेकिन दुर्भाग्य है कि देश में असहिष्णुता की कुछेक घटनाएं सामने आयी हैं, जो चिंताजनक हैं। समरसता भारत की बहुत बड़ी पंजी है और यह हम सबकी जिम्मेदारी है कि इसे बचा कर रखें। विशेषज्ञ मानते हैं कि इस तरह के हमलों का एक कारण आर्थिक अनिश्चितता भी है। आर्थिक दुश्वारियों ने भी विभिन्न समुदायों के रिश्तों में तनाव पैदा किया है। आम तौर पर देखा गया है कि आर्थिक स्थिति अच्छी रहती है, तो इस तरह की घटनाएं कम होती हैं, लेकिन ब्रेक्जिट के बाद यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्था में अनिश्चितता का दौर चल रहा है। न्यूजीलैंड हमले के बाद दुनियाभर से कड़ी प्रतिक्रियाएं सामने आयी हैं। ईरान ने पश्चिमी सरकारों पर इस्लामोफेबिया को बढ़ावा देने का लगाया आरोप लगाया है। ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने एक बयान में कहा कि गोलीबारी दर्शाती है कि कुछ पश्चिमी सरकारें इस्लामोफेबिया को बढ़ावा दे रही हैं, जिसका हम सबको मिल कर मुकाबला करने की जरूरत है। इस हमले की एक और खतरनाक बात सामने आयी है। आतंकवादी अँटेन टैरेंट ने मस्जिद में घुसने से पहले फेसबुक पर लाइव स्ट्रीमिंग शुरू कर दी थी। सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में आतंकी मस्जिद के अंदर घुस कर लोगों पर गोलियां बरसाते नजर आ रहा है। हमले का यह वीडियो कुछ ही देर में दुनियाभर में वायरल हो गया। यह इस बात का एक उदाहरण है कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल कैसे गलत कार्यों के लिए भी किया जा सकता है। यह शायद पहला मौका था, जब आतंकवादी ने फेसबुक के * के जरिये हमले को लाइव दिखाया। इतने बड़े आतंकवादी हमले की दुनिया ने पहली बार लाइव स्ट्रीमिंग देखी। इस बात को चिंता जतायी जा रही है कि यह घटना भविष्य में कहीं सोशल मीडिया के इस्तेमाल को लेकर गलत चलन न स्थापित कर दे और कहीं ऐसी दिल दहलाने वाली वारदातों को न दिखाया जाने लगे। आसपास की घटित हो रही इन घटनाओं से आभास होता कि अविश्वास की यह भावना दुनियाभर में कितने गहरे तक पैठ कर चुकी है।