अर्थव्यवस्था की मजबूती हेतु चुनाव सुधार जरूरी

अर्थव्यवस्था की मजबूती हेतु चुनाव सुधार जरूरी



सात चरणों में सम्पन्न होने वाले लोकसभा चुनाव में ईवीएम मशीनों को हटाने की मांग कर रहे हैं विगत अपनाए जाने के लिए संविधान में दोनों सदनों के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के चुनावी दौरे के कार्यक्रम के सप्ताह एक राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय में भारत में तीव्र बहुमत से संशोधन जरूरी है, मुझे नहीं लगता कि अनुसार वे पूरे देश भर का दौरा करके 51 दिन में 150 आर्थिक विकास एवं लोकतांत्रिक शासन प्रणाली को अगले पांच साल अर्थात 2014 तक भी इन प्रणालियों रैलियों को संबोधित करेंगे। लोक सभा चुनाव के पहले मजबूत करने के लिए आवश्यक राजनीतिक सुधार में से किसी एक पक्ष में बहुमत बन सकता है। किंतु चरण में उन्होंने एक माह में 18 राज्यों और दो केन्द्र विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया था, यदि सिविल सोसाइटी संगठन अभी से अभियान प्रारंभ शासित राज्यों के 91 चुनाव क्षेत्रों में रैलियों को जिसमें मुख्य रूप से सामाजिक विज्ञान व विधि के करें तो चुनाव में हिस्सा लेने वाले दलों की संख्या संबोधित कर चुके हैं। वे जिस किसी गैर-भाजपा लगभग 100 छात्रों ने अपने आलेख प्रस्तुत किए। इन सीमित करने के पक्ष में राजनीतिक दलों के बीच में शासित राज्य को दौरा करते हैं वे प्रोटोकाल भूलकर वहां आलेखों में संसदीय व्यवस्था में सुधार, जांच एजेंसियों सहमति बन सकती है। वर्तमान में हमारे देश में चुनाव के मुख्यमंत्री की नाकाम बताते हुए आलोचना करते हैं। द्वारा आरोपों की जांच व न्यायालय के निर्णयों में आयोग में पंजीकृत राजनीतिक दलों की संख्या 2293 प्रारंभ में गैर-भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री समयबद्ध तेजी लाना, शासन व्यवस्था में सुधार, चुनाव है। 2014 के चुनाव में 543 लोकसभा चुनाव क्षेत्रों के शिष्टाचार के नाते उनसे विमानतल पर सौजन्य भेंट करने प्रणाली में सुधार आदि पर उपयोगी सुझाव दिए गए थे। कुल 5058 प्रत्याशी अर्थात प्रत्येक चुनाव क्षेत्र से जाते थे, किंतु अब प्रधानमंत्री द्वारा उन्हीं के राज्यों में की उक्त संगोष्ठी में गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधियों ने औसतन 10 प्रत्याशी मैदान में थे। केन्द्र में गठबंधन जानेवाली आलोचनाओं से नाराज होकर उन लोगों ने भी अपने विचार प्रस्तुत किए। संगोष्ठी में हिस्सा लेने सरकारों का सिलसिला कायम हो चुका है तथा शिष्टाचार भेंट करना बंद कर दिया है। अब उन राज्यों के वाले सभी प्रतिभागियों की सर्वसम्मत राय थी कि हमारे आनेवाले वर्षों में केन्द्र में किसी एक दल की सरकार मुख्यमंत्रियों ने भी भाजपा की बजाय नरेन्द्र मोदी का देश के सभी चुनाव काले धन के सृजन एवं उपयोग के की संभावना नहीं के बराबर है। राजनीतिक दलों के नाम लेकर उनकी आलोचना प्रारंभ कर दी है। 2014 के माध्यम बन चुके हैं। यह भी आम राय थी कि हमारे देश बीच आम सहमति बनाने से लोकसभा क्षेत्र में चुनाव में चायवाला अभियान के केन्द्र में स्वयं नरेन्द्र के राजनीतिक दल चुनाव प्रणाली में सुधार को लेकर उम्मीदवार की संख्या 4 तक सीमित करना संभव मोदी थे जबकि वर्तमान मैं हूं चौकीदार अभियान के गंभीर नहीं हैं, यदि राजनीतिक दल गंभीर होते तो अब दिखता है। वर्तमान में भाजपा नीत राष्ट्रवादी केन्द्र में प्रधानमंत्री का पद हो गया है। इस प्रकार हर तक चुनाव आयोग वे सुधार लागू कर लिया होता। लोकतांत्रिक गठबंधन, कांग्रेसनीत संयुक्त प्रगतिशील कोई चौकीदार चोर कटाक्ष करके प्रधानमंत्री पद को वक्ताओं का यह भी मत था कि भारत में गैर-सरकारी गठबंधन, के अलावा मोटे रूप में क्षेत्रीय दलों का निशाना बना रहा है। मैं समझता हूं कि प्रधानमंत्री स्वयं संगठन एवं सिविल सोसाइटी संगठन जनजागरण महागठबंधन तो दिखाई दे रहे हैं, चौथे गठबंधन के रूप ने प्रधानमंत्री पद की गरिमा को नुकसान पहुंचाया है मैंने अभियान द्वारा लोगों में जागृति लाकर भारत की में वामपंथी दल एवं समस्त प्रगतिशील विचारधारा कुछ माह पहले चुनाव आयोग को सुझाव दिया था कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में सुधार लाकर अर्थव्यवस्था को वाले दल मिलकर वामपंथी या प्रगतिशील गठबंधन चुनाव के पहले चरण की आचार संहिता लागू होने के मजबूत कर सकते हैं ।उक्त संगोष्ठी में कुछ प्रतिभागियों बना सकते हैं। इस प्रकार हर एक लोकसभा क्षेत्र में बाद प्रधानमंत्री एवं अन्य मंत्रियों के विरोधी दलों के ने विरोधी दलों द्वारा ईवीएम मशीन के चुनाव में प्रत्याशियों की संख्या 4 तक सीमित की जा सकती है। शासित राज्यों के दौरों पर प्रतिबंध लगाना चाहिए। उसी उपयोग के अनावश्यक विरोध किए जाने की भी चर्चा यदि कोई निर्दलीय चुनाव में खड़ा होना चाहता है तो प्रकार एक राज्य के मुख्यमंत्री को दूसरे राज्य में जाकर की। सभी प्रतिभागियों की राय थी कि ईवीएम मशीनों इन्हीं चार दलों में से किसी एक के समर्थन से चुनाव वहां चुनाव प्रचार करने व उस राज्य के मुख्यमंत्री की और चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल उठाया लड़ सकता है। यदि 2024 तक ऐसा संभव होता है तो आलोचना करने पर भी रोक लगनी चाहिए। मेरी राय में जाना अनुचित है। यह भी कहा गया कि यदि ईवीएम इसे भी एक बड़ा राजनीतिक सुधार माना जा सकता संवैधानिक पदों की मर्यादा एवं शिष्टाचार बनाये रखना मशीन का दुरूपयोग संभव होता तो गोरखपुर मठ के है। स्थानीय स्तर पर व्यवसायी भी राहत की सांस लेंगे चाहिए। चूंकि चुनाव राजनीतिक दल लड़ते हैं इसलिए महंत की परम्परागत सीट पर लोकसभा चुनाव में कि अब उन्हें केवल चार उम्मीदवारों को ही चुनावी मंत्रियों की बजाय संगठन के पदाधिकारियों को चुनाव भाजपा को पराजय का मुंह नहीं देखना पड़ता या तीन चंदा देने की नौबत आएगीउम्मीदवारों की संख्या 4 प्रचार और रैलियों को संबोधित करना चाहिए। किंतु वह राज्यों में कांग्रेस की सरकार नहीं बन पाती। संगोष्ठी में तक सीमित करने के चुनावी सुधार गैर-सरकारी सुझाव अनदेखा रहा। आश्चर्य की बात है कि प्रधानमंत्री दिए गए सुझाव यद्यपि बहुत उपयोगी थे, किंतु बहुत संगठनों एवं जागरूक बुद्धिजीवियों द्वारा सतत अभियान द्वारा दूसरे राज्यों में चुनाव प्रचार और रैलियों में विरोधी कम लेखकों ने सुझावों को वर्तमान परिस्थितियों में चलाए जाने पर ही संभव हो सकता है। चुनाव सुधारों दलों के मुख्यमंत्रियों की आलोचना को विरोधी दलों लागू किए जाने की संभावनाओं का परीक्षण किया था। से चुनावों में काले धन के उपयोग पर अंकुश लगेगा द्वारा आचार संहिता में प्रतिबंध लगाने के लिए मांग राष्ट्रपति प्रणाली, आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली, तथा सरकार द्वारा चुनाव करवाने में भारी-भरकम खर्च करनी चाहिए थी किंतु चुनाव आयोग से किसी भी मुख्य दल प्रणाली सभी राजनैतिक प्रणालियों के अपने में कमी आएगी जिसका उपयोग आर्थिक विकास हेतु राजनीतिक दल ने मांग नहीं की। उसकी बजाय वे गुण-दोष हैं। किंतु भारत में किसी भी प्रणाली को किया जा सकता है।