असल मुद्दा तो अछूता ही है
लोकसभा चुनावों का प्रचार सारे देश में जोर मेधावी नौजवान शिक्षक बनने के लिए तो तैयार ही पकड़ चुका है। हर पक्ष दूसरे पर जनता को छलने का नहीं हैं। यह सोचना होगा कि शिक्षक बनने को लेकर आरोप लगा रहा है। ये सत्तासीन होने पर आसमान से इस तरह का भाव नौजवानों में क्यों पैदा हो गया है? सितारे तोड़ कर लाने के अलावा तमाम अन्य संभवयह भी संभव है कि नौजवानों को लगता हो कि असंभव वादे भी कर रहे हैं। इन सबके बीच एक मुद्दा शिक्षक के रूप में अब करियर फयदे का सौदा नहीं लगभग अछूता बना हुआ है- वह है शिक्षा। इतने रह गया। इसमें अस्थिरता बहुत है। अब जरा दिल्ली महत्वपूर्ण बिंदु पर अभी तक कोई सारगर्भित बहस विश्वविद्यालय के 77 कॉलेजों की बात कर लेते हैं। सुनने को नहीं मिल रही है। अगर हमारे देश में शिक्षा आपको यकीन नहीं होगा कि इनमें लगभग चार का स्तर नहीं सुधरेगा, तो देश बुलंदियों को कैसे छू हजार शिक्षक तदर्थ (एडहॉक) शिक्षक के रूप में ही सकेगा? यह आश्चर्य का ही विषय है कि लोकसभा या पढ़ाते हैं। देश के इतने महत्वपूर्ण विश्वविद्यालय में भी विधानसभा चुनावों के दौरान शिक्षा के मसले पर कभी पिछले कई सालों से शिक्षकों की स्थायी नियुक्ति नहीं OUPS पर्याप्त बहस नहीं हो पाती। दरअसल, शिक्षा को राम हुई है। इसलिए विश्वविद्यालय प्रशासन ने बड़े पैमाने भरोसे छोड़ दिया गया है। हमने अपने यहां स्कूली स्तर पर तदर्थ शिक्षकों की बहाली कर रखी है, ताकि पर दो तरह की व्यवस्थाएं लागू कर रखी हैं। पहला कॉलेजों में शिक्षण का कार्य सुचारू रूप से चल प्राइवेट-पब्लिक स्कूल, दूसरा सरकारी स्कूल। पब्लिक सके। इस प्रक्रिया में भ्रष्टाचार की शिकायतें भी मिल स्कूलों में तो सब कुछ उत्तम-सा मिलेगा। वहां पर रही हैं। दरअसल, यह दुर्भाग्यपूर्ण हालात सभी जगहों बेहतर इंफ्रस्ट्रचर के साथ-साथ सुशिक्षित शिक्षक भी पर ही देखी जा सकती है। ये तदर्थ अध्यापक हर दिन उपलब्ध मिलेंगे। यदि बोर्ड की कक्षाओं को पढ़ानेवाले शोषण, मानसिक यंत्रणा, ज्यादा काम और असुरक्षा शिक्षकों का प्रदर्शन कमजोर रहता है, तो इन शिक्षकों के वातावरण में नौकरी करते हैं। वास्तव में, हमें से भी सवाल पूछे जाते हैं। साथ ही, इनकी कक्षाओं के कभी-कभी बेहद निराशा होती है कि हम शिक्षा जैसे छात्रों के बेहतरीन परिणाम आने पर इन्हें पुरस्कृत भी कर डिस्को डांस भी करवा देते हैं। आखिर बुनियादी सरकार की तरफ से यह तो बताया जाता है कि वह महत्वपूर्ण विषय को लेकर कितना गैर-जिम्मेदराना किया जाता है, लेकिन ऐसा लगता है कि ये बातें मुद्दों पर कोई भी पार्टी बहस क्यों नहीं करती ? सभी स्कूलों की इमारतों को सुंदर बना रही है, पर उसकी रवैया अपनाये हुए हैं। शिक्षा जैसे सवाल पर भी सरकारी स्कूलों पर लागू ही नहीं होतीं। वहां पर दल शिक्षा को लेकर अपनी भावी योजनाओं से देश के तरफसे इस तथ्य को छिपाया जाता है कि पिछले चार हमारे सभी राजनीतिक दल एक तरह से नहीं सोच अध्यापकों की बड़ी पैमाने पर कमी होने के साथ-साथ मतदाताओं को अवगत क्यों नहीं करा देते? उसके बाद साल के दौरान दिल्ली के पांच लाख बच्चे सरकारी पा रहे हैं। इस लिहाज से उत्तर भारत के राज्यों की जरूरी इंफ्रस्ट्रक़र का भी नितांत अभाव है। इनमें बच्चों भले ही जनता अपना फैसला सुना दे, पर अब तक के स्कूलों में फेल हुए हैं, जिनमें से चार लाख बच्चों स्थिति वास्तव में खासी दयनीय है कुिछ दिन पहले के लिए खेलों के मैदान तक नहीं हैं और अगर कहीं चुनाव प्रचार के दौरान यह सब देखने को नहीं मिला को फि स्कूलों ने दाखिला देने से इनकार भी कर हरियाणा से एक खबर आयी कि दसवीं और बारहवीं हैं भी, तो वे खराब स्थिति में हैं। इनमें पुस्तकालय और है शिक्षा के अधिकार कानून के तहत एक स्कूल में 35 दिया है। नौवीं में जो बच्चे फेल हुए, उनमें से 52 की परीक्षाओं में जम कर नकल हुई। दसवीं की हिंदी प्रयोगशालाएं आदि भी सांकेतिक रूप से ही चल रहे बच्चों पर एक अध्यापक होना अनिवार्य है, पर नियमों फसदी को फिर दाखिला नहीं मिला। क्या आप की परीक्षा में नकल के 346 मामले दर्ज किये गयेहैं।आजादी के 70 साल बाद के लोकसभा चुनाव में भी को तो ताक पर रखा जा रहा है। कहीं-कहीं तो 220 यकीन करेंगे कि दिल्ली में 1,028 स्कूलों में से 800 बताइए, हरियाणा जैसे विकसित राज्य में हम नकल पर शिक्षा के मुद्दे पर बहस का होना हमारी शिक्षा को लेकर बच्चों पर एक ही शिक्षक है और कहीं-कहीं तो पूरा- स्कूलों में प्रिंसिपल नहीं हैं और 27 हजार से ज्यादा काबू नहीं कर पा रहे हैं। बहरहाल, आपके पास जब पिलपिली राजनीतिक मानसिकता को ही दर्शाता है। हां, का-पूरा स्कूल ही एकाध शिक्षामित्र के सहारे चल रहा शिक्षकों के पद खाली पड़े हुए हैं? आप मानेंगे कि किसी दल का नेता वोट मांगने आये, तो जरा पूछ लें हम अपने को ज्ञान की देवी मां सरस्वती का अराधक है। दिल्ली सरकार बड़े-बड़े दावे करती है कि उसने शिक्षा क्षेत्र में आकर कुछ बेहतर करने को लेकर कि शिक्षा के सवाल पर उसकी या उसकी पार्टी की अवश्य कह देते हैं। सरस्वती पूजा के दिन पंडाल लगा शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम उठाये हैं। दिल्ली हमारी नयी पीढ़ी तो कभी उत्साहित नहीं होती। अब क्या राय है?