चुनाव की लंबी प्रक्रिया उचित नहीं

चुनाव की लंबी प्रक्रिया उचित नहीं 


 


यह सब 1990 के दशक में मुख्य चुनाव आयुक्त टी.एन. शेषन के समय शुरू हुआ था। चुनाव के दौरान हिंसा को रोकने के लिए केंद्रीय अर्द्धसैनिक बलों की तैनाती करने वाले वह पहले मुख्य चुनाव आयुक्त थे। पहली बार आदर्श आचार संहिता को प्रभावी ढंग से लागू करने, चुनावों में बाहुबल और धन शक्ति पर लगाम लगाने, मामलों को दर्ज करने और मतदान नियमों का पालन नहीं करने के लिए उम्मीदवारों को गिरफ्तार करने और उम्मीदवारों के साथ नापाक गठबंधन करने के लिए अधिकारियों को निलंबित करने का श्रेय श्री शेषन को ही जाता है। बाद में, सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से चुनाव के दौरान सुरक्षा बलों की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए भी कहा। टीएन शेषन की विरासत जारी है, हालांकि चुनाव प्रक्रिया लगातार अधिक महंगी, जटिल और विवादास्पद होती जा रही है। 2014 के संसदीय चुनाव के दौरान कुल 1,20,000 5 अर्द्धसैनिक बलों को तैनात किया गया था। देश के विभिन्न हिस्सों से बड़ी संख्या में वर्दीधारी कर्मियों की आवाजाही में काफी समय लगता है। पोलिंग स्टाफ और मशीनों के मामले में भी ऐसा ही है। चुनावी प्रणाली की तथाकथित समई आंशिक रूप से सफल हो सकती है, लेकिन इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों की उपस्थिति के बावजूद चुनावी हिंसा, बूथ जाम, बूथ कैप्चरिंग, गुप्त धन खर्च और वैज्ञानिक वोट रिगिंग के मामले कार्फ बढ़ गए हैं। राजनीतिक गुंडों को अधिक शरारत पैदा करने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए अब अधिक समय मिल रहा है। अभियान कटु और अधिक तीखे हो गए हैं। यदि इंडोनेशिया और ब्राजील जैसे विशाल आबादी वाले देश एक ही दिन में अपना चुनाव पूरा कर सकते हैं, तो भारत अपनी दुर्जेय चुनाव मशीनरी के साथ चुनावी प्रक्रिया को छोटा क्यों नहीं कर सकता है? पिछले कुछ वर्षों में समग्र चुनाव खर्च में भारी वृद्धि के बावजूद, सामान्य अर्थव्यवस्था को बाजार में धन की अचानक आपूर्ति में वृद्धि से लाभ ही होता है। आर्थिक गतिविधियां तेज हो जाती हैं। कई अस्थायी रोजगार अवसर पैदा हो जाते हैं। कुछ उपभोक्ता वस्तुओं की मांग बढ़ जाती है। हालांकि कुछ नुकसान भी होते हैं। सार्वजनिक परिवहन की उपलब्धता कम हो जाती है और सार्वजनिक परिवहन अधिक महंगे और दुखदाई हो जाते हैं। लंबी चुनाव प्रक्रिया से औद्योगिक उत्पादन, निर्माण और बुनियादी ढांचे और निश्चित रूप से स्कूल और कॉलेज की शिक्षा भी प्रभावित होती है। इसके अलावा केंद्र और राज्यों में उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों के लिए आदर्श आचार संहिता के अमल में आने के कारण सभी विकास कार्य भी ठप होने लगते हैं। 16 वीं लोकसभा का गठन करने के लिए 7- अप्रैल 2014 से 12 मई 2014 के बीच 36-दिनों तक नौ चरणों में मतदान हुए थे।