चुनावी चंदे का सवाल

चुनावी चंदे का सवाल



चुनावी बॉण्ड के जरिए चंदे का कानून बनने से हम एक अपारदर्शी व्यवस्था छोड़कर दूसरी अपारदर्शी व्यवस्था के दायरे में आ गए हैं। चुनावी चंदे का सवाल एक बार फिर  सतह पर है। सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉण्ड की व्यवस्था खत्म करने को लेकर दी गई याचिका पर सुनवाई करते हुए सभी राजनीतिक दलों को आदेश दिया है कि वे इस बॉण्ड के जरिए हासिल किए गएचंदे का विवरण सीलबंद लिफफे में निर्वाचन आयोग को सौंपें। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने चुनावी बॉण्ड खत्म करने की मांग पर अभी कोई अंतिम फैसला नहीं दिया है, लेकिन इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि चंदे के इस तरीके पर निर्वाचन आयोग को भी आपत्ति है। उसने यह आपत्ति तभी जताई थी, जब चुनावी बॉण्ड संबंधी कानून आकार लेकर रहा था, लेकिन तब सरकार की ओर से यह दलील दी गई कि नई व्यवस्था पहले से ज्यादा पारदर्शी होगी। यह मानने के अच्छे-भले कारण हैंकि ऐसा नहीं हुआ और चुनावी बॉण्ड की व्यवस्था कुल मिलाकर अपारदर्शी ही है। इसका कारण यह है कि राजनीतिक दल यह बताने के लिए बाध्य नहीं कि उन्हें किसने चुनावी बॉण्ड दिया? निर्वाचन आयोग और साथ ही चुनाव प्रक्रिया साफ-सुथरी बनाने के लिए सक्रिय संगठन यह चाह रहे हैं कि चुनावी बॉण्ड खरीदने वाले का नाम उजागर किया जाए, ताकि यह पता चल सके कि कहीं किसी ने किसी फयदे के एवज में तो चुनावी बॉण्ड के जरिए चंदा नहीं दिया? निरूसंदेह चुनावी बॉण्ड के जरिए चंदा देने वालों की गोपनीयता बनाए रखने के पक्ष में यह एक तर्क तो है कि उन्हें वे राजनीतिक दल परेशान कर सकते हैं, जिन्हें चंदा नहीं मिला, लेकिन जमकर दुरुपयोग हो रहा था और कई राजनीतिक कालेधन से संचालित होने की आशंका को दूर नहीं यह आशंका दूर की जानी भी जरूरी है कि कहीं दल यह कहते थे कि उन्हें करोड़ों रुपए का चंदा किया जा सकता। विडंबना यह है कि राजनीतिक किसी लाभ-लोभ के फेर में तो चुनावी चंदा नहीं 20-20 हजार रुपए से कम में ही मिला। चुनावी दल चुनावी चंदे की पारदर्शी व्यवस्था बनाने के लिए दिया जा रहा ? फिलहाल यह कहना कठिन है कि बॉण्ड की व्यवस्था बनने के बाद छूट की यह सीमा न तो एकमत हैं और न ही उत्साहित । चुनावी बॉण्ड चुनावी बॉण्ड का भविष्य क्या होने वाला है, लेकिन दो हजार रुपए कर दी गई। राजनीति पैसे का खेल संबंधी कानून बनते समय कई राजनीतिक दलों ने लगता यही है कि इन बॉण्ड के जरिए चंदे का कानून है। बिना धन के राजनीति और राजनीतिक दलों का उसका विरोध तो किया था, लेकिन किसी ने नहीं बनने से हम एक अपारदर्शी व्यवस्था छोड़कर दूसरी संचालन नहीं किया जा सकता। यह किसी से छिपा बताया कि आखिर चुनावी चंदे में पारदर्शिता कैसे अपारदर्शी व्यवस्था के दायरे में आ गए हैं। इसके नहीं कि छोटे-बड़े राजनीतिक दल चुनावों के दौरान लाई जाए? इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती पहले राजनीतिक दलों को 20 हजार रुपए से कम पैसा पानी की तरह बहाते हैं। अगर चुनावी चंदे की कि राजनीतिक दलों को विदेश से मिलने वाले चंदे के चंदे का विवरण न बताने की छूट थी। इसका पारदर्शी व्यवस्था नहीं बनती तो राजनीति के का कानून भी पारदर्शी नहीं है। २८