एक फीसद के राज़ पर बहुमत पाने के झूठे हौसले

एक फीसद के राज़ पर बहुमत पाने के झूठे हौसले


नरेंद्र मोदी की सरकार, एक फसद की पहुंच चुका था! जाहिर है कि इस एक फेसद द्वारा लायी गयी और लागू की गयी योजना की ओर सरकार के पारदर्शिता विरोध को बकायदा सिद्धांत का 30 मई तक चुनाव आयोग को देने का आदेश दिया को भी, गोपनीयता कानून के डंडे से दबाने की सरकार सरकार है ।श्श् मोदी राज की इससे सटीक को मोदी राज इतना कामयाब दीख रहा है कि है। जैसाकि हमने पहले ही ध्यान दिलाया, इस योजना ही रूप देते हुए यह दावा भी किया कि, पारदर्शिता को ही है। इसके साथ ही इस कपट योजना के जारी रहने के सर्वोच्च कानूनी अधिकारी की दलीलों को, सुप्रीम आलोचना दूसरी नहीं होगी। बेशक, इस अति- उनका अधिकांश हिस्सा मोदी की सत्ता में वापसी के शुरू होने के बाद के करीब डेढ़ साल में, करीब ढाई इस देश में मंत्र की तरह नहीं देखा जा सकता है। साफ पर एक प्रकार से प्रश्न चिन्ह लगाते हुए, शीर्ष कोर्ट ने खारिज कर दिया है और जनता के जानने के महत्वपूर्ण आम चुनाव पर केंद्रित बहस में इस सुनिश्चित करने के लिए अपनी पूरी ताकत लगाए हजार करोड़ रु। का जो कुल राजनीतिक चंदा दिया तौर पर मोदी सरकार यह दलील दे रही थी कि उसे न्यायालय ने कहा है कि इस पर बहस में उठे सवाल अधिकार को, सरकारी गोपनीयता कानून के ऊपर सचाई को कुछ देर से रखा गया है। और इसे हुए है। इसीलिए, चुनावी बांड की घोटालेपूर्ण व्यवस्था गया है, उसमें से 95 फंसद चंदा सत्ताधारी भाजपा के (और जाहिर है कि भविष्य में देश में जो भी सरकार और गहरी छानबीन का तकाजा करते हैं और इसके जगह दी है। और चुनाव अभियान के दौरान नरेंद्र मोदी समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने रखा के जरिए, इस साल के शुरू तक राजनीतिक पार्टियों ही हिस्से में आया है। साफ है कि यह योजना ही आए उसे भी) धनपतियों से कितना भी और कैसा भी लिए अदालत, आगे तारीख तय कर, जाहिर है कि इस की मुश्किलें और बढ़ाते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने रफल है, जिससे शायद उसे चुनावी बहस में सहज ही को दिए गए लगभग ढाई हजार करोड़ रु। के कुल खासतौर पर मौजूदा सत्ताधारी पार्टी के खजाने भरने के पैसा लेने की, खुली छूट होनी चाहिए। महत्वपूर्ण रूप योजना की वैधता पर ही सुनवाई करेगी। याद रहे कि मामले में मोदी सरकार को कथित रूप से इश्क्लीन केंद्रीयता हासिल नहीं हो पाए। फिर भी मोदी राज गोपन चंदे में से, 95 फसद भाजपा के ही खजाने में लिए लायी गयी है। और इस योजना के जरिए, से इसमें विदेशी स्रोतों से चंदे लेने की छूट और फर्जी कार्पोरेट चंदों को पूरी तरह से गोपनीय बनाने की इस चिटश्श् देने वाले अपने ही फैसले पर, पुनर्विचार करने का यह चरित्रांकन, उसके पांच साल के शासन गया है। जाहिर है कि यह इस चुनाव में भाजपा के राजनीतिक चंदा देने वाले कौन हैं? खुद चुनाव आयोग कंपनियां खड़ी कर के उनके नाम पर कितना ही चंदा व्यवस्था की एक वजनदार आलोचना यह है कि इसके के लिए मंजूरी दे दी है। जाहिर है कि इस सब से की असली प्राथमिकताओं को ही नहीं, उसकी खजाने में पहुंचने वाले दसियों हजार करोड़ रु। का, द्वारा दी गयी जानकारी के अनुसार, इस योजना के दिखाने की छूटें शामिल हैं। याद रहे कि चुनावी बांड जरिए, कार्पोरेटों पर सरकार की कृपा के बदले में, चौकीदार चोर है की आवाजों को, आने वाले दिनों में इस चुनाव की रणनीतियों को भी, बखूबी उजागर गोपनीय होते हुए भी कम से कम लिखत-पढ़त वाला, जरिए दिए गए कुल राजनीतिक चंदे का 99 8 फसद योजना के लिए राजनीतिक चंदे से संबंधित कानूनों में राजनीतिक घूस वसूल करने का एक पूरी तरह से वैध और बल मिलेगा। साफहै किएक फेसद के लिए चोरी करता है। जैसा कि सभी देख रहे हैं, मोदी-शाह- एक हिस्सा भर है। कुछ ऐसा ही सरासर इकतरफ हिस्सा, सबसे कीमती यानी करोड़ रु। के बांडों की जो संशोधन मोदी सरकार ने, वित्त विधेयक का हिस्सा दरवाजा खोल दिया गया है। यहां तक कि यह भी कहा करने वालों के लिए, इस चोरी पर पर्दा डालना ज्यादा भागवत तिकड़ी की भाजपा की इस बार की झुकाव, कार्पोरेट नियंत्रित मुख्यधारा के मीडिया और शक्ल में ही दिया गया है। कम से कम इसके बाद, यह बनाने के जरिए, खासतौर पर राज्यसभा में समुचित गया है कि रफल घोटाले में श्श्मनी ट्रेलश्श् इसीलिए से ज्यादा मुश्किल हो जाता जा रहा है। आखिरकार, चुनावी रणनीति के केंद्र में है, राष्टङ्क और हिंदू खासतौर पर इलैक्ट्रोनिक मीडिया का है, जो शेष 99 मानने के लिए किसी सबूत की जरूरत नहीं होनी छानबीन के बिना अलोकतांत्रिक तरीके से थोपे हैं, सामने आ ही नहीं सकती है क्योंकि बड़ी घूस के लेन- यह चोरी बाकी निन्यानवे फंसद के हिस्से में से ही तो समुदाय की असुरक्षा का हौवा खड़ा करना और फसद को यह समझाने का सबसे बड़ा औजार बना चाहिए कि यह पूरी योजना ही एक फसदश्श् को, उनमें विदेशी राजनीतिक चंदे पर लगी रोक और किसी देन को अब चुनाव बांड के जरिए, पूरी तरह से वैध हो रही है। करोड़ों के रोजगार, किसानों की पैदावार पाकिस्तान, कश्मीर तथा मुसलमानों को खतरा हुआ है कि उक्त एक फेसद के फयदे में ही, उसका भी मोदी राज में अपने ऊपर पर बरसायी गयी कृपा का कंपनी के अपने पिछले तीन साल के औसत मुनाफे ही बना दिया गया है। पिछले ही दिनों आया सुप्रीम के जायज दाम, आम जनता के लिए शिक्षा, बनाकर पेश करना। दूसरी ओर, खुद को राष्टङ्क हित है! यह दूसरी बात है कि एक फेसद की सारी बदला उतारने का मौका देने के लिए बनायी गयी है। का ज्यादा से ज्यादा 7 फसद तक चंदा ही दे सकने कोर्ट का दूसरा महत्वपूर्ण फैसला, रफल सौदे के ही स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा आदि, सब इस चोरी और हिंदू का सबसे बड़ा रखवाला तथा उसी के ताकत के झोंककर भी, पांच साल के मोदी राज के अचरज की बात नहीं है कि खासतौर पर एक फसद की सीमा को हटा लिया गया है मोदी सरकार ने इस संबंध में हैरफल सौदे के संबंध में अरुण शौरी, की भेंट ही तो चढ़े हैं। यह चोरी जैसे-जैसे खुल दूसरे पहलू के तौर पर अपने राजनीतिक कडुए अनुभव को आम जनता से भुलवाना संभव नहीं धनपतियों के राजनीतिक चंदे को चुनाव आयोग तथा योजना के जरिए, बड़े राजनीतिक चंदों के स्रोतों को यशवंत सिन्हा तथा शशिभूषण की जनहित याचिका पर रही है, वैसे-वैसे चोर लोगों का ध्यान बंटाने के विरोधियों को भारत विरोधी, हिंदूविरोधी, हो रहा है। इसीलिए, राष्टङ्कवाद की सरासर सांप्रदायिक आयकर विभाग समेत, हर प्रकार की निगरानी से छुपाने की इतनी बेशर्मी से व्यवस्था की है कि पिछले साल के आखिर में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले लिए नये-नये स्वांग रच रहा हैपाकिस्तान, पाकिस्तानपरस्त, मुस्लिमपरस्त प्रचारित करना। दुहाई की अफेम से आम जनता को सुलाने की हर ओझल ही बना देने की इस कपट योजना को जब सामान्यतरू उसके सुर में सुर मिलाने वाले चुनाव के बाद सामने अए तथ्यों और खासतौर पर द हिंदू में पुलवामा, बालाकोट तथा कश्मीर में दो और इस सब की आड़ में खासतौर पर मेहनत की संभव कोशिश की जा रही है फि भी सच को ज्यादा मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी तथा एक नागरिक आयोग तक को, इसे राजनीतिक, चुनावी चंदे में वरिष्ठङ्क संपादक एन राम के रहस्योद्घाटनों की प्रधानमंत्री से गुजरते हुए, हिंदुओं का अपमानश् रोटी खाने वाली जनता के पांच साल के इस दिन दबाया, छुपाया नहीं जा सकता है और वह किसी अधिकार संगठन ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, सरकार पारदर्शिता के बजाए, अपारदर्शिता बढ़ाने का कदम पृष्ठभूमि में, पुनर्विचार याचिका दायर की गयी थी। के जाने-पहचाने स्वांग से होकर, वह अब अली वास्तविक अनुभव को बहस से बाहर ही करने न किसी संद से निकलकर सामने आ ही जाता है। की ओर से एटॉर्नी जनरल ने इस योजना के बचाव में कहकर, अपना विरोध जताना पड़ा हैसुप्रीम कोर्ट में सरकार की ओर से इस पुनर्विचार याचिका को आधार बनाम बजरंग बलीश् पर पहुंच गया हैलेकिन, की कोशिश करना कि मोदी सरकार, सिर्फ एक मतदान के पहले दो चरणों के बीच आए सुप्रीम कोर्ट बाकायदा यह दलील दी कि राजनीतिक पार्टियों के सुनवाई में भी चुनाव आयोग ने राजनीतिक चंदे में पर बिना विचार किए सीधे-सीधे खारिज किए जाने इस सब में मोदी-शाह-भागवत तिकड़ी की फंसद की सरकार साबित हुई है। याद रहे कि यह के दो महत्वपूर्ण निर्णयों ने, मोदी राज के एक प्रेसद साथ धनपतियों के लेन-देन की गोपनीयता बनाए पारदर्शिता के तकाजों के पहलू से, चुनावी बांड योजना की मांग की जा रही थी कि नये तथ्य, सरकारी हताशा के लक्षण साफ दिखाई दे रहे हैं। पहले वही सबसे संपन्न एक फेसद है, जिसका जहां के लिए ही राज होने को उजागर करने का ठीक यही रखना जनतंत्र के लिए बहुत जरूरी है। उन्होंने न सिर्फ पर अपना विरोध जताया था। इसी पृष्ठभूमि में सुप्रीम गोपनीयता कानून का उल्लंघन कर चोरी किए गए चरण में 17वीं संसद के छठे हिस्से के लिए हुए 2014 में भारत में पैदा हुई कुल संपदा के 49 काम किया है। इनमें एक निर्णय तो सीधे-सीधे एक यह तर्क पेश किया कि, मतदाताओं को इससे क्या कोर्ट ने अपने अंतरिम फैसले में तत्काल तो दस्तावेजों पर आधारित हैं और अदालत चोरी से मतदान का स्पष्टङ्क संदेश हैकृएक फसद के राज फसद पर कब्जा था, मोदी राज के चार साल में फसद के साथ मोदी राज के खास रिश्ते से ही जुड़ा लेना है कि (राजनीतिक पार्टियों के पास) पैसा कहां राजनीतिक पार्टियों को चुनावी बांड के जरिए प्राप्त हुए हासिल किए गए दस्तावेजों का संज्ञान नहीं ले सकती पर, बहुमत के हौसले झूठे हैं। मोदी राज को अब यह हिस्सा बढ़कर, 2018 तक 73 फसद पर हुआ है। हमारा इशारा चुनावी बांड की मोदी सरकार से आ रहा है? इससे आगे बढ़कर, उन्होंने मोदी चंदे से संबंधित तमाम विवरण, सीलबंद लिफफे में, हैबहरहाल, इस मामले में सामने आ चुकी सचाइयों जाना ही होगा।