फितरत नहीं बदलेगा दोगला चीन

फितरत नहीं बदलेगा दोगला चीन


 


इसमें कोई हैरानी नहीं कि चीन ने एक बार फिर जैश का नाम शामिल नहीं किया गया, जबकि खुद जैश अनदेखी कर सहभागी पहलुओं पर ही ज्यादा ध्यान जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर को ने इस हमले की जिम्मेदारी ली थी। यह विरोधाभास केंद्रित किया हैइसी कारण भारत ने चीन के साथ मुक्त अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित करने की राह में अड़चन पैदा किसी विडंबना से कम नहीं था। कुल मिलाकर चीन व्यापार को आगे बढ़ाते हुए उसके निवेश को गले कर दी। आश्चर्य तो इसी बात पर हुआ कि भारतीय सुरक्षा किसी तरह इस भंवर से निकल पाया, जो एक तरह से लगाया। यहां तक कि संचार जैसे संवेदनशील क्षेत्र में भी बिरादरी में कुछ लोगों ने यह सोचा कि चीन आसानी से भारत के लिए सकारात्मक ही रहा। संयुक्त राष्ट्र ने जैश- चीनी निवेश के लिए लाल कालीन बिछा दी। यह सब इस मुद्दे पर सहमत हो जाएगा। हालांकि अभी भी ऐसा ए-मोहम्मद पर अक्टूबर 2001 में ही प्रतिबंध लगा दिया भारत के विनिर्माण उद्योग की कीमत पर किया गया। हो सकता है, लेकिन वह मुश्किल से ही ऐसा करेगा और था। सितंबर, 2001 में न्यूयॉर्क में हुए अलकायदा के वैश्विक स्तर पर जब भी साझा हितों की बात आती है तो वह भी तभी जब पाकिस्तान इसका बहुत ज्यादा विरोध हमले के महीने भर बाद ही यह कार्रवाई हो गई थी। चीन भारत और चीन एक हो जाते हैं। यह ठीक भी है, लेकिन न करे। अमेरिका, फ्रंस और ब्रिटेन इस मसले पर चीन ने तब इसे आतंकी सूची में डालने पर आपत्ति नहीं जताई इससे भारत को उस खतरे की अनदेखी नहीं करनी से चर्चा कर रहे हैं। यह चर्चा मसूद अजहर को थी। न ही उसने पाकिस्तान में सक्रिय 21 अन्य आतंकी चाहिए, जिसका जाल चीन श्रीलंका और मालदीव जैसे अंतरराष्ट्रीय आतंकी घोषित करने के इन तीन देशों द्वारा संगठनों और 132 आतंकियों पर हुई कार्रवाई का विरोध हमारे पड़ोसी देशों में बिछा रहा हैहालांकि मालदीव में पेश किए गए प्रस्ताव पर चीन द्वारा अडंगा लगाए जाने किया। हालांकि वह 2009 से ही मसूद अजहर की ढाल हालिया चुनाव के बाद भारत के साथ उसके समीकरण के बाद से ही हो रही है। उन्होंने चीन को चेतावनी दी बना हुआ है और जब भी उसे अंतरराष्ट्रीय आतंकी सुधरे हैं, फि भी चीन की नीयत और मंशा को है कि पहले की तुलना में वे इस मामले को लेकर अब घोषित करने की पहल हुई, चीन ने उसमें रोड़ा अटका नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। भारत को एक बात कहीं अधिक गंभीर हैं और आतंकवाद को लेकर चीन दिया। वर्ष 2009 के बाद 2016 और फिर 2017 में भी स्पष्ट रूप से समझ लेनी चाहिए कि राष्ट्रपति शी जिनपिंग के दोहरे रवैये को बेनकाब करने की कोशिश करेंगे। उसने यही किया। स्पष्ट है कि चीन जैश और उसके के नेतृत्व में चीन हर कीमत पर अपनी महत्वाकांक्षाएं इससे चीन पर दबाव बढ़ेगा, क्योंकि वह तब तक आका मसूद अजहर को लेकर दोहरे मापदंड अपना रहा पूरी करना चाहता हैइसमें उसे न तो अपने पड़ोसियों अलग-थलग होने का जोखिम नहीं लेगा जब तक है। चीन केवल और केवल पाकिस्तान के साथ रिश्तों के हितों की फिक्र है और न ही अंतरराष्ट्रीय प्रावधानों का उसका खुद का कोई बड़ा हित दांव पर न लगा हो। अगर की खातिर ही यह सब कर रहा है। भारत के प्रति नफरत लिहाज। ऐसे में भारत को भी अपना रुख कड़ा करना मसूद अजहर को लेकर चीन के रवैये को समझना है तो ही चीन-पाकिस्तान के रिश्तों की बुनियाद है। चाहिए, जैसा उसने 2017 में डोकलाम गतिरोध के फि 14 फरवरी के बाद के घटनाक्रम पर गौर करना पाकिस्तान ने 1963 में अपने कब्जे वाले कश्मीर यानी दौरान किया था। उसने चीन को एहसास करा दिया कि होगा। यह जानना जरूरी होगा कि पुलवामा में 14 फरवरी पीओके का कुछ हिस्सा चीन को भेंट किया था। इसके भारत अपने हितों की रक्षा करने में सक्षम है। हर मौके को हुए हमले के बाद चीन का व्यवहार कैसा रहा। ध्यान बदले में चीन ने पाकिस्तान को परमाणु हथियार पर उसे यही तेवर दिखाने होंगे। जब चीन ने मसूद रहे कि इस हमले की जिम्मेदारी जैश-ए-मोहम्मद ने ही विकसित करने में मदद की। अगर हाल के दौर की बात अजहर के मामले में अवरोध पैदा कर ही दिया है, तो ली थी। जम्मू-कश्मीर में पाकिस्तान प्रायोजित करें तो पाकिस्तान जहां चीन में उइगर मुसलमानों को दी भारत को भी दुनिया के सामने चीन का असली चेहरा आतंकवाद के तीन दशकों के इतिहास में भारतीय सुरक्षा जा रही भयानक यातनाओं पर चुप्पी साधे हुए है, तो बेनकाब करने से हिचकना नहीं चाहिए। यह ठीक नहीं बलों पर किया गया यह सबसे दुर्दात आतंकी हमला था। बदले में चीन पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर मौन कि भारत ने एक देश की ओर इशारा तो किया, लेकिन अंतरराष्ट्रीय समुदाय को तुरंत भान हो गया कि भारत इस रहता है। इन दोनों की साठगांठ में हाल में एक जुड़ाव सीधे तौर पर चीन का नाम नहीं लिया। यह कूटनीतिक हमले से बहुत कुपित हो गया है और प्रधानमंत्री नरेंद्र चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे यानी सीपेक के रूप कमजोरी ही है खासकर तब जब संयुक्त राष्ट्र के अन्य मोदी आतंकवाद के खिलाफ कोई बड़ी कार्रवाई करेंगे। में भी हुआ है। चीन पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था में भारी सदस्य देश चीन का नाम लेने से नहीं हिचक रहे। यह ऐसे में बड़े देशों द्वारा निजी दायरे में की जा रही भर्त्सना निवेश कर रहा है और ग्वादर बंदरगाह को अपनी मामला मुद्दई सुस्त, गवाह चुस्त की तरह नहीं होना ही काफ नहीं होती। कुछ इससे अधिक करने की जरूरत रणनीतिक परियोजना के रूप में विकसित कर रहा है। चाहिए। चीन के परिप्रेक्ष्य में दो और पहलू गौरतलब हैं। थी और सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने निर्णय किया कि ऐसे में भारतीय नीति-नियंताओं को हमेशा के लिए यह पहला यह कि यदि भारत इस पर अपनी नाखुशी जाहिर इस हमले की निंदा से जुड़ा एक बयान जारी किया जाए। बात गांठ बांध लेनी चाहिए कि जब भी भारत- करना चाहता है तो उसे कीमत भी चुकानी होगी यानी इसमें कोई रहस्य नहीं कि चीन ने इसमें भी अडंगा लगा पाकिस्तान के बीच कोई पेंच फंसेगा तो चीन हमेशा उसे व्यापार के मामले में कुछ कदम उठाने होंगे। क्या दिया, अन्यथा यह पहला मौका होता, जब सुरक्षा परिषद पाकिस्तान का ही पक्ष लेगा। हाल के दौर में भारत-चीन भारतीय उपभोक्ता सस्ते चीनी उत्पादों की तुलना में दूसरे भारतीय सुरक्षा बलों पर हुए आतंकी हमले की एक सुर के रिश्तों में कुछ सुधार के बावजूद इस हकीकत से मुंह देशों के महंगे उत्पाद खरीदना गवारा करेंगे? दूसरा पहलू में निंदा करती। चीन जैश-ए-मोहम्मद के नाम के उल्लेख नहीं मोड़ा जा सकता। एक के बाद एक भारतीय यह है कि जब राष्ट्रीय हितों की बारी आती है तो नेताओं में हिचक रहा था। वह तभी सहमत हुआ, जब बयान में सरकारों ने भारत-चीन रिश्तों में प्रतिस्पर्दी पहलुओं की की निजी दोस्ती मायने नहीं रखती।