आतंकवाद से भी बड़ा खतरा है नस्लीय हिंसा

आतंकवाद से भी बड़ा खतरा है नस्लीय हिंसा



दुनिया भर में इस्लामिक आतंकवाद से भी बड़ा खतरा रंगभेद यानी सामुदायिक हिंसा बनती जा रही है। अमेरिका जैसा ताकतवर देश नस्लीय हिंसा की संस्कृति से अपने को उबार नहीं पा रहा है। जिसकी वजह है कि अमेरिका पर लगा रंगभेद का दाग मिटने से रहा। अमेरिका में रंगभेद नीति का इतिहास पुराना है। जिसकी वजह से वहां श्वेत और अश्वेतों में 200 सालों तक संघर्ष हुआ। हालांकि यह स्थिति आज बदल गयी है। लेकिन पूरी तरह खत्म हुई है यह नहीं कहा जा सकता हैरविवार को अमेरिका के सिनसिनाटी में चार भारतीयों की हत्या इसी से जुड़ा हुआ मामला लगता है। जिसमें एक भारतीय शामिल है जो वहां घूमने गया था जबकि तीन अमेरिकी मूल के भारतीय हैं। विदेशमंत्री सुषमा स्वराज ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दिया। हालांकि स्वराज ने इसे हेट क्राइम यानी घृणा अपराध की हिंसा से इंकार किया है। फिलहाल यह अमेरिका और भारत के बीच राजनयिक बयान हैं। लेकिन रंगभेद की हिंसा वहां आम बात रही है। अमेरिका में इस तरह की घटना कोई नहीं बात नहीं है। वहां घृणा अपराध की वजह से कारी संख्या में लोग शिकार हुए हैं। आधुनिक सभ्यता के लिए यह किसी कलंक से कम नहीं है। अमेरिका जो दुनिया का सर्वशक्तिशाली और कुलीन देश होने का गर्व करता है उस देश में अगर धर्म, रंग और पहनावे के आधार पर हिंसा हो तो उसे सभ्य कहलाने का अधिकार नहीं है। इस तरह की घटनाएं इस्लामिक आतंकवाद से भी खतरनाक हैं। सामुदायिक आतंकवाद अब तेजी से पैर पसार रहा है। जो वैश्विक दुनिया के लिए सबसे बड़ा खतरा बन कर उभर रहा है। अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों पर आए दिन इस तरह के हमले होते रहते हैं। लेकिन अमेरिकी सरकार इस पर लगाम लगाने में नाकाम साबित हुई है। अमेरिका में भातीरय  छात्रों, इंजीनियरों और डाक्टरों को नस्लीय हिंसा का हुई। यह घटना उस दौरान हुई जब लोग धार्मिक संस्कार इंजीनियर श्रीनिवास कुचिभोटाला की पूर्व सैनिक ने हत्या शिकार बनाया जाता रहा है। इस तरह की अनगिनत करने को जमा हुए थे। हमला करने वाला दक्षिणपंथी की थी जिसमें वहां की अदालत ने उम्रकैद की सजा दुनिया भर में इस्लामिक आतंकवाद से भी बड़ा घटनाएं हमारे सामने आती हैं। नस्लीय हिंसा के आंकड़े आस्ट्रेलियाई नागरिक था। मस्जिद में वह अकेले घूसा सुनाई। जुलाई 2028 में हैदराबाद के भारतीय छात्र शरत खतरा रंगभेद यानी सामुदायिक हिंसा बनती जा रही है। बहुत कुछ कहते हैं। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत और गोलियां चलाना शुरु कर दिया। वह इस्लामिक कोप्पू की हत्या कंसास में कर दी गयी। संबंधित घटनाएं अमेरिका जैसा ताकतवर देश नस्लीय हिंसा की में जातीय हिंसा पर कई बार गंभीर टिप्पणी कर यहां की आतंकवाद से घृणा करता था। उसने हमला इसलिए एक मामूली उदाहरण हैं। इस तरह की हत्याओं के पीछे संस्कृति से अपने को उबार नहीं पा रहा है। जिसकी सरकारों पर अंगुली उठा चुके हैं, लेकिन खुद अमेरिका किया था कि दुनिया भर में ईसाईयों को निशाना बनाया सिर्फ धार्मिक कारण होते है। जिसमें रंग, वेशभूषा और वजह है कि अमेरिका पर लगा रंगभेद का दाग मिटने में इस तरह की हरकतों पर लगाम लगाने में अक्षम जा रहा है। जिसकी वजह से इस घटना को अंजाम दिया। भाषा का आधार बना कर हमले किए जाते हैं। अमेरिका से रहा। अमेरिका में रंगभेद नीति का इतिहास पुराना साबित हुए हैं। अमेरिका में नस्लीय हिंसा की मूल वजह श्रीलंका में भी हुआ हमला इसी नीति का पोषक हो की फैडरल ब्यूरो आफ इंवेस्टिगेशन की एक रिपोर्ट के है। जिसकी वजह से वहां श्वेत और अश्वेतों में 200 धार्मिक वेशभूषा है। अमेरिका में पगड़ी देख कर सिख सकता है। जिसमें ईसाईयों को निशाना बनाया गया। अनुसार 2016 और 2017 के मुकाबले 40 फसदी घृणा सालों तक संघर्ष हुआ। हालांकि यह स्थिति आज बदल समुदाय को निशनाना बनाया जाता है। वहां काफी अधिक हमले के लिए रविवार यानी ईस्टर का दिन चुना गया। अपराध बढ़े हैंअमेरिका में 2017 की वार्षिक रिपोर्ट के गयी है। लेकिन पूरी तरह खत्म हुई है यह नहीं कहा जा संख्या में सिख समुदाय के लोग रहते हैं। हिंसा में सिखों ईस्टर ईसाईयों का पवित्र त्यौहार है। कोलंबों शहर में अनुसार 7,175 धार्मिक, नस्लीय भेदभाव के मामले दर्ज सकता हैरविवार को अमेरिका के सिनसिनाटी में चार की दाढी नोंच ली जाती है पकड़ी उतार फेंक दी जाती आठ जगह एक के एक होटल और चर्च में सुनियोजित किए गए। जिसमें 8,493 लोगों को निशाना बनाया गया। भारतीयों की हत्या इसी से जुड़ा हुआ मामला लगता है। है। यह धार्मिक आतंकवाद का सबसे बेशर्म और घृणित धमाके किए गए। इस हमले में 253 लोगों की जहां मौत नैशनल क्राइम विक्टिमाइजेशन सर्वे के अनुसार 2005 से जिसमें एक भारतीय शामिल है जो वहां घूमने गया था स्वररुप है। सामुदायिक हिंसा का दायरा अब सिर्फ हुई वहीं 500 से अधिक लोग घायल हुए। आत्मघाती 2015 के बीच ढाई लाख से अधिक मामले दर्ज किए जबकि तीन अमेरिकी मूल के भारतीय हैं। विदेशमंत्री अमेरिका में नहीं पूरी दुनिया में तेजी से बढ़ रहा है। अगर हमलावरों ने अंजाम दिया। सोचिए हम किस तरफ बढ़ गए। अमेरिका में घृणा का अपराध बेहद पुराना रहा है। सुषमा स्वराज ने ट्वीट कर इसकी जानकारी दिया। यह हालात रहे तो वह दिन दूर नहीं जब यह स्थिति रहे है। वैश्विक शांति और विश्व बंधुत्व के लिए नस्लीय 200 साल पूर्व अश्वेतों को श्वेतों की हिंसा का शिकार हालांकि स्वराज ने इसे हेट क्राइम यानी घृणा अपराध की इस्लामिक आतंकवाद से भी खतरनाक होगी। पूरी दुनिया आतंकवाद बेहद बड़ा खतरा बन गर उभरा है।अमेरिका होना पड़ा था। यह संघर्ष कार्फ सालों तक चला। हिंसा से इंकार किया है। फिलहाल यह अमेरिका और आज इस्लामिक आतंकवाद से पीड़ित है। भारत में भारतीय मूल के तकरीबन 25 से 30 लाख लोग रहते हालांकि अब इसमें बदलाव आया है। क्योंकि अमेरिकी भारत के बीच राजनयिक बयान हैं। लेकिन रंगभेद की आतंकवाद से किस तरह पीड़ित है यह पूरी दुनिया जान हैं। यहां हिंदू मंदिरों को भी निशाना बनाया जाता है। राजनीति में अश्वेतों की भूमिका की वजह से भी इस पर हिंसा वहां आम बात रही है। अमेरिका में इस तरह की रही है। पुलवामा में भारतीय सैनिकों पर हुए आतंकी मंदिर की दिवालों पर नारे भी लिखें जाते हैं। अमेरिका लगाम लगा है, लेकिन इस तरह की हिंसा एक दम काबू घटना कोई नहीं बात नहीं है। वहां घृणा अपराध की हमले ने पूरी दुनिया को हिला कर रख दिया। इस्लामिक में नस्लवाद का आलम यह है कि वहां के लोग कहते हैं में है ऐसा नहीं कहा जा सकता है। हिंसा की सबसे बड़ी वजह से कारी संख्या में लोग शिकार हुए हैं। आधुनिक कानूनों को लागू कराने के लिए पूरी दुनिया में कि हमारे देश से भाग जाओं। लेकिन सरकारों की तरफ वजह धार्मिक पहचान हैजिसकी वजह से अमेरिका में सभ्यता के लिए यह किसी कलंक से कम नहीं है। आतंकवाद फैलाया जा रहा हैआईएसआई जैसा से कोई ठोस कदम नहीं उठाए जाते । एक घटना की जांच सिखों की दाढ़ी और पगड़ी के आधार में घृणा अपराध अमेरिका जो दुनिया का सर्वशक्तिशाली और कुलीन देश इस्लामिक संगठन दुनिया में इस्लाम का राज कायम पूरी नहीं होती की दूसरी को अंजाम दिया जाता है। का शिकार बनाया जाता है। अमेरिका में 60 फसद से होने का गर्व करता है उस देश में अगर धर्म, रंग और करना चाहता हैन्यूजीलैंड और श्रीलंका में हाल में हुए अमेरिका में इस तरह की घटनाओं एक वजह बंदूक की अधिक अपराध धार्मिक पहचान बनाए रखने की वजह पहनावे के आधार पर हिंसा हो तो उसे सभ्य कहलाने का हमले की वजह भी नस्लीय हिंसा का रुप हैं। जिसमें खुली संस्कृति भी है। जिसका खामियाजा अमेरिका को से होते हैंवक्त के साथ पूरी दुनिया में नस्लीय हिंसा की अधिकार नहीं है। इस तरह की घटनाएं इस्लामिक कारी संख्या में लोगों को जान गंवानी पड़ी है। इराक में भी समय-समय पर भुगतना पड़ता है। 2017 में बढ़ती प्रवृत्ति पर विचार करना होगा। अगर समय रहते आतंकवाद से भी खतरनाक हैं। सामुदायिक आतंकवाद 2018 में 39 भारतीयों की हत्या कर दी गयी थी। इसकी अमेरिकी मूल के भारतीय कारोबारी की हत्या की गयी। इस पर विचार नहीं किया गया तो यह स्थिति बेहद अब तेजी से पैर पसार रहा है। जो वैश्विक दुनिया के लिए वजह में इस्लामिक आतंकवाद था। जिसकी वजह से यह घटना दक्षिण कैरोलिना में हुई। इस साल जनवरी में भयानक होगी। जिसका नतीजा होगा अभी हम सबसे बड़ा खतरा बन कर उभर रहा है। अमेरिका में इराक में भारतीय कामगारों को निशाना बनाया गया। भारतीय मूल के अमेरिकी पुलिस अफ्सर रोनिल की इस्लामिक आतंकवाद से लड़ रहे हैं तो आने वाले समय भारतीय मूल के लोगों पर आए दिन इस तरह के हमले न्यूजीलैंड का नाम दुनिया के शांत देशों में शामिल है। हत्या की गयी। जिसे ट्रंप ने राष्ट्रीय हीरो बताया। 2018 में हम नस्लीय आतंकवाद से मुकाबला करेंगे। क्योंकि होते रहते हैं। लेकिन अमेरिकी सरकार इस पर लगाम लेकिन इसी साल मार्च में क्राइस्टचर्च मस्जिद में एक में न्यूजर्सी में एक अमेरिकी नाबालिग ने तेलंगाना के यह आतंरिक सुरक्षा और शांति के लिए भी बड़ा खतरा लगाने में नाकाम साबित हुई है। अमेरिका में भातीरय सुनियोजित हमला किया गया। जिसमें 49 लोगों की मौत सुनील एडला की हत्या कर दी। मई 2018 में भारतीय बनता जा रहा है