बीच चुनाव भाजपा के बदलते चेहरे

बीच चुनाव भाजपा के बदलते चेहरे



प्रधानमंत्री मोदी की 1 मई की दरभंगा की चुनाव सभा का वायरल हुआ वीडियो, वर्तमान चुनाव की दिशा के बारे में जो कहता है, उसे हजारों शब्दों में भी बयान कर पाना मुश्किल है। नरेंद्र मोदी अपने भाषण के आखिर में अचानक समर्थकों से हाथ उठाकर वंदे मातरम बुलवाने लगते हैं और लगातार नारा दुहराते हुए उसे शीर्ष तक ले जाते हैं। कई मिनट तक चले इस प्रसंग में रामविलास पासवान समेत मंच पर उपस्थित अन्य नेतागण एक-एक कर खड़े होने और हाथ उठाकर प्रधानमंत्री की वंदे की पुकार की पूर्ति मातरम से करने के लिए, एक प्रकार से मजबूर हो गए। बहरहाल, बिहार के मुख्यमंत्री और बिहार में राजग गठजोड़ में भाजपा के बराबर सीटों पर लड़ रही जदयू के सर्वेसर्वा, नीतिश कुमार एक झेंप भरी मुस्कुराहट के साथ काफी देर तक बैठे रहते हैं और बाद में अटपटेपन ढंघा से मंच पर अपनी जगह खड़े तो हो जाते हैं, पर नारा लगाने वालों में फि भी शामिल नहीं होते हैं। बिहार में एनडीए की सांप्रदायिक फल्टलाइन का इससे प्रभावशाली रेखांकन दूसरा नहीं हो सकता है। एनडीए के नेता के रूप में प्रधानमंत्री ने, अपने सहयोगी नीतिशकुमार को शर्मिंदा करने वाला यह प्रचार अस्त्र कोई अचानक या संयोग से नहीं चल दिया था। इससे पहले, अपने भाषण के दौरान प्रधानमंत्री ने, दरभंगा सीट से राजद के उम्मीदवार, अब्दुलबारी सिद्दीकी को यह कहने के लिए हमले का निशाना बनाया था कि वंदे मातरम गाने में उन्हें झिझक होगी क्योंकि यह मुसलमानों की धार्मिक मान्यताओं से मेल नहीं खाता है। एक प्रकार से प्रधानमंत्री ने, अपने भाषण के नाटकीय अंत में, इसी हमले को आगे बढ़ाया था। बेशक, न तो वंदे मातरमश को लेकर बहस कोई नयी है और न संघ-भाजपा का उसे दूसरों के देशप्रेम की परीक्षा का पैमाना बनाने की कोशिश करना नया है। लेकिन, यह नया जरूर है कि प्रधानमंत्री ने चुनाव प्रचार के हथियार के रूप में वंदे मातरमश् के नारे का इस्तेमाल, यह जानते हुए भी किया कि यह, उनके गठबंधन के जदयू जैसे सहयोगियों का, असहज और वास्तव में शर्मिंदा करेगा। यह मौजूदा आम चुनाव में, जिसमें दो-तिहाई से ज्यादा सीटों का भाग्य पहले ही मतदान पेटियों में बंद हो चुका है, अपने बहुसंख्यकवादी जिन सर्जिकल स्ट्राइकों को प्रधानमंत्री छप्पन इंच की चेहरे को ज्यादा से ज्यादा उजागर करने की मोदी-शाह छाती के सबूत के तौर पर पेश कर रहे हैं, क्रमशरू उरी प्रधानमंत्री मोदी की 1 मई की दरभंगा की चुनाव की भाजपा की हताशा को दिखाता है। वास्तव में यह तथा पुलवामा के दो असाधारण रूप से बड़े आतंकवादी सभा का वायरल हुआ वीडियो, वर्तमान चुनाव की दिशा आतंकवाद की आरोपी, प्रज्ञा ठाकुर को भोपाल से चुनाव हमलों के बाद हुई थीं जवानों के आदर के सारे दिखावों के बारे में जो कहता है, उसे हजारों शब्दों में भी बयान लड़ाने के भाजपा के निर्णय की ही निरंतरता में है। सवा से भी इस सचाई को छुपाया नहीं जा सकता है कि बाहरी कर पाना मुश्किल है। नरेंद्र मोदी अपने भाषण के महीने लंबे 2019 के आम चुनाव के उत्तरार्द्ध में भाजपा और भीतरी, दोनों पहलुओं से भारत, मोदी के राज के आखिर में अचानक समर्थकों से हाथ उठाकर वंदे की इसी हताशा को, एक प्रतिष्ठिड्डत हिंदी दैनिक की यह पांच साल में पहले से ज्यादा असुरक्षित हो गया है। मातरम बुलवाने लगते हैं और लगातार नारा दुहराते हुए खबर भी दिखाती है कि चुनाव के आखिरी तीन चरण पिछली सरकार के कार्यकाल के मुकाबले में, मौजूदा उसे शीर्ष तक ले जाते हैं। कई मिनट तक चले इस प्रसंग का जिम्मा, भाजपा को पीछे कर आरएसएस ने संभाल सरकार के कार्यकाल में आतंकवादी हमले करीब छुरू रामविलास पासवान समेत मंच पर उपस्थित अन्य किया है। खबर के अनुसार, आरएसएस ने अंतिम तीन गुने हो गए हैंपिछली सरकार के पांच साल में कुल नेतागण एक-एक कर खड़े होने और हाथ उठाकर चरणों में भाजपा के पक्ष में प्रचार के लिए अपने पूरे 80 109 आतंकवादी हमले हुए थे, तो एनडीए के पांच साल प्रधानमंत्री की वंदे की पुकार की पूर्ति मातरम से करने हजार स्वयंसेवक, प्रचारक झोंकने का निर्णय लिया है, में 626 आतंकी हमले हुए हैं। इन हमलों में शहीद होने के लिए, एक प्रकार से मजबूर हो गए। बहरहाल, बिहार जो इसी खबर के अनुसार संभवत: पहली बार ही किया वाले जवानों की संख्या भी तीन गुनी से ज्यादा हो गयी मुख्यमंत्री और बिहार में राजग गठजोड़ में भाजपा के गया है। चूंकि पहले चार चरणों में दो-तिहाई से ज्यादा हैपिछली सरकार के पांच साल में यह संख्या 139 थी, बराबर सीटों पर लड़ रही जदयू के सर्वेसर्वा, नीतिश सीटों के चुनाव के संकेत भाजपा के लिए कुछ अच्छे जो इस सरकार के पांच साल में 483 हो गयी है। आम कुमार एक झेंप भरी मुस्कुराहट के साथ काफी देर तक नहीं हैं, संघ-भाजपा आखिरी 169 सीटों में अभी नहीं नागरिकों की मौतें तो करीब बीस गुनी हो गयी हैं। बैठे रहते हैं और बाद में अटपटेपन ढंघा से मंच पर तो कभी नहीं की लड़ाई लड़ रहे हैं। और क्यों न पिछली सरकार के पांच साल में कुल 12 नागरिकों की अपनी जगह खड़े तो हो जाते हैं, पर नारा लगाने वालों हो?इनमें से पूरी 116 सीटें 2014 में भाजपा ने जीती थीं मौत हुई थी, जो इस सरकार के पांच साल में 210 पर फि भी शामिल नहीं होते हैं। बिहार में एनडीए की और भाजपा के नेतृत्व वाले राजग ने कुल 127 सीटें पहुंच गयी हैं। यहां तक कि छप्पन इंची छाती के दिखावों सांप्रदायिक फल्टलाइन का इससे प्रभावशाली रेखांकन जीती थीं। वैसे बची हुई 169 सीटों में से कुल 121 सीटें के चक्कर में, सीमा पर युद्धविराम के उल्लंघन की घटनाएं दूसरा नहीं हो सकता है। एनडीए के नेता के रूप में उप्र, बिहार, मप्र, राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल भी करीब दस गुनी बढ़ गयी हैं। पिछली सरकार के पांच प्रधानमंत्री ने, अपने सहयोगी नीतिशकुमार को शर्मिंदा जैसे हिंदीभाषी राज्यों में ही हैं और इनमें से 91 फेसद साल में युद्धविराम उल्लंघन की कुल 563 घटनाएं हुई थीं, करने वाला यह प्रचार अस्त्र कोई अचानक या संयोग से सीटें पिछली बार भाजपा ने जीती थीं। मोदी सरकार की जो इस सरकार के पांच साल में 5,596 हो गयी हैं। नहीं चल दिया था। इससे पहले, अपने भाषण के दौरान वापसी के लिए हिंदीभाषी क्षेत्र की यह निर्णायकता, लेकिन, मोदी-शाह ही भाजपा ने, इस चुनाव में सुरक्षा प्रधानमंत्री ने, दरभंगा सीट से राजद के उम्मीदवार, मोदी-शाह की भाजपा को और भी जोरों से संघ की तथा राष्टङ्कवाद को अपना मुख्य हथियार बनाने की अब्दुलबारी सिद्दीकी को यह कहने के लिए हमले का शरण में और नंगी सांप्रदायिकता की ओर धकेल रही है। कोशिश की ही क्यों ? क्योंकि उसके पास पांच साल के निशाना बनाया था कि वंदे मातरम गाने में उन्हें झिझक यहां न सहयोगियों की संवेदनशीलताओं का ध्यान रखने मोदी राज की कोई ऐसी उपलब्धि ही नहीं थी, जिसके होगी क्योंकि यह मुसलमानों की धार्मिक मान्यताओं से की कोई गुंजाइश है और आतंकवाद की जमानत पर बल पर वह जनता से दोबारा वोट मांगने जातीवास्तव मेल नहीं खाता है। एक प्रकार से प्रधानमंत्री ने, अपने छूटी आरोपी को उम्मीदवार बनाने में किसी संकोच की। में स्थिति उल्टी थी और उसे ऐसे ध्यान बंटाऊ मुद्दे की भाषण के नाटकीय अंत में, इसी हमले को आगे बढ़ाया कहने की जरूरत नहीं है कि भाजपा के लिए यह तलाश थी, जिसके जरिए अपने पांच साल के राज से था। बेशक, न तो वंदे मातरमश को लेकर बहस कोई मजबूरी, इस चुनाव के शुरू से ही उसने सुरक्षा के प्रश्न जनता की निराशा तथा नाराजगी को भुलवा सके। मोदी नयी है और न संघ-भाजपा का उसे दूसरों के देशप्रेम तथा राष्टङ्कवाद की जिस दुहाई को अपने प्रचार का मुख्य सरकार रोजगार से लेकर, किसानों की बदहाली और की परीक्षा का पैमाना बनाने की कोशिश करना नया है। मुद्दा बनाया था, उसके बहुत धारदार साबित नहीं होने से कुल मिलाकर देश की खुशहाली तक, हर मामले में पांच लेकिन, यह नया जरूर है कि प्रधानमंत्री ने चुनाव प्रचार पैदा हुई है। अब तक हो चुके दो-तिहाई चुनाव में यह साल पहले जनता से किए गए वादे पूरे करने में ही हथियार के रूप में वंदे मातरमश् के नारे का नैरेटिव खास चला नहीं हैलेकिन, यह नैरेटिव सिर्फ विफल नहीं रही है, उसने देश को उल्टे ही रास्ते पर इस्तेमाल, यह जानते हुए भी किया कि यह, उनके पाकिस्तान विरोधी भावनाओं के आसरे चलता भी तो धकेला है। यहां आय का अंतर बेहिसाब बढ़ गया है। गठबंधन के जदयू जैसे सहयोगियों का, असहज और कहां तक। वर्ना प्रधानमंत्री मोदी की धमाके सुनाई देना 2018 में देश की कुल संपदा में अगर चार रुपए की वास्तव में शर्मिंदा करेगा। यह मौजूदा आम चुनाव में, बंद हो जानेश् की झूठी शेखी अपनी जगह, उनके दावों बढ़ोतरी हुई थी, तो उसमें से तीन रुपए हमारी आबादी जिसमें दो-तिहाई से ज्यादा सीटों का भाग्य पहले ही के अंतर्विरोध को कोई कैसे अनदेखा कर सकता है कि के सबसे अमीर एक फेसद हिस्से की तिजोरी में गए थे।