बेलहर के बीच मोदी का चेहरा

बेलहर के बीच मोदी का चेहरा



निश्चित तौर पर इस बार कोई लहर नही है। मतदान का अंतिम चरण उल्टी गिनती गिन रहा है। विपक्षी कई हिस्सों में विभाजित है। प्रधानमंत्री पद के लिए कोई स्पष्ट चेहरा जनता के सामने नहीं है। इसका पूरा पूरा फयदा उठाने के लिए भाजपा ऐड़ी चोटी का जोर लगाए है। ऐसे में भाजपा गठबंधन का सुस्पष्ट रूप से प्रधानमंत्री पद पर एक बार फि मोदी को बागडोर सौपने का निर्णय निश्चित तौर से विपक्षियों के लाख दावों के बावजूद ताकत दे रहा है। 17वीं लोकसभा के लिए हो रहे चुनाव की कमी या खासियत यह है कि इस बार किसी की लहर नहीं है। जनता का रुझान भी स्पष्ट नहीं है। किसी भी दल या गठबंधन की जीत को लेकर कोई दावा करना मुश्किल है। इसलिए कई नेता किसी चुनाव पूर्व मोर्चे को स्पष्ट बहुमत न मिलने की स्थिति के लिए अभी से तैयारी करने लगे हैं। उन्हें लगता है कि नतीजों से पहले ही कुछ अंडरस्टैंडिग बना ली जाए ताकि बाद में आसानी हो। ऐसा सोचने वालों में वे क्षेत्रीय नेता सबसे आगे हैं जो किसी भी गठबंधन का हिस्सा नहीं हैं। चुनाव की तारीखों की घोषणा के पहले से ही वे एक तीसरा विकल्प बनाने की कोशिश करते रहे हैं। जैसे, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव ने सोमवार को डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन से मुलाकात की। कुछ समय पहले वे केरल के मुख्यमंत्री पी विजयन से भी मिले थे। फिलहाल बंगाल में जो घटनाक्रम चल रहा है वह इस बॉत का संकेत कर रहा है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हर हाल में मोदी को रोकने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है। कोलकाता में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से राव ने पिछले साल बात की थी। उनकी पूरी कोशिश है कि एक गैर-बीजेपी, गैर- कांग्रेस मोर्चा बने और वही केंद्र में सत्ता संभाले। लेकिन उन्हें भी इस बात का पूरा अंदाजा है कि क्षेत्रीय है। वह भी चार दिन बाद हो जाएगा। आखिरी चरण में काम है। जमीनी स्तर की राजनीतिक सचाई के मद्देनजर पार्टियां अपने दम पर सरकार नहीं बना पाएंगी। अब सिर्फ 59 लोकसभा सीटों के चुनाव होने हैं। 484 संभावना जताई जा रही थी कि यादव जहां एसपी के निश्चित तौर पर इस बार कोई लहर नही है। मतदान तक तीसरे मोर्चे की जो भी सरकारें बनी हैं, उन्हें लोकसभा सीटों के मतदाता अपना फैसला सुना चुके उम्मीदवार होंगे, वहां तो गठबंधन को वोट करेंगे का अंतिम चरण उल्टी गिनती गिन रहा है। विपक्षी कई कांग्रेस का और उससे पहले बीजेपी और लेफ्ट पार्टियों हैं। अलग-अलग राज्यों से जो संकेत हैं, उनके जरिए लेकिन बीएसपी उम्मीदवारों को उनका वोट जाना बहुत हिस्सों में विभाजित है। प्रधानमंत्री पद के लिए कोई का समर्थन हासिल रहा है, हालांकि वे अल्पजीवी ही यह कहा जाने लगा है कि यूपी का फैसला ही 17वीं मुश्किल है। इसी तरह दलित वोटर्स के लिए कहा जा स्पष्ट चेहरा जनता के सामने नहीं है। इसका पूरा पूरा सिद्ध हुईं। जहां तक कांग्रेस का प्रश्न है तो उसने खुद लोकसभा का भाग्य तय करेगा। यूपी में लड़ाई बिल्कुल रहा था कि उनके लिए यादवों से अपनी पुरानी अदावत फयदा उठाने के लिए भाजपा ऐड़ी चोटी का जोर लगाए को बीजेपी के विकल्प के रूप में पेश किया है और सीधी है। एक तरफबीजेपी नीत एनडीए है और दूसरी को भूल जाना आसान नहीं होगा। मुस्लिम वोटबैंक को है। ऐसे में भाजपा गठबंधन का सुस्पष्ट रूप से कई क्षेत्रीय दलों के साथ समझौता किया है, इस तरफ एसपी-बीएसपी नीत महागठबंधन। 2014 को लेकर यह धारणा थी कि उसकी पहली प्राथमिकता प्रधानमंत्री पद पर एक बार फि मोदी को बागडोर अलिखित शर्त के साथ कि बहुमत मिलने पर राहुल तरह इस बार भी यूपी के जनादेश के बिल्कुल स्पष्ट बीजेपी को हराना होगी, इसलिए उसे जहां-जहां कांग्रेस सौपने का निर्णय निश्चित तौर से विपक्षियों के लाख गांधी ही प्राइम मिनिस्टर होंगे। इन दलों के नेताओं, आने की संभावना है। कोई किंतु-परंतु नहीं दिखाई दे का उम्मीदवार मजबूत दिखेगा, वह कांग्रेस को शिफ्ट दावों के बावजूद ताकत दे रहा है। 17वीं लोकसभा के जैसे डीएमके के स्टालिन और आरजेडी के तेजस्वी रहा है। यूपी जिसके साथ होगा, खुलकर होगा और हो सकता है। यानी कि इस गठबंधन के जरिए एक लिए हो रहे चुनाव की कमी या खासियत यह है कि यादव ने समय-समय पर इसकी पुष्टि भी की है। ऐसे यही 2019 की सत्ता तक पहुंचने के ख्वाहिशमंद दलों ऐसी तस्वीर की कल्पना की जा रही थी जहां नेताओं इस बार किसी की लहर नहीं है। जनता का रुझान भी में कांग्रेस से तीसरे मोर्चे को समर्थन देने की अपेक्षा के लिए टर्निंग पॉइंट भी होगा। छठे चरण के बाद सबसे के हाथ मिलाने के बावजूद उनके वोटर्स के दिलों की स्पष्ट नहीं है। किसी भी दल या गठबंधन की जीत को करना अभी के लिए ज्यादती है। पार्टी के वरिष्ठ नेता ज्यादा महत्वपूर्ण चरण में यूपी पर सबकी नजर है। दूरी दिख रही थी। कहा जा रहा था कि यही फैक्टर लेकर कोई दावा करना मुश्किल है। इसलिए कई नेता सलमान खुर्शीद ने कह भी दिया है कि जो पार्टियां पिछले चुनाव में एक छत्र बहुमत पाने वाली भाजपा को बीजेपी की मुश्किल को खत्म कर देगा, लेकिन जब किसी चुनाव पूर्व मोर्चे को स्पष्ट बहुमत न मिलने की कांग्रेस के साथ नहीं है, वे उसके समर्थन की अपेक्षा न इस बार उत्तर प्रदेश में गड़बड़ी नजर आ रही हैं इसकी मतदान के चरण शुरू हुए और धीरे-धीरे आगे बढ़ते स्थिति के लिए अभी से तैयारी करने लगे हैं। उन्हें करें। कांग्रेस शायद यह उम्मीद कर रही है कि यूपीए भरपाई वह पश्चिम बंगाल से करती दिख रही है। गए तो ये तमाम शंकाएं निर्मूल साबित होती गईंपाया लगता है कि नतीजों से पहले ही कुछ अंडरस्टैंडिग बना के बहुमत से थोड़ी दूर रह जाने पर क्षेत्रीय दल उसे एसपी-बीएसपी गठबंधन के बाद राज्य में दलित- गया कि एसपी-बीएसपी का वोट एक दूसरे को ली जाए ताकि बाद में आसानी हो। ऐसा सोचने वालों अपना समर्थन दे देंगे। उधर बीजेपी ने भी संकेत दिया मुसलमान-यादव के एक साथ आने की बात कही जा ट्रांसफ हो रहा है। ऐसे में यह माना जा रहा है कि में वे क्षेत्रीय नेता सबसे आगे हैं जो किसी भी गठबंधन है कि अगर सीटें कम पड़ीं तो वह साथियों के सहयोग रही है। यही समीकरण बीजेपी के लिए 2014 को भाजपा के लिए यूपी में खतरा है। इसलिए 23 मई से का हिस्सा नहीं हैं। चुनाव की तारीखों की घोषणा के से सरकार बना लेगी। वक्त आने पर भाजपा यूपी के दोहराने के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा बनकर खड़ा है। पहले यकीनी तौर पर ऐसा कुछ नहीं कहा जा सकता पहले से ही वे एक तीसरा विकल्प बनाने की कोशिश गठबंधन में तोड़फेड करके बसपा को अपने साथ मिला 2014 के चुनाव में बीजेपी ने 80 सीट वाले राज्य में कि यूपी किसके साथ है। लेकिन इतना तय है कि वह करते रहे हैं। जैसे, तेलंगाना के मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर सकती है। साथियों से उसका मतलब ऐसे दलों से हैं, विपक्ष का सूपड़ा साफकर दिया था। 71 सीट पर खुद जिसके साथ होगा, दिल्ली की सत्ता पर दावा उसका ही राव ने सोमवार को डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन से जो एनडीए में नहीं हैं। यानी क्षेत्रीय दलों का समर्थन जीत दर्ज की थी और दो पर उसके सहयोगी जीते थे। मजबूत होगावाकई किसी ब्लॉक बस्टर फिल्म की मुलाकात की। कुछ समय पहले वे केरल के मुख्यमंत्री दोनों गठबंधनों के राडार पर है। शायद इसीलिए केंद्र बाकी में सात में पांच सीट एसपी और दो कांग्रेस के तरह इस चुनावी ब्लॉक बस्टर की कहानी अब पी विजयन से भी मिले थे। फिलहाल बंगाल में जो सरकार ने इधर ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक हिस्से गई थीं। बीएसपी का उस चुनाव में खाता भी क्लाइमैक्स की ओर बढ़ रही है। सात चरणों में 17वें घटनाक्रम चल रहा है वह इस बॉत का संकेत कर रहा से संबंध सुधारने की कोशिश की है। उसे लगता है कि नहीं खुल पाया था। 2017 के विधानसभा चुनाव में भी आम चुनाव का छठा चरण पूरा हो गया है और 19 मई है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हर जरूरत पड़ने पर नवीन पटनायक, के. चंद्रशेखर राव बीजेपी के हाथ कुछ इसी तरह पिटने के बाद एसपी- को सातवें और अंतिम चरण के साथ ही दुनिया के हाल में मोदी को रोकने के लिए किसी भी हद तक जा और जगनमोहन रेड्डी उसका साथ दे सकते हैं। सच यह बीएसपी ने अपने राजनीतिक वजूद को बचाने के लिए सबसे बड़े लोकतंत्र का यह महोत्सव संसद चुनाव सकती है। कोलकाता में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री है कि ये तीनों नेता संख्याबल देखकर ही कोई निर्णय ढाई दशक पुराने गिले-शिकवे को भुलाकर साथ चलने संपन्न हो जाएगा। लोकसभा की कुल 543 सीटों के ममता बनर्जी से राव ने पिछले साल बात की थी। करेंगे क्योंकि केंद्र से नजदीकी इन्हें क्षेत्रीय राजनीति में का फैसला किया। जब दोनों दलों के बीच गठबंधन लिए हो रहे चुनावी महासमर के छह चरणों के बाद उनकी पूरी कोशिश है कि एक गैर-बीजेपी, गैर- मजबूत बनाएगी। छह चरणों के चुनाव हो चुके हैं और हुआ तो यह कहा जा रहा था कि एसपी-बीएसपी के अंतिम और सातवें चरण के लिए आठ राज्यों की सिर्प कांग्रेस मोर्चा बने और वही केंद्र में सत्ता संभाले। अब महज आखिरी चरण का मतदान बाकी रह गया वोट बैंक का एक दूसरे को ट्रांसफर होना बहुत मुश्किल 59 सीटें शेष रह गई हैं