चुनाव आयोग भी मानता है ईवीएम को स्वतंत्र मतदान में बाधा

चुनाव आयोग भी मानता है ईवीएम को स्वतंत्र मतदान में बाधा



निर्वतमान केंद्र सरकार में मंत्री मेनका गांधी ने अपने संसदीय चुनाव क्षेत्र में पहले मुस्लिम और फिर सर्व-सामान्य मतदाताओं को यह ताकीद करते हुए एक मार्के की बात की है कि उन्हें जहां से जितने वोट मिलेंगे, उसी के अनुसार काम होगा। चुनाव आयोग द्वारा इस टिप्पणी पर 48 घंटों के लिए मेनका को चुनाव प्रचार से रोकने का दंड भी दिया गया, लेकिन इससे बड़ा सवाल यह खड़ा हुआ कि क्या संविधान-प्रदत्त श्गुप्त मतदानश् मात्र एक छलावा है? मेनका गांधी ने एक गांव के मतदाताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि चुनाव में जिस गांव से उन्हें जितने वोट मिलते हैं, उसके अनुसार वे उसे श्डीश से लेकर श्सीयूर् तक की श्रेणियों में रखती हैं। जहाँ से 80 प्रतिशत वोट मिलते हैं, वो डी में आते हैं और उनके काम सबसे पहले होते हैं जहाँ 60 प्रतिशत वोट मिलते हैं, वो एईश् में आते हैं, और श्डीश् श्रेणी के गांवों के काम के बाद उनका नम्बर आता है। इसी तरह जहां 50 प्रतिशत वोट मिलते हैं, वो जेड श्रेणी में और 30 प्रतिशत वाले सीयू श्रेणी में आते हैं और उनके काम भी उसी के मुताबिक होते हैं। कमाल यह है कि मेनका गांधी द्वारा अनजाने में उजागर की गई गुप्त की बजाए घोषित मतदान की इस बात को चुनाव आयोग भी मानता है। उसने 2008 में ही ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) से मतों के बूथवार परिणाम के तरीके को स्वतंत्र, निर्भीक मतदान में बड़ी बाधा बताया था। यह बात लॉ कमीशन ने मार्च 2015 में चुनाव सुधार पर केंद्र सरकार को सौंपी अपनी रपट में भी रेखांकित की थी। उन्होंने लिखा था कि 21 नवम्बर 2008 को चुनाव आयोग ने सचिव, कानून एवं विधि मंत्रालय को पत्र लिखकर यह मांग की थी कि चुनाव में ईवीएम के मतों की गिनती टोटेलाईजर से की जा सके, इसके लिए चुनाव नियमों में जरुरी बदलाव किए जाएं। टोटेलाइजर 14-14 ईवीएम मशीनों को जोड़कर की जाने वाली गणना की पद्धति होती है। यह रिपोर्ट आगे कहती है -चुनाव आयोग के इस सुझाव के पीछे सबसे बड़ा तर्क यह था कि वोटों की गिनती के वर्तमान तरीके में हर बूथ के अनुसार परिणाम मालूम पड़ते हैं, जिसके चलते उस क्षेत्र के मतदाता के उत्पीड़न, धमकी और चुनाव के बाद प्रताड़ना की संभावना रहती आम अपनी पसंद की पार्टी का काम करते हैं इसलिए है। इसका मतलब साफ है, जब तक ईवीएम से वोटों की उन्हें गिना जा सकता है। ऐसे में जब हॅर्म-20 में चुनाव निर्वतमान केंद्र सरकार में मंत्री मेनका गांधी ने गिनती का तरीका नहीं बदला जाता, तब तक स्वतंत्र परिणाम देखते हैं तो गाँव में शेष बचे वोट के आधार पर अपने संसदीय चुनाव क्षेत्र में पहले मुस्लिम और फिर मतदान सुनिश्चित नहीं हो सकता ।गरीब और वंचित वर्ग निचली जाति के लोगों की वोट का अंदाजा लगा लिया सर्व-सामान्य मतदाताओं को यह ताकीद करते हुए एक का मतदाता यह सच्चाई ना सिर्फ जानता है, बल्कि वर्षों जाता है। यह भी समझ आ जाता है कि अमुक गाँव किस मार्के की बात की है कि उन्हें जहां से जितने वोट मिलेंगे, से उसकी कीमत भी चुकाता आ रहा हैकिस समुदाय पार्टी के साथ था, किसके नहीं। कई बार लोग ही कहते उसी के अनुसार काम होगा। चुनाव आयोग द्वारा इस ने किस को वोट दिया, यह जानकारी सिर्फउमीदवार तक हैं कि कौन-सा कांग्रेस का गांव है, और कौन-सा टिप्पणी पर 48 घंटों के लिए मेनका को चुनाव प्रचार से ही सीमित नहीं रहती। चुनाव के बाद धर्म, जाति, भाजपा या किसी अन्य पार्टी का। सवाल यह है कि किस रोकने का दंड भी दिया गया, लेकिन इससे बड़ा सवाल समुदाय, क्षेत्र के अनुसार मतदाताओं के मतों की चीर- गांव, मोहल्ले, जाति, समुदाय ने किसको वोट दिया है, यह खड़ा हुआ कि क्या संविधान-प्रदत्त श्गुप्त मतदानश् फड़कर दुनिया को बताने का एक बड़ा धंधा मीडिया में यह उजागर ना हो इसके लिए क्या किया जाए? जब मात्र एक छलावा है? मेनका गांधी ने एक गांव के भी होता है ताकि पता चल सके कि किसने, किसे वोट मतदान मतपत्रों के जरिए होता था, तब इस बात से मतदाताओं को संबोधित करते हुए कहा था कि चुनाव दिया है। खासकर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया जो एक तरफ निपटने के लिए 1993 में चुनाव प्रक्रिया नियम में जिस गांव से उन्हें जितने वोट मिलते हैं, उसके धर्म और जाति के नाम पर राजनीति करने वाले नेताओं (निर्वाचन का संचालन अधिनियम, 1961) में धारा 59 अनुसार वे उसे श्डीश से लेकर श्सीयूर् तक की और राजनीतिक पार्टियों को आड़े हाथों लेता है, दूसरी (क) जोड़ी गई थीइस धारा के अनुसार, किसी खास श्रेणियों में रखती हैं। जहाँ से 80 प्रतिशत वोट मिलते हैं, तरफ वह खुद उसी काम को गला फड़-फड़ कर करता चुनाव क्षेत्र में अगर मतदाताओं को प्रताड़ना की शंका वो डी में आते हैं और उनके काम सबसे पहले होते हैं है। अपने नामी विशेषज्ञों के हवाले से मीडिया इस बात हो, तो उन्हें सुरक्षा प्रदान करने के लिए पूरे क्षेत्र के सभी जहाँ 60 प्रतिशत वोट मिलते हैं, वो एईश् में आते हैं, का विज्ञापन भी करता है कि उसका चुनाव परिणामों का बूथों की मतपेटियों के मतपत्रों को एक साथ मिलाकर और श्डीश् श्रेणी के गांवों के काम के बाद उनका नम्बर आंकलन सटीक होगा। यानि कल तक जो जानकारी उनकी गिनती की जाए। ईवीएम से मतदान की प्रक्रिया आता है। इसी तरह जहां 50 प्रतिशत वोट मिलते हैं, वो आमतौर पर राजनीतिक पार्टियों तक सीमित रहती थी शुरू होने के बाद मतदाताओं के लिए इस तरह की कोई जेड श्रेणी में और 30 प्रतिशत वाले सीयू श्रेणी में आते उसे मीडिया ना सिर्फआम लोगों के बीच लेकर जाता है, भी सुरक्षा नहीं बची है। ईवीएम में मतों की गिनती के हैं और उनके काम भी उसी के मुताबिक होते हैं। कमाल बल्कि उसके कारणों पर बहस करवाकर उसे और पुष्ट संचालन के लिए 1992 में चुनाव प्रक्रिया नियम यह है कि मेनका गांधी द्वारा अनजाने में उजागर की गई करता है। जब हमारे देश में गुप्त मतदान है तो मेनका (निर्वाचन का संचालन अधिनियम, 1961) में धारा 66 गुप्त की बजाए घोषित मतदान की इस बात को चुनाव गांधी जैसे नेताओं को कैसे मालूम पड़ता है कि किस (क) जोड़ी गई थी। इसी के नियम 56 (2) (ग) के आयोग भी मानता है। उसने 2008 में ही ईवीएम समुदाय, जाति और गांव के लोगों ने किसको वोट दिया अनुसार वोटों की बूथवार गिनती कर उन्हें फॅर्म-20 में (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) से मतों के बूथवार है? चुनाव आयोगश् मतों की गिनती करते समय हर बूथ दर्ज किया जाता है। चुनाव के अपने लम्बे अनुभव के परिणाम के तरीके को स्वतंत्र, निर्भीक मतदान में बड़ी से जुडी ईवीएम मशीन से प्राप्त मतों की अंतिम संख्या बाद, इस मुद्दे को लेकर हमने वर्ष 2013 में चुनाव बाधा बताया था। यह बात लॉ कमीशन ने मार्च 2015 को सँर्म-20 में दर्ज करता है और फि उसे जोडकर पूरे आयोगश् को ई-मेल के जरिए एक पत्र लिखा था। में चुनाव सुधार पर केंद्र सरकार को सौंपी अपनी रपट चुनाव क्षेत्र में किस उम्मीदवार को कितने मत मिले, यह जबाव में आयोग ने बताया था कि इस मुद्दे पर वह में भी रेखांकित की थी। उन्होंने लिखा था कि 21 निकालता है। चुनाव आयोग की वेब साईट से किसी भी (आयोग) पहले से ही काम कर रहा है। उन्होंने भारत नवम्बर 2008 को चुनाव आयोग ने सचिव, कानून एवं विधानसभा या लोकसभा के पिछले चुनावों के भी पॅर्म- सरकार को 14 ईवीएम के वोटों की एक साथ गिनती विधि मंत्रालय को पत्र लिखकर यह मांग की थी कि 20 को देखा जा सकता है। एक बूथ में आमतौर पर करने के लिए टोटेलाईजरश् का उपयोग करने हेतु चुनाव में ईवीएम के मतों की गिनती टोटेलाईजर से की 1000 वोट होते हैं। अगर गांव बड़ा है, तो उसमें एक से चुनाव संचालन अधिनियम में जरुरी बदलाव के लिए जा सके, इसके लिए चुनाव नियमों में जरुरी बदलाव ज्यादा बूथ होंगे। इनमें से हर बूथ पर 200 से 700 तक लिखा था। इन दिनों इसी मुद्दे पर दो जनहित याचिकाएं किए जाएं। टोटेलाइजर 14-14 ईवीएम मशीनों को मतदाता अपने मत का प्रयोग करते हैं। अब दो बातें हैं- सुप्रीम कोर्ट में विचारार्थ लगी हैं। पहली, वकील योगेश जोड़कर की जाने वाली गणना की पद्धति होती है। यह पहली, हमारे देश के गांवों, कस्बों, यहां तक कि शहरों गुप्ता द्वारा दायर की गई है और दूसरी, दिल्ली के भाजपा रिपोर्ट आगे कहती है -चुनाव आयोग के इस सुझाव के में जाति, धर्म, समुदाय के लिहाज से लोग अलग-अलग नेता अश्विन कुमार उपाध्याय द्वारा। जनवरी 12, 2018 पीछे सबसे बड़ा तर्क यह था कि वोटों की गिनती के बस्तियों में बसे होते हैं। कई तो गांव-के-गांव ही एक को इन याचिकाओं की सुनवाई के दौरान चुनाव वर्तमान तरीके में हर बूथ के अनुसार परिणाम मालूम जाति या समुदाय के होते हैं। दूसरी, गांव में अगर कई आयोगश् की ओर से उसके वकील ने कहा था कि श्मत पड़ते हैं, जिसके चलते उस क्षेत्र के मतदाता के उत्पीड़न, जाति के लोग हुए तो प्रभावशाली जाति के लोग तो खुले की गुप्तता, व्यक्ति की निजता और क्षेत्र विशेष में रहने की मतदाताओं को संबोधित करते हुए ऑर्म-20 में दर्ज