चुनाव के बाद भारत का तेल संकट से मुकाबला

चुनाव के बाद भारत का तेल संकट से मुकाबला



 


अमेरिका ने भारत सहित कुल आठ देशों को ईरान से तेल आयात करने को लेकर दी गई छूट खत्म कर दी है। पिछले साल डॉनल्ड ट्रंप ने ईरान के साथ हुआ परमाणु करार रद्द कर दिया था और उसके तेल आयात पर प्रतिबंध लगा दिए थे। लेकिन इस प्रतिबंध से ईरानी तेल के आठ प्रमुख खरीदारों भारत, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान, तुर्की, इटली और यूनान को छह महीने तक की अवधि के लिए छूट दी थी। इससे यह लगा था कि अमेरिका ईरान से अपनी टकराहट का नुकसान अपने मित्र देशों को नहीं होने देगा। पर अब ऐसा लग रहा है कि उसने हर कीमत पर ईरान को बर्बाद करने का मन बना लिया है। ईरान से तेल के सबसे बड़े खरीदार भारत और चीन हैं। वित्त वर्ष 2017-18 में भारत ने ईरान से 2.26 करोड़ टन कच्चे तेल की खरीदारी की थी, जिसे प्रतिबंध लागू होने के बाद घटाकर 1.50 करोड़ टन सालाना कर दिया गया था। अब यह आयात पूरी तरह बंद होने से देश में ऊर्जा संकट पैदा होने की आशंका गहरा रही है। ऐसा और मुल्कों में भी हो सकता है। कई विशेषज्ञ मानते हैं कि इसका विश्वव्यापी असर पड़ेगा क्योंकि ईरान से तेल निर्यात पूरी तरह ठप होने से दुनिया में तेल की सप्लाई प्रभावित होगी। कच्चे तेल की कीमतों में इससे भारी उछाल आएगा दुनिया की ज्यादातर अर्थव्यवस्थाओं पर नकारात्मक असर पड़ेगा। डर है कि इससे विश्व अर्थव्यवस्था कहीं एक और मंदी की चपेट में न आ जाए। हालांकि विशेषज्ञों का दूसरा वर्ग इससे इनकार करता है। दबाव झेलना पड़े। हालांकि सरकार ने आश्वस्त उसके मुताबिक ईरान से तेल सप्लाई कम या बंद किया है कि हमारे पास वैकल्पिक व्यवस्था हैहोने की स्थिति में दूसरे तेल उत्पादक देशों के वैसे हमारे लिए इसका एक और नुकसान भी हैबीच बाजार में उसका हिस्सा हथियाने की होड़ ईरान तेल के बदले हमसे कार्फ सारी चीजें शुरू होगी। इसके लिए वे अपना उत्पादन बढ़ाएंगे खरीदता है। उसकी इकॉनमी लड़खड़ाई तो हमारे तो तेल की कीमतें नियंत्रण में आ जाएंगी। तेल निर्यात पर भी बुरा असर पड़ेगा। ईरान में चाबहार निर्यातक देशों के संगठन (ओपेक) ने अभी ही बंदरगाह के निर्माण जैसी हमारी कुछ दूरगामी अपना उत्पादन बढ़ा दिया है। रूस ने भी मई से परियोजनाओं के लिए भी यह बुरी खबर है। सितंबर 2018 के बीच अपने तेल उत्पादन में विकासशील देशों को देर-सबेर अमेरिकी रवैये भारी बढ़ोतरी की थी। एनर्जी इनफॅर्मेशन का प्रतिकार करना ही होगा। तेल से न सिर्फ एडमिनिस्ट्रेशन फेरकास्ट के मुताबिक साल दुनिया की नब्बे प्रतिशत से अधिक गाड़ियाँ और 2019 में अमेरिका का तेल उत्पादन 10 फसदी अधिकतर फैक्ट्रियाँ चलती हैं बल्कि ज्यादातर बढ़ने का अनुमान है और यह प्रतिदिन 1.18 देश अपने भविष्य के विकास की रूपरेखा तेल करोड़ बैरल के स्तर तक पहुंचेगा। तो क्या माना की धार को देखकर तय करते हैं, ऐसे में तेल के जाए कि अमेरिका का हालिया तेवर तेल का खेल लिए टकराव स्वाभाविक है। 1950 तक कोयला बदलकर इसे अपनी तरफमोड़ने के लिए है? जो ऊर्जा का प्रमुख स्रोत था. लेकिन 1930 के दशक भी हो, तेल का नया सिस्टम बनने में वक्त से ही तेल की राजनीति की कहानी शुरू हो गई लगेगा। मुमकिन है, कुछ समय के लिए हमें थी, यानी वो समय जब मध्य पूर्व एशिया में तेल मिलना शुरू हुआ। सबसे पहले ब्रिटेन और फ् िरूप में सामने आएगा। कच्चे तेल की कीमतें केरोसीन पर 4,489 करोड़ रुपये खर्च करने अमरीका ने तेल को लेकर योजनाएँ बनाईं जिनमें बढ़ने से महंगाई के फि से ऊपर की ओर जाने होंगे। साल साल 2018-19 में भारत के लिए तेल की कूटनीति की कई योजनाएँ शामिल रही। की आशंका बन जाएगी. जानकारों का मानना है ईरान चौथा सबसे बड़ा तेल निर्यातक देश रहा तेल पर शोध कर रहे जाने माने विश्लेषक के कि चुनाव तक तो सरकार किसी तरह से इसके है. कीमतों और कर्ज सुविधा के लिहाज से मुताबिक पिछले कई दशकों से अमरीकी असर को रोक कर रखेगी, लेकिन नई सरकार भारत को कोई और देश इतनी सुविधा नहीं दे दबदबे का एक बड़ा कारण ऊर्जा के स्रोतों का बनते ही पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ा दिए जाएंगे सकता. अमेरिका ने यह रोक ऐसे समय लगाई नियंत्रण भी है। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से ही और इसकी वजह से महंगाई भी बढ़ जाएगी। है, जब भारतीय क्रूड बास्केट (दुबई, ओमान अमरीका की ये कोशिश रही है कि तेल के इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, चालू खाते का और ब्रेट क्रूड कीमतों का औसत) की कीमत भंडारों से उनको लगातार, बिना किसी परेशानी घाटा कच्चे तेल की ऊंची कीमतों से व्यापार बढ़ रही है और देश में लोकसभा चुनाव का के तेल मिलता रहे और तेल के उत्पादन और घाटा और चालू खाते का घाटा बढ़ेगा, क्योंकि दौर है. जानकारों का कहना है कि भारत ईरान उसकी बिक्री बिना किस रुकावट के चलती रहे। आयात की लागत बढ़ जाएगी. केयर के मुताबिक से अपने तेल आयात में भारी कटौती तो कर अमरीका ने 1950 के दशक से ही कई देशों की अगर कच्चे तेल की कीमतें 10 फसदी बढ़ जाएं, सकता है, लेकिन शायद वह 1 लाख बीपीडी अंदरूनी राजनीति में तेल के कारण दखल देना तो चालू खाते के घाटे में जीडीपी का 0.4 से 0.5 (बैरल पर डे) का आयात ईरान से जारी रखे शुरू कर दिया था। बहरहाल अब जबकि एक फेसदी तक का इजाफ हो सकता है। चालू खाते और इसके लिए रुपये में भुगतान सुविधा का मई के बाद अमरीका का यह प्रतिबंध लागू हो का घाटा बढ़ने से पहले से ही कारी ढलान पर लाभ उठा सकता है। यह देश में ऊर्जा सुरक्षा के जाएगा और तीन मई को भारत में नई सरकार का चल रहे रुपये में डॉलर के मुकाबले और लिए भी जरूरी है. साथ ही, राजनीतिक लिहाज आगाज होगा तब नई सरकार को इस बड़े संकट गिरावट आ सकती है. आयात बिल बढ़ने से से देखें तो ईरान का भारत के साथ ऐतिहासिक से निपटना होगा। एक अनुमान के मुताबिक रुपये पर दबाव बढ़ेगा। ईरान से तेल आयात रिश्ता रहा है और भारत इस संपर्क को बनाए कच्चे तेल की कीमतों में तीन से पांच प्रतिशत बंद होने की वजह से मिलने वाला महंगा रखने की पूरी कोशिश करेगा। भारतीय की अनुमानित वृद्धि से देश का निर्यात कारोबार कच्चा तेल सरकारी खजाने पर भी असर रिफइनरियां अब अपनी क्रूड जरूरतों को पूरा प्रभावित होगा। इस प्रतिबंध से निर्यात क्षेत्र पर डालेगा. यह असर राजस्व और खर्च दोनों पर करने के लिए ओपेक, मेक्सिको और अमेरिका प्रभाव पड़ना तय है क्योंकि सभी तरह के उत्पादन होगा। राजस्व के मोर्चे की बात करें तो पेट्रोल- से खरीदारी बढ़ाने की तैयारी कर रही हैं। एवं सेवाओं में कच्चा तेल एक मध्यवर्ती सामान डीजल की कीमतें बढ़ने से राज्यों का राजस्व बहरहाल अमरीका से किसी भी देश के कितने की तरह इस्तेमाल होता है। इस बॉत की भी बढ़ेगा। क्योंकि उनका टैक्स कीमत के आधार भी अच्छे तालुक हो अमरीका अपनी चौधराहट आशंका है कि तेल की कीमतों में 10 प्रतिशत पर होता है। लेकिन केंद्र के राजस्व पर कोई कायम रखने के लिए तेल का खेल दशकों से की वृद्धि से व्यापार घाटा सात अरब डॉलर बढ़ असर नहीं आएगा, क्योंकि उसे प्रति लीटर खेलता चला रहा हैचिन्ता इस बॉत की है कि सकता है। इसके परिणामस्वरूप व्यापार घाटा निश्चित टैक्स मिलता है. ईंधन पर सब्सिडी खर्च भारत जैसे देश में अभी अरबों खरबों रूपये खर्च 5.6 प्रतिशत बढ़ जाएगा और जीडीपी में 0.2 बढ़ जाने से केंद्र सरकार का व्यय बढ़ेगा। केयर करने आम चुनाव सम्पन्न हो रहे हैअमरीकी प्रतिशत की कमी आएगी. इससे रुपये पर भी ने पहले अनुमान जारी किया था कि इस वित्त प्रतिबंध के बाद भारत को एक बड़े आर्थिक दबाव बढ़ेगा और इसका असर महंगे आयात के वर्ष में एलपीजी पर 32,989 करोड़ रुपये और झटके के लिए तैयार रहना होगा।