चुनावी माहौल में एक 'अ साधारण' रिपोर्टर

चुनावी माहौल में एक 'अ साधारण' रिपोर्टर 



इलाहाबाद और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालयों से उच्च शिक्षा लेने के बाद एमआईटी से पीएचडी करके वहीं अमेरिका में अकादमिक क्षेत्र में बुलंद मुकाम बनाने वाले एक प्रोफेसर और मुंबई के कुछ बहुत ही विद्वान एवं सामाजिक रूप से जागरूक पत्रकारों के साथ चुनाव यात्रा एक बेहतरीन अनुभव है। आम तौर पर चुनाव यात्राओं के दौरान कौन जीत रहा है या कौन-कौन हार रहा है, यह बातें उठती रहती हैंया कितनी सीटें किस पार्टी को मिलने वाली हैं, यह बातें मुझे बोर करती हैं। हालांकि अपने ग्रुप में भी यह चर्चा आती रहती है लेकिन हमारे साथियों की यात्रा का स्थायी भाव उत्तरप्रदेश की राजनीतिक विकास यात्रा को समझना है। देश के चोटी के पत्रकार कुमार केतकर और ब्राउन विश्वविद्यालय के विश्वविख्यात प्रोफेसर आशुतोष वाष्र्णेय के साथ पूर्वी उत्तरप्रदेश की चुनाव यात्रा मुझे अब तक अभिभूत कर चुकी है। मैं अपने को धन्य मानना शुरू कर चुका हूं। लोकसभा के चुनाव में जो जीतेगा वह सांसद बनेगा लेकिन लखनऊ से बनारस तक की हमारी यात्रा में हमारे साथी, कुमार केतकर सांसद हैं लेकिन पत्रकारिता के धर्म में अड़चन न आने पाए इसलिए वे अपने इस परिचय को पृष्ठभूमि में रख कर चल रहे हैंहमारी पूरी यात्रा में दलितों को केवल वोटर के रूप में पहचानने की कवायद से बार-बार सामना हुआ। मुझे पता चलता रहता था कि मेरे गांव में सही अर्थों में दलित विषयों की चेतना है। हरिजन शब्द के प्रयोग की राजनीति को मैंने 1973 में ही शिक्षा का महत्व, सरकारी नौकरी का महत्व, मेरे मुद्दों पर बात हुई। शासक वर्गों की कोशिश विकास यात्रा को कोई नहीं रोक सकेगा। क्योंकि मिलता हूं तो मुझे अपनी माई की याद आ जाती अपने गांव के दलित लोगों के वरिष्ठ दलित लोगों गांव के दलितों की राजनीतिक समझदारी में बड़ा रहती है कि दलितों को ब्राह्मण-विरोधी साबित इन दलित नौजवानों ने तय कर रखा है कि कोई है। जब पूरे लाल की प्रथम नागरिक और इलाहाबाद और जवाहरलाल नेहरू को बताने की कोशिश की थी। अमेरिका के कारक बना। बाद में जब दलित मुद्दा आन्दोलन किया जाए और सारी बहस को जाति बनाम भी राजनीतिक पार्टी अगर उनके भविष्य को डॉ। चंचल की माई मुझे कलेजे से लगाकर विश्वविद्यालयों से उच्च शिक्षा लेने के बाद ब्लैक पैंथर्स के बारे में दिनमान ने कुछ छापा था का रूप लेने लगा तो कांशीराम के एक साथी मेरे जाति के विमर्श में लपेट दिया जाए। लेकिन वहां अम्बेडकर के राजनीतिक दर्शन से हटकर लाने आशीर्वाद देती हैं तो लगता है कि मेरा भविष्य एमआईटी से पीएचडी करके वहीं अमेरिका में और उसके आधार पर और सूचना इक्कठा करके गांव में आए। यह 1984 के चुनाव के बाद की से लौटकर आने के बाद इन लोगों ने मुझे बताया की कोशिश करेगी तो वह उनको मंजूर नहीं है बहुत ही उज्ज्वल है। पूरे लाल में राजनीतिक अकादमिक क्षेत्र में बुलंद मुकाम बनाने वाले एक मैंने गांव के समझदार दलित, खेलई से बात की बात है। बहुजन समाज पार्टी का गठन नहीं हुआ कि सामाजिक मुद्दों के प्रति जो जागरूकता वहां क्योंकि डॉ। आंबेडकर की राजनीति में ही चर्चा भी हुई, हालाते हाजेरह पर तबसरा हुआ। प्रोफेसर और मुंबई के कुछ बहुत ही विद्वान एवं थी। उसके पहले इन लोगों ने बराबरी के छोटे ही था, डी एस 4 नाम के संगठन के जरिये दलित देखने को मिली, वह अद्वितीय है। दलित बस्ती सामाजिक बदलाव का बीजक सुरक्षित है मेरे हमारे मुंबई से आये दोस्तों को बहुत मजा सामाजिक रूप से जागरूक पत्रकारों के साथ सही लेकिन महत्वपूर्ण प्रयोग किये थे। एक बहुत चेतना के विकास की बात हो रही थी। उन्होंने ही के बाशिंदों ने साफ बता दिया कि हमारी लड़ाई गांव से बनारस की सड़क पर करीब 25 आया। उन्होंने मुंबई में रहने वाले जौनपुर मूल चुनाव यात्रा एक बेहतरीन अनुभव है। आम तौर ही महत्वपूर्ण घटना के जरिये बात को रेखांकित लोगों को अपना कोई उद्यम लगाने की बात किसी ब्राह्मण से नहीं है, लड़ाई वास्तव में उस किलोमीटर चलने के बाद सिंगरामऊ पड़ता है। के भइया बिरादरी के लोगों की जमीन की मिट्टी पर चुनाव यात्राओं के दौरान कौन जीत रहा है या करने की कोशिश की जायेगी। हमारे गांव में सबसे पहले समझाई थी। जब गांव के चौराहे पर सोच से है जो एक खास वर्ग के आधिपत्य की वहीं पर सिंगरामऊ रियासत के मौजूदा वारिस की समृद्धि को करीब से देखा और अनुभव कौन-कौन हार रहा है, यह बातें उठती रहती हैंसभी जातियों के बाल नाई काटते थे। बाल काटने दलित लड़कों ने छोटी-छोटी दुकानें खोलना शुरू बात करती है। सवर्ण सुप्रीमेसी की उस राजनीति कुंवर जय सिंह से मुलाकात हुई। ग्रामीण किया। उनको लगता होगा कि इतने संपन्न या कितनी सीटें किस पार्टी को मिलने वाली हैं, के पहले नाई लोग पानी से बाल को खूब भिगोते किया तो मुझे स्पष्ट हो गया कि अब यह कारवां को ब्राह्मणवाद भी कहा जा सकता है। करीब उत्तरप्रदेश में शिक्षा के विकास के लिए उनके इलाके से खेती के मालिक ठाकुरों ब्राह्मणों के यह बातें मुझे बोर करती हैं। हालांकि अपने ग्रुप थे। इस तरह से सिर में मालिश हो जाती थी। चल पड़ा है, यह रुकने वाला नहीं है। अब तो मेरे घंटा भर चले इस वाद विवाद में सब खुलकर पूर्वजों ने करीब एक सौ साल पहले एक पौधा बच्चे मुंबई जाकर मजदूरी क्यों करते हैं। लेकिन में भी यह चर्चा आती रहती है लेकिन हमारे लेकिन दलित व्यक्ति जब बाल कटवाने जाते थे गांव के दलितों के लड़के-लड़कियां उच्च शिक्षा बोले और सारे सवालों पर आम्बेडकर के हवाले लगाया था जो अब बड़ा हो गया है। राजा हरपाल इसका जवाब है और कभी मैं ही उसको साथियों की यात्रा का स्थायी भाव उत्तरप्रदेश की तो नाई का आदेश होता था कि बाल भिगोकर ले रहे हैं। पिछली यात्रा में पता चला कि जिस से अपना दृष्टिकोण रखा। दलितों के इंसानी सिंह पोस्ट ग्रेजुएट कालेज, केवल जौनपुर का लिखेंगाहमारा अगला पड़ाव जौनपुर थाजहां राजनीतिक विकास यात्रा को समझना है। देश के आओ, वह अपने ही हाथ से पानी से बाल भिगोते सरकारी विभाग में मेरे काका का पौत्र सहायक हुकूक का सबसे बड़ा दस्तावेज, भारत का ही नहीं, पूर्वी उत्तरप्रदेश का एक प्रमुख शिक्षा मेरे बीए के दर्शन शास्त्र के शिक्षक डॉ। अरुण चोटी के पत्रकार कुमार केतकर और ब्राउन थे, उसके बाद उनके बाल काटे जाते थे। खेलई इंजीनियर हुआ है, उसी के साथ एक दलित संविधान है। उसके साथ हो रही छेड़छाड़ की संस्थान है। कुंवर जय सिंह, जिनको इस इलाके कुमार सिंह के घर पर एक युवक से मुलाकात विश्वविद्यालय के विश्वविख्यात प्रोफेसर आशुतोष दादा ने मुझे एक दिन बताया कि अब हम लोग नौजवान की नियुक्ति भी उसी विभाग में हुई हैकोशिशों से हमारे गांव के दलित चौकन्ना हैं। में सभी जय बाबा के नाम से जानते हैं, अपने हुईइलाहाबाद विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा वाष्र्णेय के साथ पूर्वी उत्तरप्रदेश की चुनाव यात्रा अपने बाल खुद नहीं भिगोएंगे। जैसे बाभन, दोनों राजपत्रित अधिकारी हैं। इस घटना का उनको जाति के शिकंजे में लपेटना नामुमकिन है। पूर्वजों द्वारा स्थापित इसी शिक्षा संस्थान का प्राप्त यह नौजवान आजकल बीजेपी का मुझे अब तक अभिभूत कर चुकी है। मैं अपने ठाकुरों के बाल नाई जी भिगोते हैं, वैसे ही हमारे महत्व यह है कि उस दलित के पिता और बाबा वे मायावती की राजनीति का समर्थन करते हैं तो कार्यभार देखते हैं। हम उनके साथ वहां चल जिम्मेवार कार्यकर्ता हैपिछड़ी जाति के परिवार को धन्य मानना शुरू कर चुका हूं। लोकसभा के भी बाल उनको भिगोना पड़ेगा। लेकिन नाई लोग मेरे काका के यहां हरवाही करते थे। लेकिन उम्मीदवार किसी भी जाति का हो, उसकी जाति पड़े जहां जाने के लिए बहुत सारे साथी अक्सर में जन्म लेकर उच्च शिक्षा हासिल करना अपने चुनाव में जो जीतेगा वह सांसद बनेगा लेकिन सहमत नहीं हुए। बड़ी लम्बी कहानी है लेकिन शिक्षा और संविधान प्रदत्त अधिकारों की की परवाह किये बिना उसको वोट देने में उनको प्लान बनाते रहते हैं। मेरी मुराद बीएचयू के आप में एक उपलब्धि हैयह युवक कुशाग्रबुद्धि लखनऊ से बनारस तक की हमारी यात्रा में हमारे इस समस्या की काट निकाल ली गई। दलित जानकारी वास्तव में समतामूलक समाज की कोई संकोच नहीं हैप्रो। आशुतोष वाष्र्णेय ने छात्रसंघ के चालीस साल पहले अध्यक्ष रहे, श्री है लेकिन पता नहीं क्या हो गया था कि साथी, कुमार केतकर सांसद हैं लेकिन पत्रकारिता बस्ती के कुछ लड़कों ने उस्तरा कैंची खरीद स्थापना की जरूरी शर्त है। इसी शिक्षा ने गरीबी मुझसे साफ कहा कि इस चेतना के बाद चंचल से है। उन्होंने अपने पुरखों के गांव, पूरे राजनीतिक विमर्श में अपनी पार्टी की घोषित के धर्म में अड़चन न आने पाए इसलिए वे अपने लिया और खुद ही बाल काटने की कोशिश की। पर मर्मान्तक प्रहार भी किया है। बहरहाल मेरे सामाजिक परिवर्तन के रथ को रोक सकना लाल, में समता घर बना रखा है जहां गरीबी लाइन को कुछ इस तरह से चलाने की कोशिश इस परिचय को पृष्ठभूमि में रख कर चल रहे हैंधीरे-धीरे वे कुशल नाई हो गए। उस दलित सहयात्रियों को मेरे भाई, सूर्य नारायण सिंह ने असंभव है। अब यह कारवां रुकने वाला नहीं हैऔर वंचना के शिकार लोगों के बच्चों को कर रहा था जैसे चुनाव प्रचार में किया जाता है। हमारी पूरी यात्रा में दलितों को केवल वोटर के लड़कों को उनकी अपनी बिरादरी के लोग नाऊ दलित नेताओं से मिलवाया। डॉ। लोकनाथ मेरे क्योंकि जो दरिया झूम के उऋहैं, तिनकों से नहीं शिक्षा और हुनर की ट्रेनिंग देकर गरीबी के जाहिर है मुलाकात बेमजा रही। हम में से कोई रूप में पहचानने की कवायद से बार-बार सामना ठाकुर ही कहने लगे। यह बहुत बड़ी बात थी। भाई के बहुत ही करीबी हैं। इन लोगों को मेरे टाले जा सकते और यह भी अब डेरे मंजिल पर मुस्तकबिल को लगातार चुनौती दी जाती भी उस इलाके में मतदाता नहीं है और जो लोग हुआ। मुझे पता चलता रहता था कि मेरे गांव में जन्म से नहीं कर्म से जाति के सिद्धांत का एक भाई ने डॉक्टर साहब से मिलवाया और उनके ही डाले जायेंगे और जब बराबरी वाला समाज है चंचल के गांव में मेरे लिए उनकी माई से भी हमारे काफिले में शामिल थे लगभग सभी सही अर्थों में दलित विषयों की चेतना है। हरिजन उदाहरण था। उसके बाद बहुत सारे विकास हुए। साथ यह दलित बस्ती में गए। वंचना के असली स्थापित हो जाएगा तो भारतीय समाज की मिलना एक जियारत होती है। माई से जब मैं लोकसभा 2019 में वोट डाल चुके हैं।