गोडसे को आतंकी कहने से कौन डरता है

गोडसे को आतंकी कहने से कौन डरता है



प्रसिद्ध पत्रिका, टाइम के नरेंद्र मोदी को डिवाइडर इन चीफ्य करार देने के एकदम उपयुक्त होने का ताजातरीन सबूत तमिलनाडु से आया है। केसरिया पलटन और उसके धर्म-संस्कृति के नाम पर राजनीति के तरह-तरह के अभियानों से दूर तथा काफी हद तक अछूते रहे इस दक्षिणी राज्य में भी, नरेंद्र मोदी के राज के पांच साल बाद और उससे भी बढ़कर 2019 के आम चुनाव के लिए मोदी-शाह की भाजपा के अभियान के आखिर तक आते- आते, ठीक वही उग्र, बहुसंख्यकवादी सांप्रदायिक भाषा सुनाई देने लगी है, जो पिछले पांच साल में हिंदी पट्टड्डी में और पश्चिमी भारत समेत देश दूसरे कई हिस्सों में, पहले ही आम हो गयी थी। तमिलनाडु सरकार के दुग्ध तथा डेयरी विकास मंत्री, राजेंद्र बालाजी ने सोमवार को बाकायदा एक बयान जारी कर कहा कि जाने-माने फिल्मकार और राज्य में नई-नई बनी पार्टी एमएनएम के संस्थापक, कमल हासन की जीभ काट लेनी चाहिए! कमल हासन का कसूर सिर्फ इतना था कि उन्होंने गांधी की प्रतिमा के सामने खड़े होकर, केसरिया पलटन को नागवार यह सच दोहराने की जुर्रत की थी कि, स्वतंत्र भारत का पहला उग्रवादी हिंदू था और उसका नाम नाथूराम गोडसे था। वहीं से इसकी उग्रवाद की शुरूआत हुई य गोडसे से स्वतंत्र भारत में उग्रवादध् आतंकवाद की शुरूआत होने पर भले बहस हो सकती हो, पर इसका स्वतंत्र भारत का सबसे पांच साल में सोचे-समझे तरीके से और भूमिका रही थी, जिसके मुखिया आईपीएस पर्याप्त सबूत ही नहीं हैं! अदालत के आदेश पर इस सांप्रदायिक दावे की पोल खोली कि हिंदू चर्चित और मारक उग्रवादी हमला होना निर्विवाद एनआईए समेत तमाम सरकारी एजेंसियों तथा अधिकारी हेमंत करकरे थे, जिन्होंने बाद में मुंबई ही, आतंकवादी गतिविधियों के लिए आरोपित हिंसा या आतंकवाद कर ही नहीं सकते हैं, तो प्रसिद्ध पत्रिका, टाइम के प्रधानमंत्री नरेंद्र है। बहरहाल, गौर करने वाली बात यह है कि इस शासन के अधिकारों का खुल्लमखुल्ला दुरुपयोग के आतंकवादी हमले में अपने कर्तव्य का पालन कर के उनके खिलाफमुकदमा चलाया जा रहा है। संघ परिवार बौखलाकर उन पर ही टूट पड़ा और मोदी को डिवाइडर इन चीफ्य करार देने के सच्चाई का जिक्र करते ही, कमल हासन करते हुए, भगवा आतंक के उस ताने-बाने को करते हुए अपनी शहादत दी थी। यहां यह भी याद बहरहाल, इस हिंदुत्ववादी आतंकी ताने-बाने के अरबपति कारोबारी रामदेव बाबा ने तो हिंदुओं एकदम उपयुक्त होने का ताजातरीन सबूत केसरिया पलटन के तीखे हमले के ही निशाने पर बेदाग छुड़वाने की कोशिश की गयी है, जिसने नई दिलाना अप्रासांगिक नहीं होगा कि इस ताने-बाने सरगनाओं में से एक, असीमानंद को समझौता का अपमान्य करने के लिए उनके खिलाफ तमिलनाडु से आया है। केसरिया पलटन और नहीं आ गए हैं, तमिलनाडु में मोदी-शाह की सदी के पहले दशक में समझौता ट्रेन विस्फेट के तार, देश के विभिन्न हिस्सों में हिंदुत्ववादी एक्सप्रेस कांड में सबूतों के अभाव में अदालत एफ्आईआर ही दर्ज करा दी। जाहिर है कि मोदीउसके धर्म-संस्कृति के नाम पर राजनीति के भाजपा की नई-नई सहयोगी बनी, सत्ताधारी समेत, खासतौर पर मुस्लिम उपस्थिति, पूजा संगठनों से जुड़े ठिकानों पर बम बनाने के दौरान द्वारा बरी किए जाने के बहाने से प्रधानमंत्री ने, शाह ही भाजपा के इस खुल्लमखुल्ला सांप्रदायिक तरह-तरह के अभियानों से दूर तथा काफी हद अन्नाद्रमुक के नेताओं ने उनके लिए, अगुआ स्थलों को निशाना बनाकर किए गए करीब आधा दुर्घटनावश विस्फेट की घटनाओं की छानबीन चुनावी प्रचार का एक बड़ा सांप्रदायिक हथियार चुनावी खेल का विस्तार, सिर्फतमिलनाडु तक ही तक अछूते रहे इस दक्षिणी राज्य में भी, नरेंद्र मारक दस्ते की भूमिका ही संभाल ली है। इस दर्जन आतंकवादी हमलों को अंजाम दिया था के क्रम में उजागर हुए थे और मालेगांव के गढ़ लिया। खासतौर पर महाराष्ट्र में चुनाव प्रचार सीमित नहीं रहा हैइस खेल का ऐसा ही मोदी के राज के पांच साल बाद और उससे भी संदर्भ में यह याद दिलाना भी जरूरी है कि 2019 और जिसके तार आगे चलकर, नरेंद्र दाभोलकर, आतंकी विस्फेट की जांच के क्रम में इस आतंकी की शुरूआत ही उन्होंने अपने राजनीतिक विस्तार, प. बंगाल में भी देखा जा सकता है, जहां बढ़कर 2019 के आम चुनाव के लिए मोदी-शाह के आम चुनाव के अपने लंबे प्रचार अभियान ने पानसरे, कलबुर्गी तथा गौरी लंकेश जैसे ताने-बाने का पूरा सच सामने आया, जिसके तार विरोधियों को इस आधार पर हिंदू-विरोधी ठहराने खुद मोदी और शाह के नेतृत्व में जय श्री राम की की भाजपा के अभियान के आखिर तक आते- खुद नरेंद्र मोदी ने यह सरासर झूठा और बेतुका स्वतंत्रचेता बुद्धिजीवियों की हत्या से जुड़ जाते हैं। समझौता एक्सप्रेस बम विस्फेट की जांच, से की कि उन्होंने, भगवा आतंक की बात कहकर पुकार को, चुनावी युद्ध घोष बना दिया गया आते, ठीक वही उग्र, बहुसंख्यकवादी सांप्रदायिक दावा कर के कि हिंदू आतंकवादी हो ही नहीं मोदी-शाह की आका, आरएसएस के लिए इन्हें आरएसएस कार्यकर्ता सुनील जोशी हत्याकांड हिंदुओं को बदनाम किया था और वह भी है ।बंगाल में, किसी जमाने में गठबंधन की भाषा सुनाई देने लगी है, जो पिछले पांच साल में सकता है, हजारों साल के इतिहास में हिंदुओं ने आतंकवाद के आरोपों से बेदाग साबित कराना आदि की जांच से जुड़कर और फैलते चले गए। अल्पसंख्यकों का तुष्टड्डीकरण करने के लिएइसी सहयोगी रही भाजपा और तृणमूल कांग्रेस, हिंदी पट्टड्डी में और पश्चिमी भारत समेत देश दूसरे कभी हिंसा नहीं कीय, गोडसओं की धार्मिक कोई इसीलिए जरूरी नहीं था कि इससे हिंदू धर्म बहरहाल, मोदी सरकार के आते ही इस ताने-बाने के दूसरे हिस्से के तौर पर उन्होंने हिंदू कभी बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक सांप्रदायिकता के कई हिस्सों में, पहले ही आम हो गयी थी। पहचान के सवाल को बहस के बीच लाकर खड़ा की बदनामी होती थी बल्कि इसलिए और भी के सरगनाओं को बरी कराने का खेल शुरू हो आतंकवादी नहीं हो सकता का दावा कर, खुद को हथियारों से, प्रकटतः जबर्दस्त लड़ाई का तमिलनाडु सरकार के दुग्ध तथा डेयरी विकास कर दिया है। इसके बाद, उनके यह मांग करने का जरूरी था कि इससे, भारत में खासतौर पर गया। यहां तक कि मालेगांव बम विस्फेट के और भाजपा-आरएसएस को हिंदुओं का अभिनय करते हुए, वास्तव में एक-दूसरे की मंत्री, राजेंद्र बालाजी ने सोमवार को बाकायदा कोई औचित्य ही नहीं रह जाता है कि गोडसे जैसों मुसलमानों को आतंकवाद का पर्याय बनाने की मामले में, मुख्य आरोपी प्रज्ञा ठाकुर तथा अन्य के इकलौता हितरक्षक दिखाने की कोशिश की। इसी मदद ही कर रही हैं। इस तरह वे दोनों आशादी एक बयान जारी कर कहा कि जाने-माने की धार्मिक पहचान का जिक्र नहीं किया जाना उनकी मुहिम में बाधा पड़ती थी, जबकि यह खिलाफ मुकदमा खुद केंद्रीय जांच एजेंसी, खुल्लमखुल्ला सांप्रदायिक हथियार पर और धार के बाद से सचेत रूप से सांप्रदायिक गोलबंदियों फिल्मकार और राज्य में नई-नई बनी पार्टी चाहिए या आतंक,उग्रवाद का कोई धर्म नहीं होता मुहिम धर्मनिरपेक्ष, जनतांत्रिक भारत की जगह एनआईए द्वारा कमजोर कराए जाने का भंडाफेड, रखने के लिए भाजपा ने, आतंकवाद की आरोपी से काफी दूर चले गए इस राज्य में, धर्मनिरपेक्ष एमएनएम के संस्थापक, कमल हासन की जीभ है! बेशक, आतंकवाद, उग्रवाद का कोई धर्म नहीं हिंदू राष्ट्र्ट्स को कायम करने के उनके प्रोजेक्ट इस प्रकरण में सरकारी वकील, रोहिणी सलियान प्रज्ञा ठाकुर को प्रतिष्ठड्डा के मुकाबले के लिए राजनीति की ताकतों की जमीन सिकोड़ने की ही काट लेनी चाहिए! कमल हासन का कसूर सिर्फ होता है। लेकिन, इसके बावजूद धर्मनिरपेक्ष भारत का, नई सदी का सबसे कारगर हथियार हैने किया था, जिन्हें बाद में इस प्रकरण से हटा ही भोपाल से लोकसभा के लिए अपना उम्मीदवार कोशिशों में लगी हुई हैं। इस तरह, नरेंद्र मोदी के इतना था कि उन्होंने गांधी की प्रतिमा के सामने का प्रधानमंत्री यह साबित करने पर क्यों तुला बहरहाल, नरेंद्र मोदी ने इस अभियान को कई दिया गया सच तो यह है कि प्रज्ञा ठाकुर व अन्य बना दिया, जिसका खुद नरेंद्र मोदी और अमित राज के पांच साल में, जिसमें मोदी-शाह ही खड़े होकर, केसरिया पलटन को नागवार यह हुआ है कि एक हिंदू ही हैं जो आतंकवादी नहीं कदम आगे ले जाते हुए, इस तथ्य को अपने के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों के लिए शाह ने यह कहकर खुलकर बचाव किया है कि भाजपा की दोबारा चुने जाने की मुहिम भी सच दोहराने की जुर्रत की थी कि, स्वतंत्र भारत हो सकते हैंय यानी दूसरे धर्म वाले ही आतंकवादी बहुसंख्यकवादी सांप्रदायिक अभियान का मुकदमा अगर अभी तक चल रहा है और प्रज्ञा उनके खिलाफआतंकवाद का आरोप, हिंदुओं को शामिल है, सांप्रदायिक विभाजन तथा का पहला उग्रवादी हिंदू था और उसका नाम हो सकते हैं! कहने की जरूरत नहीं है कि मोदी- महत्वपूर्ण हथियार ही बना दिया कि उनकी ठाकुर को स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के आधार बदनाम करने के षड़यंत्र का हिस्सा था! अचरज बहुसंख्यकवादी आक्रामकता को जितना गहरा नाथूराम गोडसे था। वहीं से इसकी उग्रवाद की शाह की भाजपा के लिए और आमतौर पर संघ सरकार से पहले की जांचों में, भगवा आतंकवादी पर जमानत पर छोड़ा गया है, तो इसीलिए कि की बात नहीं है कि सीपीआई(एम) महासचिव कर दिया गया है तथा फैला दिया गया है, उससे शुरूआत हुई य परिवार के लिए, कभी भी यह धर्म का ताने-बाने का सच सामने आया था। प्रसंगवश संबंधित अदालत ने एनआईए की इस दलील को ने जब भोपाल में ही एक व्याख्यान में महाभारत निपटना इस चुनाव के बाद धर्मनिरपेक्ष सरकार गोडसे से स्वतंत्र भारत में उग्रवादध् आतंकवादध् उग्रवाद के साथ संबंध होने न होने याद दिला दें कि इस ताने-बाने के बेनकाब करने मानने से इंकार कर दिया था कि प्रज्ञा ठाकुर आदि तथा रामायण जैसे प्राचीन महाकाव्यों से लेकर बनने के बाद भी, बहुत ही बड़ी चुनौती साबित आतंकवाद की शुरूआत होने पर भले बहस हो का अकादमिक सवाल नहीं था। मोदी के राज के में, महाराष्टङ्क के एंटी टैररिस्ट स्कैड की महत्वपूर्ण के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए उसके पास सम्राट अशोक तक के उदाहरणों से प्रधानमंत्री के होने जा रहा है।