इतने तूफानी क्यों हो गये हैं तूफान

इतने तूफानी क्यों हो गये हैं तूफान


 



 


 


बंगाल की खाड़ी से उठे तूफन फेनी (फनी) ने देश में नयी हलचल पैदा कर दी. ओडिशा इससे सबसे ज्यादा प्रभावित होनेवाला राज्य रहा है रेनें रद्द कर, स्कूल-कॉलेज बंद कर और मछुआरों को समुद्र से दूर रखकर आपदा प्रबंधन के तहत फेनी से बचाव के जो उपाय किये गये, उनसे तूफन ज्यादा आपदाकारी साबित नहीं हो पाया। संयुक्त राष्ट्र तक ने इन उपायों की तारीफ की। सवाल है कि आखिर दुनिया के मानचित्र पर हाल के बरसों में उठे तूफन इतने संहारक क्यों हो गये हैं ? उन्हें इतनी ताकत कहां से मिली है कि हजार बमों के बराबर नुकसान पहुंचानेवाली घटना के रूप में उन्हें देखा जा रहा है ?भारत समेत एशियाई देश चक्रवाती तूफन का उतना बड़ा कहर नहीं झेलते, जितना अमेरिकी और कैरिबियाई मुल्क। साल 2017 में अमेरिका में हार्वी के बाद कैरिबियाई द्वीप समूह के पूरे इलाके में इरमा ने बड़ी तबाही मचायी थी मौसम विज्ञानी कैरी इमैनुएल ने इरमा की ताकत का अंदाजा लगाया था कि दूसरे विश्वयुद्ध में जितने बमों का इस्तेमाल किया गया था, इरमा उनकी कुल ताकत के आधे के करीब यानी सात खरब वॉट की विध्वंसक क्षमता से लैस था। बारबुडा और सेंट मार्टिन आदि जिन क्षेत्रों से होकर यह गुजरा, वे इस पांचवीं कैटेगरी के चक्रवाती तूफन के कारण तबाह हो गये। इस शक्तिशाली तूफन के कारण 285 किमी प्रति घंटे से चलनेवाली हवाओं ने अपने सामने किसी को टिकने ही नहीं दिया। बीते वर्षों में मेरांती, वरदा, पारदीप, फेलिन, वीपा और नारी जैसे एक के बाद एक उठे भीषण चक्रवाती तूफनों से यह सवाल उठा है कि तूफनों की यह श्रृंखला कहीं किसी बड़े मौसमी परिवर्तन की आहट तो नहीं है! हमारे लिए एक आश्वस्ति यह है कि 1999 में ओडिशा के तट से टकरानेवाले समुद्री चक्रवात वरदा के बाद से चीजें कार्फ बदली हैं। मौसम विभाग पहले से अनुमान जताकर आपदा प्रबंधन को सचेत कर देता है और होनेवाले नुकसान को काफी हद तक थाम लिया जाता है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से एक प्रचंड तूफन से दुनिया उबरती नहीं है कि दूसरा विनाशक तूफन आ धमकता है। इससे यह आशंका बन गयी है कि अभी दुनिया में और भी बड़े तूफन आ सकते हैं। समुद्री तूफनों और चक्रवातों की पैदावार ने मौसम विज्ञानियों को भी चकरा दिया है और उन्हें इसमें किसी बड़े मौसमी बदलाव की आहट मिल रही है ।मौसम विज्ञानियों के एक वर्ग के मुताबिक, यह नयी प्राकृतिक परिघटना नहीं है, लिहाजा इससे घबराने की जरूरत नहीं है। ऐसी एक आश्वस्ति ब्रिटिश मौसम विभाग के उष्णकटिबंधीय मौसमी भविष्यवाणियों के विशेषज्ञ जूलियन हेमिंग की भी है- अंतरिक्ष से देखने पर धरती पर कई तूफनों को एक-दूसरे के नजदीक देखना रोचक अवश्य है, लेकिन हर साल अप्रैल-मई और अगस्त से अक्तूबर के बीच ऐसे दृश्य कोई बहुत नये नहीं हैं। इन अवधियों में हर साल पश्चिम से पूरब की ओर ऐसी ही शक्तिशाली और एक-दूसरे से जुड़ी मौसमी हलचल होती है। कई बार संयोग से एक बड़े भूभाग में अत्यधिक तेज बारिश होती है और दुनिया में समुद्री तूफनों का एक पूरा सिलसिला चल पड़ता है। हालांकि, सारे मौसम विज्ञानी जूलियन की व्याख्या से पूरी तरह सहमत नहीं हैं। दुनिया में ऐसा कोई भी मौसमी मॉडल नहीं हैं, जो चक्रवात या समुद्री तूफन की तीव्रता की सटीक जानकारी दे सके। हमारे मौसमी उपग्रह, सुपर कंप्यूटर और वॉर्निंग सिस्टम यह तो बता सकते हैं कि किसी इलाके में कब कोई तूफन बंगाल की खाड़ी से उठे तूफन फेनी (फनी) ने देश आनेवाला है, लेकिन वह कितना प्रलंयकारी होगामें नयी हलचल पैदा कर दी. ओडिशा इससे सबसे इसका सटीक अनुमान संभव नहीं है। चूंकि भीषण ज्यादा प्रभावित होनेवाला राज्य रहा है रेनें रद्द कर, चक्रवात के दौरान 200-300 किमी प्रति घंटे की स्कूल-कॉलेज बंद कर और मछुआरों को समुद्र से दूर हवाएं चलती हैं, इसलिए चक्रवात उत्पन्न होने की रखकर आपदा प्रबंधन के तहत फेनी से बचाव के जो स्थिति में उसकी तीव्रता में परिवर्तन ला पाना असंभव उपाय किये गये, उनसे तूफन ज्यादा आपदाकारी साबित होता है। बीसवीं सदी में आये तूफनों से अब तक नहीं हो पाया। संयुक्त राष्ट्र तक ने इन उपायों की तारीफ खरबों रुपये की संपत्ति के नष्ट होने के साथ-साथ की। सवाल है कि आखिर दुनिया के मानचित्र पर हाल लाखों इंसान इसकी भेंट चढ़ चुके हैं। चक्रवाती के बरसों में उठे तूफन इतने संहारक क्यों हो गये हैं ? तूफनों की उत्पत्ति की प्रक्रिया कार्फ पेचीदा है। उन्हें इतनी ताकत कहां से मिली है कि हजार बमों के मूलतरू यह एक वायुमंडलीय परिघटना है, जो बराबर नुकसान पहुंचानेवाली घटना के रूप में उन्हें देखा तापमान में बदलाव और वायुधाराओं की स्थिति में जा रहा है ?भारत समेत एशियाई देश चक्रवाती तूफन का आनेवाले परिवर्तन के कारण उत्पन्न होती है। हमारी उतना बड़ा कहर नहीं झेलते, जितना अमेरिकी और पृथ्वी के ऊपर एक विरल गैसीय आवरण है, जो कैरिबियाई मुल्क। साल 2017 में अमेरिका में हार्वी के गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी से जुड़ा रहता है और बाद कैरिबियाई द्वीप समूह के पूरे इलाके में इरमा ने बड़ी साथ-साथ घूमता हैऐसे में, जब तापमान में अंतर की तबाही मचायी थी मौसम विज्ञानी कैरी इमैनुएल ने इरमा वजह से वायुमंडल में जलवाष्प की मात्रा बढ़ती हैकी ताकत का अंदाजा लगाया था कि दूसरे विश्वयुद्ध में और विभिन्न स्थानों पर हवा का दबाव कम हो जाता जितने बमों का इस्तेमाल किया गया था, इरमा उनकी सकते हैं। समुद्री तूफनों और चक्रवातों की पैदावार ने है, तो चारों ओर की हवा उस निर्वात को भरने के कुल ताकत के आधे के करीब यानी सात खरब वॉट की मौसम विज्ञानियों को भी चकरा दिया है और उन्हें लिए एक केंद्र की ओर लपकती है। इसी प्रक्रिया के विध्वंसक क्षमता से लैस था। बारबुडा और सेंट मार्टिन इसमें किसी बड़े मौसमी बदलाव की आहट मिल रही कारण तूफन का जन्म होता है। भारत में ज्यादातर आदि जिन क्षेत्रों से होकर यह गुजरा, वे इस पांचवीं है ।मौसम विज्ञानियों के एक वर्ग के मुताबिक, यह नयी तूफन या चक्रवात बंगाल की खाड़ी की तरफसे आते कैटेगरी के चक्रवाती तूफन के कारण तबाह हो गये। इस प्राकृतिक परिघटना नहीं है, लिहाजा इससे घबराने की हैं। ऐसा इसलिए है, क्योंकि बंगाल की खाड़ी में शक्तिशाली तूफन के कारण 285 किमी प्रति घंटे से जरूरत नहीं है। ऐसी एक आश्वस्ति ब्रिटिश मौसम तूफन की स्थितियां उपजानेवाला क्षेत्र चलनेवाली हवाओं ने अपने सामने किसी को टिकने ही विभाग के उष्णकटिबंधीय मौसमी भविष्यवाणियों के श्साइक्लोजेनेसिसश् पश्चिमी तटों के मुकाबले पांच नहीं दिया। बीते वर्षों में मेरांती, वरदा, पारदीप, फेलिन, विशेषज्ञ जूलियन हेमिंग की भी है- अंतरिक्ष से देखने गुना ज्यादा है। यहां का तापमान भी अधिक रहता है। वीपा और नारी जैसे एक के बाद एक उठे भीषण पर धरती पर कई तूफनों को एक-दूसरे के नजदीक प्रशांत महासागर से जुड़े चीन-थाईलैंड के तटों पर जो चक्रवाती तूफनों से यह सवाल उठा है कि तूफनों की देखना रोचक अवश्य है, लेकिन हर साल अप्रैल-मई वायुमंडलीय परिवर्तन आते हैं, उनका असर भी यह श्रृंखला कहीं किसी बड़े मौसमी परिवर्तन की और अगस्त से अक्तूबर के बीच ऐसे दृश्य कोई बहुत मलेशिया के रास्ते अंडमान तक पड़ता है। ये कारण आहट तो नहीं है! हमारे लिए एक आश्वस्ति यह है कि नये नहीं हैं। इन अवधियों में हर साल पश्चिम से पूरब हमारे पूर्वी तटों पर ज्यादा तूफन लाते हैं। मुश्किल यह 1999 में ओडिशा के तट से टकरानेवाले समुद्री की ओर ऐसी ही शक्तिशाली और एक-दूसरे से जुड़ी है कि विज्ञान की उन्नति भी चक्रवात को रोकने में चक्रवात वरदा के बाद से चीजें कार्फ बदली हैं। मौसम मौसमी हलचल होती है। कई बार संयोग से एक बड़े नाकाम रही है। हम अपनी आधुनिक तकनीकों का विभाग पहले से अनुमान जताकर आपदा प्रबंधन को भूभाग में अत्यधिक तेज बारिश होती है और दुनिया इस्तेमाल करके सिर्फइतना कर सकते हैं कि चक्रवात सचेत कर देता है और होनेवाले नुकसान को काफी हद में समुद्री तूफनों का एक पूरा सिलसिला चल पड़ता की पूर्व चेतावनी दे सके। पर पेच यह है कि कोई भी तक थाम लिया जाता है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से है। हालांकि, सारे मौसम विज्ञानी जूलियन की व्याख्या भविष्यवाणी सौ फसदी खरी नहीं उतरती। यदि एक प्रचंड तूफन से दुनिया उबरती नहीं है कि दूसरा से पूरी तरह सहमत नहीं हैं। दुनिया में ऐसा कोई भी दुनियाभर के सुपर कंप्यूटरों और मौसम-उपग्रहों का विनाशक तूफन आ धमकता है। इससे यह आशंका बन मौसमी मॉडल नहीं हैं, जो चक्रवात या समुद्री तूफन नेटवर्क बनाकर इसकी चेतावनी का सिस्टम मजबूत गयी है कि अभी दुनिया में और भी बड़े तूफन आ की तीव्रता की सटीक जानकारी दे सके। हमारे किया जा सके, तो ही कुछ बात बनेगी।