जैव विविधता पर संकट के बादल

जैव विविधता पर संकट के बादल



जैव विविधता पर मंडराते खतरे को लेकर आयी रिपोर्ट एक चेतावनी है कि हम अब भी नहीं संभले, तो इंसानी जीवन पर बहुत बड़े संकट में फंसकर दम तोड़ने लगेगा. बीते सोमवार को पेरिस में आईपीबीईएस इंटरगवर्नमेंटल साइंस-पॉलिसी प्लेटॉर्म ऑन बॉयोडाइवर्सिटी एंड इकोसिस्टम सर्विसेज) द्वारा प्रकाशित इस रिपोर्ट को दुनियाभर के पचास देशों के तकरीबन डेढ़ सौ वैज्ञानिकों ने तैयार किया है । सारे वैज्ञानिकों ने मिलकर इस बात का जायजा लिया है कि पूरी पृथ्वी पर जैव विविधता को बनाये रखनेवाले जैव एवं पादप प्रजातियों की मौत हो रही है और कई तो विलुप्त होने के कगार पर आ खड़े हुए हैं। साल 1992 भी जैव विविधता को लेकर एक ऐसी ही रिपोर्ट आयी नहीं है, बल्कि इसका असर हम इंसानों की जिंदगी, बढ़ने की पूरी संभावना है। इसका मतलब है कि जैव थी, लेकिन उसमें तथ्यात्मक रूप से गहराई और हमारी अर्थव्यवस्था, हमारे खाद्य उत्पादन, पीने का पानी विविधता पूरी तरह से नष्ट हो जायेगी। समुद्र में कोरल्स विश्लेषण कम था। अब इतने सालों बाद यह जो रिपोर्ट आदि पर भी पड़ रहा है, जिसका अर्थ है कि इंसानी का होना जैव विविधता का एक बहुत बड़ा हिस्सा है, जो आयी है, वह बहुत ही गहराई से विश्लेषित और विस्तृत जिंदगी एक बड़े खतरे की ओर बढ़ रही हैइस पृथ्वी पर तापमान बढ़ने पर खत्म हो जायेगा। चौथा कारण प्रदूषण । साल 2012 में स्थापित आईपीबीईएस जैव विविधता जीवन की सुरक्षा का पूरा ढांचा ही आज खतरे में है और है और पांचवां एवं आखिरी कारण जीएम स्पेसीज यानी के लिए बनाया गया एक ऐसा प्लेटफॅर्म है, जिसमें 132 आज आप देख ही रहे हैं, भारत के 40 प्रतिशत हिस्से में जेनिटकली मोडीफइड प्रजातियां। इससे तात्पर्य यह हैसदस्य देश शामिल हैं आईपीबीईएस ने इस रिपोर्ट को सूखा पड़ा हुआ है। क्यों ? वैज्ञानिकों ने जैव विविधता कि मान लीजिये अगर अफ्रका से कोई मछली भारत में तैयार करने में साढ़े तीन सौ से ज्यादा वैज्ञानिकों की के इस संकट के लिए मुख्य पांच कारण गिनाये हैं। और लायी गयी, तो वह मछली जिस भी पानी में रहेगी, वहां मदद ली है। बीते 29 अप्रैल से 4 मई के बीच पेरिस में मजे की बात है कि इसमें जलवायु परिवर्तन का स्थान की व्यवस्था कॉलोनाइज करके उस पर नियंत्रण हासिल हुई वैज्ञानिकों की बैठक में इस रिपोर्ट का सिर्फ एक पहले पर नहीं हैहालांकि, जब भी पृथ्वी को संकट से कर लेगी, जिससे वहां की बाकी प्रजातियां जीवित नहीं हिस्सा साझा किया गया। पूरी रिपोर्ट डेढ़ हजार पृष्ठों की उबारने की बात आती है, तो हम हमेशा जलवायु रह सकतीं। इन सभी कारणों की वजह से जैव विविधता , जिसे इस साल के अंत तक प्रकाशित कर दिया परिवर्तन की ही बात करते हैं, बाकी चीजों पर जरा भी पर खतरे बढ़े हैं और लाखों प्रजातियां खतरे में हैं। जायेगा। यह रिपोर्ट बताती है कि पृथ्वी पर दस लाख ध्यान नहीं देते। लेकिन, रिपोर्ट में वैज्ञानिकों के मुताबिक तकरीबन 40 प्रतिशत उभयचर पशुओं को खतरा है, 33 जैव और पादप प्रजातियां गंभीर रूप से खतरे में हैं। पहला कारण है जमीन और समंदर के उपयोग में भारी प्रतिशत समुद्री कोरल्स पहले ही नष्ट हो चुके हैं, और पूरे पर्यावरण को लेकर दुनियाभर में चिंताएं जाहिर की जाती बदलाव। समुद्री स्तनधारियों को खतरा है। वैज्ञानिकों ने एक बात रही हैं, लेकिन उसके बावजूद इन प्रजातियों पर खतरा यानी जमीन पर जंगल को नष्ट करना, भूमिगत जल यह भी कही है कि अभी कीटों पर कितना खतरा है, कम नहीं हुआ है। साल 1980 से लेकर 2000 के दौरान, का दोहन करना और समंदर को कई तरह के कचरे से इसके बारे में विस्तृत जानकारी नहीं जुट पायी है, फि महज बीस सालों में करीब दस करोड़ हेक्टर प्राकृतिक भरते जाना, यह सबसे पहला कारण है। दूसरा कारण है भी लगता है कि 10 प्रतिशत कीटों की प्रजाति पर खतरा जंगलों का विनाश हुआ। पूरी पृथ्वी का 75 प्रतिशत कि प्रकृति में जो भी दूसरे जीवधारी हैं, उनका हम अपने है। ऐसे बहुत सारे आंकड़े इस रिपोर्ट में मौजूद है। जंगली हिस्सा आज बहुत ही बुरी हालत में है और उसे लिए शोषण कर रहे हैं। तीसरा कारण के रूप में जलवायु जंगली हिस्सा आज बहत ही बरी हालत में है और उसे लिए शोषण कर रहे हैं। नीमरा माI ने रूप में जलवा इन खतरों से निपटने के लिए वैज्ञानिकों का सुझाव बरबाद करने में हमने कोई कसर नहीं छोड़ी है। उस परिवर्तन आता है। जलवायु परिवर्तन के बारे में इस है कि सबसे पहले हर देश को अपनी-अपनी जैव हिस्से पर या तो खेती हो रही है, या फि जानवरों और रिपोर्ट में डॉ वॉटसन (यूके के रसायनज्ञ) ने कहा है कि विविधता का सही-सही जायजा लेना चाहिए, रिपोर्ट उनका चारा उपजाने के लिए उपयोग हो रहा है। आज पृथ्वी के तापमान में मात्र डेढ़-दो डिग्री वृद्धि का तैयार करना चाहिए और इंसानी समाज पर उसका क्या वैज्ञानिकों का मानना है कि जैव विविधता पर मंडराते सवाल नहीं है, बल्कि हम जिस तरह से गैसों का असर पड़ रहा है, इन सबका अध्ययन करके ही बड़े संकट का सवाल सिर्फ प्रजातियों को बचाने का सवाल उत्सर्जन कर रहे हैं, उस ऐतबार से साढ़े तीन डिग्री तक बदलाव करने के लिए समूचित कार्ययोजना बनायें।