किसान नहीं पेप्सिको है दोषी

किसान नहीं पेप्सिको है दोषी



विदेशी कंपनियों द्वारा भारत के किसानों से मुनाफ वसूली नयी बात नहीं है. बीटी कपास के बीज पर बिना पेटेंट अधिकार के मोनसेंटो नामक अमेरिकी कंपनी द्वारा भारत के किसानों से सात हजार करोड़ रुपये से भी ज्यादा रॉयल्टी की वसूली अभी तक की जा चुकी है । अब नया मसला पेय पदार्थ, आलू चिप्स और अन्य प्रकार के स्नैक्स बनानेवाली कंपनी पेप्सिको से जुड़ा है। गौरतलब है कि एफ्सी-5 नाम की एक आलू कीकिस्म की 'ठेका खेती' यह कंपनी कुछ राज्यों में किसानों से करवाती है। कंपनी के ठेका अनुबंध के अनुसार, किसानों से एक निश्चित कीमत पर एफ्सी-5 किस्म के आलू उगवाये जाते हैं, जिन्हें ये किसान पेप्सिको की हिदायत के अनुसार उन आलू चिप्स निर्माताओं को बेचते हैं, जिनसे पेप्सिको आलू चिप्स खरीदती है। फिर पेप्सिको द्वारा पूरे भारत में आलु चिप्स का विपणन किया जाता है। यह बहुराष्ट्रीय कंपनियों का जाना पहचाना मॉडल है। जाहिर है कि पेप्सिको कंपनी इस प्रकार से मोटा मुनाफ कमाती है, क्योंकि जो आलू पांच रुपये किलो से भी कम कीमत पर किसानों से खरीदे जाते हैं, मगर उपभोक्ताओं को सैकड़ों रुपये किलो के हिसाब से आलू चिप्स बेचकर कंपनियां मोटा मुनाफ कमाती हैं।गुजरात के कुछ किसानों के खेत में जासूस भेजकर पेप्सिको कंपनी ने उन किसानों से आलू लेकर उनकी जांच करवाकर 11 किसानों पर मुकदमा कर दिया कि ये किसान कंपनी की एफ्सी-5 किस्म के आलू उगा रहे हैं, जिसके बीज को इन किसानों ने पंजाब के उन किसानों से खरीदा है, जिनका पेप्सिको के साथ अनुबंध था। कंपनी का आरोप है कि इस बीज को कंपनी ने पंजीकृत करवाया हुआ है, इसलिए किसानों ने कंपनी के बौद्धिक संपदा अधिकारों का हनन किया है। पेप्सिको ने अहमदाबाद, गुजरात की व्यावसायिक अदालत में मुकदमा दाखिल कर किसानों द्वारा उत्पादन पर रोक लगाने की मांग तो की ही, साथ ही चार किसानों पर उसके बौद्धिक संपदा अधिकारों के हनन की एवज में प्रत्येक से 105 करोड़ के हर्जाने की वसूली हेतु भी मांग की। विडंबना देखिये कि अदालत ने किसानों के खिलाफ फैसला भी दे दिया। बौद्धिक संपदा कानूनों के जानकार का मानना है कि व्यावसायिक अदालत ने सही निर्णय नहीं दिया, क्योंकि वास्तव में किसानों ने किसी भी प्रकार से कंपनी के बौद्धिक संपदा अधिकारों का हनन किया ही नहीं। भारत के बौद्धिक संपदा कानूनों के अनुसार, वास्तव में बीज और पादप के संबंध में पेटेंट कानून लागू नहीं होता। इसके संबंध में एक दूसरा कानून है, जिसे पादप किस्म एवं किसान अधिकार संरक्षण (पीपीवीएआर) अधिनियम 2001 के नाम से जाना जाता है। इस कानून के हिसाब से कोई व्यक्ति अथवा व्यावसायिक इकाई किसी बीज अथवा पादप किस्म का पंजीकरण करा सकती है और किसी अन्य व्यक्ति अथवा व्यावसायिक इकाई को उस किस्म के उत्पाद को उस नाम (ब्रांड) से बेचने का अधिकार नहीं होगा। लेकिन इस कानून की धारा 39(1)(प्ट) में किसानों के अधिकारों को सुरक्षित किया गया है। इस धारा के अनुसार, 'एक किसान को इस अधिनियम के तहत संरक्षित एक किस्म के बीज सहित अपने खेत की उपज को बचाने, उपयोग करने, बोने, पुनः बोने, आदान-प्रदान करने साझा करने या बेचने का हकदार माना जायेगा, क्योंकि वह इसके लागू होने से पहले हकदार था।' गौरतलब है कि इस बात की जानकारी कंपनी को पहले से थी। प्रश्न है कि कंपनी ने जानबूझ कर किसानों पर मुकदमा क्यों ठोका। कारण स्पष्ट है कि किसान अपने अधिकारों के अनुसार आलू पैदा कर बेच रहे हैं, लेकिन कंपनी अपनी आर्थिक ताकत के गरूर में है कि वह मुकदमा करके गरीब किसानों को डराकर उन्हें अपने साथ उन्हें अपने साथ अनुबंध करने के लिए मजबूर कर सकती है। यह बात अदालत में स्पष्ट भी हो गयी, जब कंपनी के वकील ने प्रस्ताव रखा कि वह अपना मकदमा वापस ले लेगी, यदि किसान उसके साथ अनुबंध करके कंपनी को ही अपने आलू बेचने के लिए तैयार हो जायें। मुकदमे की अगली तारीख जून में है। किसानों ने कहा है कि उन्हें इस बाबत समय दिया जाये। देशभर में पेप्सिको के खिलाफ गुस्सा बढ़ रहा है कि यह कंपनी अपने लाभ के लिए किसानों को गलत मुकदमे में घसीट रही है। गुजरात सरकार ने भी कहा है कि वह किसानों के समर्थन में खड़ी है। जब यह कंपनी चारों तरफ से घिर गयी, तो इसके मुख्यालय द्वारा कंपनी के स्थानीय । अधिकारियों को हिदायत दी गयी कि जल्दी से कंपनी किसानों के साथ समझौता कर ले, ताकि जनता के गुस्से से बचा जा सके। वहीं, कुछ लोग यह भी कहते हैं कि एफ्सी-5 किस्म को विकसित करने में कंपनी ने लाखों डॉलर खर्च किये हैं, इसलिए उसे मुनाफ वसूली का अधिकार है। उन्हें पता नहीं है कि एफ्सी-5 किस्म का जो पंजीकरण पेप्सिको द्वारा किया गया है, वह एक 'एक्सटेंट वेरायटी' यानी पहले से उपलब्ध किस्म के रूप में किया गया है। ऐसे में कानूनी रूप से ही नहीं, बल्कि नैतिक रूप से भी कंपनी का यह मुकदमा कमजोर है किसी भी विदेशी कंपनी को उस देश के कानूनों को मानना पड़ता है। पेप्सिको को समझना चाहिए कि भारत के कानून उसके लिए बदलेंगे नहीं, खुद पेप्सिको को ही बदलना पड़ेगा। वह किसानों को बाध्य नहीं कर सकती कि वे आलू उसी को बेचें। हां, यदि पेप्सिको आलू खरीदना चाहती है, तो वह किसानों को बेहतर कीमत देकर खरीद सकती है।