मंटोः जो बात की, खुदा की कसम लाजबाव की

मंटोः जो बात की, खुदा की कसम लाजबाव की



11 मई, वह दिन है जिस दिन उर्दू अदब के अफसाने निकलते । मंटो की मौत पर उर्दू अदब के गया है। जबकि ये खत ऐसे हैं, जिन पर बात होनी पाकिस्तान के हालातों से भी वाकिफ होना जरूरी पहला खत दिसम्बर 1951 में लिखा और हालातों का बखूबी जिक्र करते हैं। अपने मुल्क बेमिसाल अफ्सानानिगार सआदत हसन मंटो की एक और बड़े अफ्सानानिगार कृश्न चन्दर ने उन्हें ही चाहिए। खास तौर पर अमेरिका और है। बीसवीं सदी के अमेरिका के बारे में कहा आखिरी खत अप्रेल 1954 में। तीन साल के के हालात का जिक्र करते हुए न तो वे पाकिस्तानी पैदाइश हुई थी। 11 मई, साल 1912 को याद करते हुए क्या खूब लिखा है,गम उन पाकिस्तान के उस दौर, उनके आपसी संबंधों को जाता है कि वह जंग के लिए हमेशा उतावला रहने अरसे में कुल जमा नौ खत । खत क्या, पाकिस्तान हुक्मरानों से डरते हैं और न ही मजहबी रहनुमाओं लुधियाना के छोटे से गांव समराला में जन्मे मंटो अनलिखी रचनाओं का है, जो सिर्फमंटो ही लिख अगर समझना है, तो मंटो के खत बहुत मददगार वाला, मुल्क था। (गोयाकि, जंग के लिए उसका और अमेरिका दोनों ही मुल्कों के अंदरूनी हालात का मुलाहिजा करते हैं। पाकिस्तानियों के जो ने 43 साल की अपनी छोटी सी जिंदगानी में जी सकता था। उर्दू साहित्य में अच्छे से अच्छे साबित हो सकते हैंउन्होंने बड़े ही बेबाकी और ये उतावलापन, आज भी कम नहीं हुआ है।) की बोलती तस्वीर! पाकिस्तान का संकीर्ण अंतर्विरोध हैं, उनका मजहब के प्रति जो अंधा भरकर लिखा। गोया कि अपनी उम्र के 20-22 कहानीकार पैदा हुए, लेकिन मंटो दोबारा पैदा नहीं तटस्थता से अपने मुल्क और दुनिया की एक अपने कार्यकाल में हैरी ट्रूमैन ने पूरी दुनिया में वातावरण और अमेरिका की पूंजीवादी झुकाव है, मंटो इसकी भी खुर्दबीनी करने से बाज साल उन्होंने लिखने में ही गुजार दिए। लिखना होगा और कोई उसकी जगह लेने नहीं आएगा। बड़ी महाशक्ति अमेरिका के हुक्मरानों की जमकर अमरीकी साम्राज्यवाद नीतियों को जमकर बढ़ावा स्वच्छंदता। पाकिस्तान की बदहाली और नहीं आते। धार्मिक कट्टरता और पोंगापंथ पर वे उनका जुनून था और जीने का सहारा भी। मंटो यह बात मैं भी जानता हूं और राजेन्द्र सिंह बेदी खबर ली हैउन्होंने किसी को भी नहीं बख्शा। दिया। जापान पर एटमी बम गिराने का फैसला, अमेरिका का दोगलापन। पाकिस्तान की बेचारगी बड़े ही निर्ममता से अपनी कलम चलाते हैंमंटो एक जगह खुद लिखते हैं, मैं अफसाना नहीं भी, इस्मत चुगताई भी, ख्वाजा अहमद अब्बास वह ही लिखा, जो देखा। ये खत कितने बेबाक यूरोप के पुनर्निर्माण के लिए मार्शल प्लान, और अमेरिका की कुटिल शैतानी चालें । खत को अपने खतों में अमरीकी पूंजीवाद और लिखता, हकीकत यह है कि अफसाना मुझे भी और उपेन्द्रनाथ अश्क भी श् कृश्न चन्दर की और सख्त हैं, ये एक छोटी सी मिसाल से जाना साम्यवाद की घेरेबंदी का ट्रूमैन-सिद्धांत, शीत लिखे, एक आधी सदी गुजर गई, मगर दोनों ही साम्राज्यवाद पर जमकर चुटकियां लेते हैं। लिखता है। इसके बिना वे जिंदा रह भी नहीं बात आज भी सच है, इतना लंबा अरसा गुजर जा सकता है, अमरीकी लेखक लेसली फ्लेमिंग युद्ध की शुरूआत, नाटो का गठन और कोरिया के मुल्कों की न तो तस्वीर बदली और न ही अमरीकी साम्राज्यवाद को प्रदर्शित करने के लिए सकते थे। उन्होंने जो भी लिखा, वह आज उर्दू गया, मगर उर्दू अदब में कोई दूसरा मंटो पैदा नहीं ने जर्नल आफसाउथ एशियन लिटरेचर के मंटो युद्ध में अमरीकी-हस्तक्षेप जैसे उनके फैसले किरदार। इन दोनों मुल्कों पर मंटो का आंकलन वे बार-बार अमेरिका के राष्ट्रपति को सात अदब का नायाब सरमाया है। मंटो के कई हुआ। उनकी जगह आज भी ज्यों की त्यों खाली विशेषांक में लैटर ट्रोपिकल एसेज के तहत मंटो मिसाल के तौर पर गिनाए जा सकते हैं। इन बातों आज भी पूरे सौ आने खरा उतरता है। मंटो की आजादियों के राष्ट्राध्यक्ष के रूप में मुखातिब करते अफ्साने आज भी मील का पत्थर हैं। उनके किस है। बहरहाल, अपनी छोटी सी जिंदगानी में मंटो के मजामीन पर एक सफ्हा लिखा है। उसने एक- की रौशनी में यदि देखें, तो मंटो के खत बड़े कही गई बातें, आज भी इन पर बिल्कुल सटीक हैं। व्यंग्य करने का उनकी तरीका बिल्कुल अफसाने का जिक्र करें और किसको छोड़ दें ? ने डेढ़ सौ से ज्यादा कहानियां लिखीं, व्यक्ति चित्र, एक, दो-दो सतरों में अलग-अलग मजमूनों को मानीखेज हैं। अंकल सैम को खत लिखने के पीछे बैठती हैं। पाकिस्तान कल भी अमेरिका की खैरात निराला है। मंटो के इन नौ खतों को पढ़कर बहुत ये कल भी उतना आसान नहीं था और आज भी। संस्मरण, फिल्मों की स्क्रिप्ट और डायलॉग, छुआ है। क्या ये तअज्जुब की बात नहीं है, कि मंटो का जाहिर मकसद, अप्रत्यक्ष रूप से के आसरे था, और आज भी उसकी अर्थव्यवस्था हद तक पाकिस्तान और अमेरिका के हकीकी मंटो का हर अफसाना, दिलो दिमाग पर अपना रेडियो के लिए ढेरों नाटक और एकांकी, पत्र, वह चचा साम के नाम लिखे गए नौ खतों के बारे साम्राज्यवाद की आलोचना पेश करना था। अमेरिकी डालरों के सहारे चल रही है। मंटो अपने किरदारों को जाना जा सकता है। इन खतों में न ऐसा असर छोड़ जाता है, जो महीनों क्या, सालों कई पत्र-पत्रिकाओं में कॉलम लिखे, पत्रकारिता में एक जुमला तो क्या, एक लफ्ज तक न लिख पाकिस्तान के उस वक्त के हालातों की यदि खतों में अमेरिका की साम्राज्यवादी नीतियों पर सिर्फ उस दौर की अक्काशी है, बल्कि मुस्तकबिल अपना असर नहीं छोड़ता। उनकी कलम से कई की। गोया कि उपन्यास, कविता को यदि छोड़ दें, सकीं। क्यों? वह इसलिए कि मंटो ने जब ये पड़ताल करें, तो पाकिस्तान उस समय एक नए जमकर तंज करते हैं। मंटो की इस तहरीर में की भी तस्वीर है। आने वाले सालों में पाकिस्तान शाहकार अफ्साने निकले। मसलन-ठंडा गोश्त, तो उन्होंने साहित्य की सभी विधाओं पर जमकर खुतूत लिखे थे, तब अमेरिका में चचा राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान गढ़ने की कोशिश अमेरिका का साम्राज्यवादी चेहरा पूरी तरह की क्या नियति होगी? मंटो इसे पहले ही भांप चुके खोल दो, यजीद, शाहदोले का चूहा, श्बापू लिखा हिंदी-उर्दू अदब में प्रेमचंद के बाद जिस आइजनहावर की हुकूमत थी और जब अमरीकी कर रहा था। पाक-अमरीकी आर्थिक-सामरिक बेनकाब है। किस तरह वह दुनिया भर में अपने थे। समय की रेत पर वह सब कुछ साफ-साफदेख गोपीनाथ, नया कानून, टिटवाल का कुत्ता और अदीब पर सबसे ज्यादा लिखा गया, वह सआदत स्कालर ने लेटर टोपिकल एसेज लिखा, तब संधि हो चुकी थी। दक्षिण-पूर्वी एशिया में बढ़ते हथियारों की तिजारत करता है। जंग उसके लिए रहे थे। उन्होंने अपने खतों से पाकिस्तानी हुक्मरानों टोबा टेकसिंह। हिंदोस्तान के बंटवारे पर मंटो ने हसन मंटो हैं। मंटो की शायद ही कोई ऐसी विधा अमेरिका में चचा रोनाल्ड रीगन की हुकूमत थी। साम्यवादी रुझान को रोकने के लिए, अमेरिका महज एक कारोबार हैजंग होगी तो उसके को हर मुमकिन आगाह भी किया। लेकिन उनकी कई यादगार कहानियां, लघु कथाएं लिखीं लेकिन हो, जिस पर कि लिखा नहीं गया। उनकी हर यानी, दोनों जमाने रिपब्लिकन राष्ट्रपतियों के को इस इलाके में एक मोहरे की तलाश थी, जो हथियार भी बिकेंगे। चाहे ईरान-इराक के बीच आवाज नक्कारखाने में तूती की तरह बोलती रही। उनकी कहानी टोबा टेकसिंह का कोई दूसरा रचना पर खूब बात हुई। फि भी मंटो के पत्र जो जमाने थे। बात समझ में आती है और लेसली कि उसे पाकिस्तान के रूप में मिल गया। मंटो के चली लंबी जंग हो, या फि अफ्रकी मुल्कों के आज पाकिस्तान का जो हश्र है, मंटो उसे बहुत जवाब नहीं। मंटो का लिखा उनकी मौत के छह उन्होंने अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति हैरी फ्लेमिंग की ओढ़ी ढांपी झेप साफ नजर आती हैखतों के मजमून से गुजरकर, न सिर्फ अमेरिका बीच आपसी संघर्ष, इन जंगो और संघर्षों में पहले ही जान चुके थे। अमेरिकन हुक्मरानों और दशक बाद भी भारतीय उपमहाद्वीप के करोड़ों- ट्रूमैन और उसके बाद आइजनहावर के नाम (पेज-366, अंतिम शब्द, सआदत हसन मंटो और पाकिस्तान के सियासी-समाजी हालात जाने सबसे ज्यादा फयदा अमेरिका का ही रहा है। उनकी नीतियों का जहां तक सवाल है, उन्होंने करोड़ लोगों के जेहन में जिंदा है। अफसोस! उन्हें लिखे, जो पाकिस्तान के अखबारों में दस्तावेज-4) मंटो के खतों के यदि हमें सही- जा सकते हैं, बल्कि बाकी दुनिया के जानिब फैजी इमदाद के समझौते की आड़ में, वह आज उनके बारे में जो लिखा, वे बातें आज भी ज्यों के लंबी जिंदगी नहीं मिली। लंबी जिंदगी मिलती, तो सिलसिलेवार शाया हुए, उन पर कम ही बात सही मायने समझने हैं, तो अमरीकी राष्ट्रपति हैरी अमेरिका की नीति का भी कुछ-कुछ खुलासा भी अपने पुराने हथियारों को ठिकाने लगाता रहता त्यों कायम हैं। बल्कि उसका चेहरा और भी ज्यादा उनकी कलम से न जाने कितने और शाहकार होती है। इन पर आलोचकों का ध्यान कम ही ट्रूमैन की कार्यप्रणाली और उस दौर के होता है। अमेरिकी राष्ट्रपति के नाम मंटो ने अपना है। अपने इन खतों में मंटो पाकिस्तान के सियासी खौफनाक और साम्राज्यवादी हो गया है।