मसूद अजहर, आखिर किसकी कूटनीतिक जीत है

मसूद अजहर, आखिर किसकी कूटनीतिक जीत है



अमेरिकी गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट आज ही आई है, जिसमें अनुमान लगाया गया है कि चीन पाकिस्तान में अपना मिल्ट्री बेस बना सकता है। उसे चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोरश की रक्षा के वास्ते ऐसे बल की आवश्यकता पड़ेगी। तय मानिये, पाक अधिकृत कश्मीर में यदि चीनी सैनिकों की उपस्थिति हो जाती है, तो इस इलाके में भू-सामरिक स्थिति पूरी तरह से बदल जाएगी। जोकुछ संयुक्त राष्ट्र में हुआ, क्या वह अमेरिकी डिप्लोमेसी की जीत थी? अमेरिकी विदेशमंत्री माइक पोंपियो ने ट्वीट किया है, तो मानना पड़ेगा। भारत, उसका खंडन करे तो कैसे? उन्होंने ऐसे समय यह ट्वीट किया, जब भारत में बयानों के पटाखे छूट रहे थे। चुनावी मंच से लेकर टीवी शो तक उद्वेलित है। कोई भी न्यूज चौनल खोलिये, प्रवक्ताओं के पांव जमीन पर नहीं दिख रहे, भारत ने चीन की दीवार को भेद दिया ।श् मोदी है, तो मुमकिन हैऐसे नैरेटिव छुटभैये नेता भी गढ़ने लगे हैं अमेरिकी विदेश मंत्री को ऐसी क्या जल्दी थी कि उन्होंने मसूद अजहर को ग्लोबल आतंकी घोषित किये जाने का सारा श्रेय ले लिया? क्या उसकी वजह 18 माह बाद अमेरिका में होने वाला राष्ट्रपति चुनाव भी है? ट्रंप प्रशासन ने ऐसा संदेश देना चाहा है कि देखो ड्रैगन को हमने कैसे काबू किया है। ट्रैगन को व्यापार समझौते में अमेरिकी छुट से तस्वीर और साफहोगी। तो, मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने के वास्ते क्रेडिट किसे दं? अभी ब्रिटेन, फ्रेंस की दावेदारी बाक़ी है। ध्यान रखियेगा, मसूद अजहर पर प्रतिबंध लगाने वाली 1267 कमेटी का नाम है आइसिल (दायेश) एंड अल कायदा सैंगशन कमेटी। 2001 में इस कमेटी ने मान लिया था कि जैश- ए-मोहम्मद को लीड करने वाले मसूद अजहर के संबंध अल कायदा से रहे हैं, इसलिए उसे ग्लोबल आतंकी घोषित किया जाए। यह पूरा प्रकरण विश्व कूटनीति के लिए विंची कोड जैसा हो गया। चीन, जिसकी वजह से सारा खेल संपन्न हुआ, इस पर बिल्कुल चुप है। वहां सरकार नियंत्रित मीडिया में इतनी खामोशी है, जैसे चीन मं मसूद अजहर को कोई जानता तक नहीं। बाहर, कयासक्यारी भर लग रही है कि चीन अक्टूबर में फइनंशियल एक्शन टास्क फेर्स का अध्यक्ष बनना चाह रहा है, इसलिए वह अजहर के सवाल पर समझौते के मूड में था। 30 साल पहले बनी इस अंतर-सरकारी संस्था का मुख्यालय पेरिस में है। इस समय एफएटीएफमं चीन उपाध्यक्ष है। अध्यक्ष की दावेदारी जापान भी कर रहा है, जिसे मनाने की जिम्मेदारी अमेरिका व भारत ने ली है। इस संस्था में कुल जमा 38 सदस्य हैं, जिनमें दो संगठन यूरोपीय कमीशन और गल्फ को-ऑपरेशन कौंसिल शामिल है। दूसरा, अनुमान पिछले महीने 25 से 27 अप्रैल को वन बेल्ट वन रोड फेरम (बीआरएफ) की शिखर बैठक थी, जिससे अमेरिका और भारत ने दूरी बना ली थी। यूरोप के कुछ देशों को आपत्ति है कि चीनी कंपनियां ओबीओआर के बहाने ट्रेड का फयदा उठा रही हैं। तब अमेरिकी प्रतिरक्षा मंत्री माइक पोंपिओ चौथे दौर के मतदान में भी हुआ होगा, ऐसा मसूद अजहर जैसे ग्लोबल आतंकवादी के कार्ड से मुक्ति चाहता थाडॉन के संपादकीय में लिखा है। ध्यान रखियेगा, मसूद अजहर पर प्रतिबंध अफ्रका और एशिया-प्रशांत के देशों में पोर्ट वाशिंगटन और पेइचिंग में बैठे प्रेक्षक मान रहे हैंको खेलने का अवसर मिला है, उसे वह कैसे है, जैश-ए-मोहम्मद 2002 में बैन किये जाने के अमेरिकी गृह मंत्रालय की एक रिपोर्ट आज लगाने वाली 1267 कमेटी का नाम है आइसिल निर्माण के बहाने चीनी दखल को सुरक्षा से जोड़ा तो क्या बचे तीन दौर 6 मई, 12 मई, और 19 चूक जाने दे? पहली मई की शाम से पूरा देश बावजूद पंजाबी तालिबान वहां पनपता रहा, मसूद ही आई है, जिसमें अनुमान लगाया गया है कि (दायेश) एंड अल कायदा सैंगशन कमेटी। था। वन बेल्ट वन रोड फेरम (बीआरएफ) की मई के मतदान में अजहर वाला कार्ड वोटिंग की भारत माता की जय से गुंजायमानश् है। विदेश अजहर छुट्टा सांड़ की तरह घूमता रहा। इस देश चीन पाकिस्तान में अपना मिल्ट्री बेस बना सकता 2001 में इस कमेटी ने मान लिया था कि जैश- द्वितीय शिखर बैठक में भारत की शिरकत नहीं तस्वीर बदल देगा? यह तो 23 मई का परिणाम मंत्रालय के प्रवक्ता रवीश कुमार पुलवामा के मं घृणा व अलगाववाद फैलाने वाले सभी नॉन है। उसे चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक ए-मोहम्मद को लीड करने वाले मसूद अजहर करने की दो सबसे बड़ी वजहं थीं। एक, मसूद बताएगा कि अमेरिका-चीन के कंधे लगा देने से सवाल को दरकिनार कर जोर दे रहे थे कि भारत स्टेट एक्टर पर प्रतिबंध लगना चाहिए। कॉरिडोरश की रक्षा के वास्ते ऐसे बल की के संबंध अल कायदा से रहे हैं, इसलिए उसे अजहर पर चीन की अडंघोबाजी, और दूसरा मोदी का बेड़ा कितना पार हुआ। हम इस भ्रम मं का बस एक ही लक्ष्य था, मसूद अजहर यूएन में पाकिस्तान का एक राष्ट्रीय अख़बार इससे अधिक आवश्यकता पड़ेगी। तय मानिये, पाक अधिकृत ग्लोबल आतंकी घोषित किया जाए। यह पूरा ओबीओआर के बहाने पाक अधिकृत कश्मीर में न ही रहं कि बिना किसी डील के चीन सहजता ग्लोबल आतंकवादी घोषित हो। वह पूरा हो खुल कर क्या लिखेगा? दुखद यह है कि कश्मीर में यदि चीनी सैनिकों की उपस्थिति हो प्रकरण विश्व कूटनीति के लिए विंची कोड जैसा चीन का विस्तार। चीन ने पीओके से ग्वादर तक से मान गया। न्यूयार्क में संयुक्त राष्ट्र के गया। वैसे, कुछ भी कहिए, भारतीय कूटनीति का अदावत के इस माहौल में हम पूरे मुल्क को जाती है, तो इस इलाके में भू-सामरिक स्थिति हो गया। चीन, जिसकी वजह से सारा खेल संपन्न जितना अधोसंरचनात्मक विकास किया, सड़क कूटनीतिक चीन की पांच प्रमुख शर्तों का संकेत यह कालखंड बड़ी विचित्र स्थिति से गुजर रहा मुजरिम मान बैठे हैंवह भी केवल चुनावी फयदे पूरी तरह से बदल जाएगी। जोकुछ संयुक्त राष्ट्र में हुआ, इस पर बिल्कुल चुप है। वहां सरकार बनाईं उसका नाम श्चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक देते हैंपहली शर्त ये कि 1267 प्रस्ताव में है। बाकी मुद्दे सिफर हों, एक आतंकवादी चुनावी के वास्ते। ताकि सनद रहे, मसूद अजहर जैसे हुआ, क्या वह अमेरिकी डिप्लोमेसी की जीत नियंत्रित मीडिया में इतनी खामोशी है, जैसे चीन कॉरिडोरश् रख दिया। उन दिनों भारतीय आपत्ति पुलवामा की चर्चा नहीं होगी। दूसरी, कश्मीर के पिक़र में मध्यांतर के बाद लीड रोल में आ जाए। अतिवादियों को आख़िरी कील ठोकने का जो थी? अमेरिकी विदेशमंत्री माइक पोंपियो ने मं मसूद अजहर को कोई जानता तक नहीं। पर दिल्ली स्थित चीनी दूतावास ने बड़ी ढिठाई से आतंक से उसे जोड़ा नहीं जाएगा। तीसरी, भारत- उस खलनायक का खात्मा नहीं हो, 40 जवानों वातावरण पाकिस्तान में बना है, उसका फयदा ट्वीट किया है, तो मानना पड़ेगा। भारत, उसका बाहर, कयासक्यारी भर लग रही है कि चीन बयान दिया था कि पाकिस्तान का यह इलाका पाक सीमा पर युद्ध जैसी स्थिति को समाप्त करंगे, की शहादत का बदला भी पूरा न हो, फिर भी हम चीन उठा सकता है। अमेरिकी गृह मंत्रालय की खंडन करे तो कैसे? उन्होंने ऐसे समय यह ट्वीट अक्टूबर में फइनंशियल एक्शन टास्क फेर्स का उसके क्षेत्रीय अखंडता का अहम हिस्सा है, क्योंकि इससे पाक अधिकृत कश्मीर में चीनी विजयी भाव से मतदाताओं के आगे सीना तान के एक रिपोर्ट आज ही आई है, जिसमें अनुमान किया, जब भारत में बयानों के पटाखे छूट रहे थे। अध्यक्ष बनना चाह रहा है, इसलिए वह अजहर इसलिए भारत का एतराज सही नहीं है। यूएन में परियोजनाएं प्रभावित हो रही थीं। चौथी शर्त, यह खड़े हों। ऐसी फिल्म की पटकथा लिखना सबके लगाया गया है कि चीन पाकिस्तान में अपना चुनावी मंच से लेकर टीवी शो तक उद्वेलित है। के सवाल पर समझौते के मूड में था। 30 साल जो डिप्लोमेट इस पूरे प्रकरण को देख रहे हैं, वे कि भारत,पीओके में चल रहे श्चाइना-पाकिस्तान बूते का नहीं है। सही कहा, मोदी है, तो मुमकिन मिल्ट्री बेस बना सकता हैउसे श्चाइनाकोई भी न्यूज चौनल खोलिये, प्रवक्ताओं के पांव पहले बनी इस अंतर-सरकारी संस्था का बताते हैं कि 23 अप्रैल 2019 को अमेरिकी पहल इकोनॉमिक कॉरिडोरश पर चुप्पी साधेगा। और है। शुक्रवार को राजस्थान के हिंडौन की चुनावी पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोरश की रक्षा के जमीन पर नहीं दिख रहे, भारत ने चीन की मुख्यालय पेरिस में है। इस समय एफएटीएफमं पर यह डील हो चुकी थी। चूंकि,वन बेल्ट वन पांचवी, भारत-पाक द्विपक्षीय बातचीत का सभा में पीएम मोदी की बानगी सुनिये, वास्ते ऐसे बल की आवश्यकता पड़ेगी। क्योंकि दीवार को भेद दिया ।श् मोदी है, तो मुमकिन हैचीन उपाध्यक्ष है। अध्यक्ष की दावेदारी जापान रोड फेरम (बीआरएफ) की दूसरी शिखर बैठक माहौल बनायंगे। पाक नेशनल डे पर पीएम मोदी पाकिस्तान में बैठा आतंकियों का आका अब मसूद अजहर को आतंकी घोषित करने और ऐसे नैरेटिव छुटभैये नेता भी गढ़ने लगे हैं भी कर रहा है, जिसे मनाने की जिम्मेदारी में इमरान खान को आना था, ऐसे मौके पर यह ने जो शुभकामना संदेश भेजा, उस पर सबको अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित हुआ है। उसपर तमाम पाबंदी आयद करने के बाद अमेरिकी विदेश मंत्री को ऐसी क्या जल्दी थी कि अमेरिका व भारत ने ली है। इस संस्था में कुल प्रस्ताव नहीं रखा जा सकता था। फि तय हुआ आश्चर्य हुआ था कि युद्ध जैसे माहौल में किसके सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक के बाद पाकिस्तानी तालिबान और दूसरे दहशतगर्द उन्होंने मसूद अजहर को ग्लोबल आतंकी घोषित जमा 38 सदस्य हैं, जिनमें दो संगठन यूरोपीय कि एक मई को चीन 1267 प्रस्ताव पर हस्ताक्षर कहने पर ऐसा हुआ। यह सिलसिला थमा नहीं। पाकिस्तान पर ये तीसरी स्ट्राइक हुई है। मोदी सीपीईसी में कार्यरत चीनी तकनीशियों व किये जाने का सारा श्रेय ले लिया? क्या उसकी कमीशन और गल्फ को-ऑपरेशन कौंसिल कर देगा। यह देरी नई दिल्ली को असहज किये मसूद अजहर प्रकरण पर पाकिस्तान की बुरी तरह और पूरी भक्त मंडली चुनाव के आखरी चरण कर्मियों के वास्ते ख़तरनाक साबित हो सकते हैं। वजह 18 माह बाद अमेरिका में होने वाला शामिल है। दूसरा, अनुमान पिछले महीने 25 से हुए था। चीन के राष्ट्रपति शी भारत की बेचौनी से फजीहत हुई है। बावजूद इसके, इमरान खान ने तक इसे भुनाएगी, इसमें कोई दो राय नहीं होनी पाक फैज की जो यूनिट इनकी रक्षा में है, वह राष्ट्रपति चुनाव भी है? ट्रंप प्रशासन ने ऐसा संदेश 27 अप्रैल को वन बेल्ट वन रोड फेरम वाकिफ थे कि वहां चुनाव है, और पीएम मोदी शुक्रवार को पीएम मोदी को पत्र लिखा है कि चाहिए। यह देखना दिलचस्प है कि पाकिस्तान काफ नहीं है। अमेरिकी प्रतिरक्षा मंत्रालय ने देना चाहा है कि देखो ड्रैगन को हमने कैसे काबू (बीआरएफ) की शिखर बैठक थी, जिससे के लिए यह सबसे बड़ा ट्रंप कार्ड होगा। अगर, सारे इश्यू को लेकर द्विपक्षीय बातचीत होनी का मीडिया सुरक्षा परिषद् के इस फैसले के पक्ष जिबूटी का उदाहरण दिया है। पूर्वी अफ्रकी देश किया है। ट्रैगन को व्यापार समझौते में अमेरिकी अमेरिका और भारत ने दूरी बना ली थी। यूरोप 23 अप्रैल को इस पर चीन की मुहर लग जाती, चाहिए। तीन चरणों के चुनाव रह गये हैं। अभी मं खड़ा है। शुक्रवार 3 मई को डॉन जैसे अखबार जिबूटी में चीन की ओबीओआर परियोजना हैछुट से तस्वीर और साफहोगी। तो, मसूद अजहर के कुछ देशों को आपत्ति है कि चीनी कंपनियां तो तीसरे दौर के मतदान का माहौल कुछ और कौन ऐसा बकलोल होगा, जो बातचीत करेगा? का संपादकीय पढ़कर लगता है कि पाकिस्तानी उस देश में ओबीओआर की सुरक्षा चीनी सैनिक को वैश्विक आतंकी घोषित करने के वास्ते क्रेडिट ओबीओआर के बहाने ट्रेड का फयदा उठा रही होता। बीजेपी को इसका नुकसान 29 अप्रैल को कितने बड़े भगीरथ प्रयास से बीजेपी के हाथ मेन स्ट्रीम मीडिया मसूद अजहर जैसे दहशतगर्द कर रहे हैं।