मोदीजी का दूध-भात

मोदीजी का दूध-भात



उत्तर प्रदेश में सपा नेता आजम खां पर एक बार फिर चुनाव आयोग ने 48 घंटों का प्रतिबंध लगा दिया है। उनके साथ गुजरात भाजपा के अध्यक्ष जीतू वाघानी पर भी आयोग ने सख्ती दिखाई है। आजम खां पहले भी विवादित बयान दे चुके हैं और इसकी वजह से निष्पक्ष चुनाव कराने की जिम्मेदारी उठाने वाले आयोग ने उन्हें दंडित किया था। चुनाव आयोग बसपा सुप्रीमो मायावती और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी पर भी ऐसे ही प्रतिबंध लगा चुका है। इन आम चुनाव का घोषणा के साथ ही देश में 10 मार्च से आचार संहिता लागू है। यानी राजनैतिक दलों और नेताओं को एक निश्चित दायरे में रहकर काम करने और बयान देने की अनुमति है। अगर वे इसके बाहर जाते हैं तो उनके खिलाफआचार संहिता के उल्लंघन की शिकायत की जा सकती है। खबरों के मुताबिक इस बार आचार संहिता लागू होने के एक महीने के अंदर ही आयोग को इसकी अवहेलना की 40 हजार से ज्यादा शिकायतें मिलीं जिनमें से ज्यादातर शिकायतों का निपटारा कर दिया गया। भारत के संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत चुनाव आयोग को ये अधिकार है कि वो शिकायतों के बाद आरोपियों को खुद दण्डित करे। आचार संहिता के मामले चुनाव आयोग ही सुनता है, उसकी सुनवाई भी खुद करता है और उसका निपटारा भी खुद करता है। यानि किसी को दण्डित करने या दोषमुक्त करने के लिए चुनाव आयोग को ही जिम्मेदार माना जाएगा। अब इतनी बड़ी जिम्मेदारी है, तो उसका निर्वहन भी निष्पक्ष तरीके से होना चाहिए। ऊपर अलग- अलग दलों के नेताओं का उदाहरण है, जिनके आधार पर यह कहा जा सकता है कि चुनाव आयोग किसी एक पार्टी का समर्थक नहीं है और पंच परमेश्वर की तरह ही न्याय कर रहा है। चूंकि उसे यह गहन-गंभीर जिम्मेदारी निभानी है, तो वह आनन-फनन में किसी शिकायत पर फैसला भी नहीं ले सकता। भले ही आजम खां या रोजगार की बढ़ती मायावती पर कार्रवाई में उसने वक्त नहीं लगाया, लेकिन भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफशिकायत पर तो पूरे एक महीने बाद ही उसने फैसला सुनाया है। चुनाव आयोग के इस फैसले को क्लीन चिट कहा जा रहा हैगौरतलब है कि महाराष्ट्र के वर्धा में 1 अप्रैल को मोदीजी ने राहुल गांधी के वायनाड से चुनाव लड़ने पर कहा था - अब कांग्रेस भी समझ रही है कि देश ने उसे सजा देने का मन बना लिया है। उनके नेता अब मैदान छोड़ कर भागने लगे हैं। आतंकवादी हिंदू की सजा उनको मिल चुकी है और इसलिए भाग कर के जहां देश का बहुसंख्यक अल्पसंख्यक में है, वहां शरण लेने के लिए मजबूर हो गए हैं। आचार संहिता कहती है कि कोई भी दल ऐसा काम न करे, जिससे जातियों और धार्मिक या भाषाई समुदायों के बीच मतभेद बढ़े या घृणा फैले। यह निर्देश भी है कि राजनीतिक दल ऐसी कोई भी अपील जारी नहीं करेंगे, जिससे किसी की धार्मिक या जातीय भावनाएं आहत होती हों। इस आधार पर विश्लेषण करें तो अपने भाषण में हिंदू आतंकवाद, अल्पसंख्यक, बहुसंख्यक का जिक्र आचार संहिता को तार-तार करता नजर आता है। इसलिए मोदीजी के खिलाफ शिकायत भी हुई, जिसकी महीना भर लंबी जांच के बाद चुनाव आयोग को इस भाषण में कुछ आपत्तिजनक नहीं लगाभारत की एक जिम्मेदार संवैधानिक संस्था की कर्तव्यपरायणता पर सवाल उठे यह अच्छा नहीं लगता, इसलिए भारत के जिम्मेदार नागरिकों को यह मान लेना चाहिए कि चुनाव आयोग ने मोदीजी को दूध-भात जैसी छूट दे रखी है। जैसे बहुत सारे बच्चे मिलकर कोई कठिन खेल खेलते हैं, तो उसमें अक्सर छोटे बच्चों की दूध-भात होती है, यानी खेल में वे कोई गलती करें तो भी बाहर नहीं होते हैं, न उन्हें कोई आउट कर सकता है, न दाम देने कह सकता है और इस छूट के बावजूद वे खेल का हिस्सा बने रहते हैं, मोदीजी के खिलाफ कोई एक शिकायत नहीं है, बल्कि 6 अप्रैल को नांदेड में उन्होंने वर्धा वाला बयान दोहाराया, 9 अप्रैल को लातूर में बालाकोट, पुलवामा के नाम पर वोट देने की अपील की, 21 अप्रैल को गुजरात के पाटन में कत्ल की रात जैसे शब्द का इस्तेमाल पाकिस्तान के लिए किया, राजस्थान के बाड़मेर में न्यूक्लियर बटन वाला बयान दिया, तीन दिन पहले पबंगाल में खुलेआम विधायकों खरीद-फरोख्त की बात की और इनके अलावा अपने साक्षात्कारों में वे सेना का जिक्र कर ही रहे हैं। इनके खिलाफ शिकायतें चुनाव आयोग तक पहुंची हैं, लेकिन पहली शिकायत की तरह अगर इनकी जांच में भी महीना निकल जाएगा, तो फि शिकायत का अर्थ ही क्या रहेगा। वैसे सामान्य आदमी की समझ में तो ये सब आचार संहिता का उल्लंघन है, जिसके लिए मोदीजी पर कार्रवाई होनी चाहिएलेकिन चुनाव आयोग सामान्य नहीं है, वह खास है और खास लोगों के, खास लोगों के लिए फैसले खास होते हैं। उम्मीद यही है कि मोदीजी को फिर दूध-भात की छूट मिल जाएगी।