प्रज्ञा के बहाने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश

प्रज्ञा के बहाने सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की कोशिश



 अब प्रयोग का नहीं बल्कि पिछले 3 दशकों से जारी बहुसंख्यक ध्रुवीकरण को अमल में लाकर नतीजे हासिल करने का दौर है। भोपाल से प्रज्ञा ठाकुर उर्फ साध्वी प्रज्ञा इसी रणनीति के तहत सोच समझकर दिग्विजय सिंह के खिलाफ चुनाव में उतारी गई हैं। साध्वी प्रज्ञा की लोकसभा दावेदारी को अनायास कहना उचित नहीं होगा। साध्वी के बहाने भाजपा अपने वास्तविक एजेंडे के साथ खुलकर सीधे-सीधे आर-पार की लड़ाई के लिए शंखनाद कर रही है। अपने प्रारंभिक काल से ही संघ अखंड हिन्दू भारत की स्थापना के लिए प्रतिबद्ध है। इसे साकार करने आजादी के पश्चात जनसंघ और फि भाजपा का गठन एक दूरगामी रणनीति के तहत ही किया गया। यह एक लंबी प्रक्रिया का हिस्सा है जिसमें विगत दो- तीन दशकों के दौरान सत्ता पक्ष के कद्दावर नेता भी प्रज्ञा, असीमानन्द कर्नल पुरोहित और बाबू बजरंगी जैसे लोगों के साथ खुलकर खड़े नजर आते हैं। विशेष रूप से 2014 में पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने के बाद तो भाजपा ने सब कुछ खोलकर रख दिया है। अल्प संख्यक ही नहीं बल्कि सेक्युलर व तर्कशील समाज के खिलाफ भी अब सीधे-सीधे कत्लो गारद और खात्मे का खेल शुरु हो चुका है। कलबुर्गी, गौरी लंकेश इसी हमलावर व आक्रामक होते खेल का हिस्सा है। इसे समझने के लिए यह समझना होगा कि तीन चौथाई बहुमत आने के बाद भी उत्तर प्रदेश की बागडोर योगी आदित्यनाथ को सौंप दी जाती है और पूरी उत्तर प्रदेश भाजपा में कोई हलचल नहीं होती। यह उसी एजेंडे के तहत किया जाता है। साध्वी प्रज्ञा की दावेदारी भी उसी का विस्तार है। प्रज्ञा ठाकुर और योगी आदित्यनाथ की राजनीतिक शैली और भाषा में बड़ा फर्क है। प्रज्ञा अभी उतनी परिपक्व व माहिर नहीं हुई हैं मगर उसके सबसे आगे रहते हैं बल्कि वे इस बहाने इस एजेंडे के आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता लेकिन मुसलमान • पीछे खड़ी ताकतें पूरी कमान अपने हाथों में रख बड़ी विस्तार में सबसे आगे दिखाई देते हैं। उन्होंने अपनी आतंकी होते हैं, और ये तब तक दोषी रहते हैं जब अब प्रयोग का नहीं बल्कि पिछले 3 दशकों से चतुराई से चाल चल रही हैं। दूसरी ओर योगी एक रैली में यह घोषणा की थी कि हिन्दू कभी तक निर्दोष नहीं साबित हो जातेप्रज्ञा की जारी बहुसंख्यक ध्रुवीकरण को अमल में लाकर आदित्यनाथ एक सुलझे हुए और परिपक्व हिन्दू गौरव आतंकवादी नहीं हो सकता है जो साध्वी प्रज्ञा की उम्मीदवारी फ्लिहाल भारतीय मुख्यधारा में तेजी से नतीजे हासिल करने का दौर है। भोपाल से प्रज्ञा ठाकुर की तरह सबसे बड़े हिन्दी प्रदेश में आक्रामक शैली दावेदारी को न्यायोचित ठहराने की पुष्टि करने के पांव पसारती सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति उर्फ साध्वी प्रज्ञा इसी रणनीति के तहत सोच समझकर में काम कर रहे हैं। नरेन्द्र मोदी की बढ़ती उम्र और लिए दिया गया बयान ही है। नरेन्द्र मोदी और भाजपा का ही हिस्सा कहा जा सकता है। गौरतलब है कि दिग्विजय सिंह के खिलाफ चुनाव में उतारी गई हैं। घटती लोकप्रियता के विकल्प के रूप में योगी को के विकास का चोला उतर चुका है। भाजपा के समाज का बहुत बड़ा हिस्सा इससे असहज महसूस साध्वी प्रज्ञा की लोकसभा दावेदारी को अनायास सुनियोजित रणनीति के तहत आगे लाया जा रहा है। संकल्प पत्र में विकास पर हावी हो चुके हिंदुत्व के नहीं करता है इसके उलट समाज के बड़े तबके द्वारा कहना उचित नहीं होगा। साध्वी के बहाने भाजपा हिंदू या भगवा आतंकवाद की थ्योरी के जनक मुख्य इस खतरनाक बहुसंख्यक झवीकरण के एजेंडे को अब धीरे-धीरे इस एजेंडे को स्वीकार भी किया जाने अपने वास्तविक एजेंडे के साथ खुलकर सीधे-सीधे रूप से दिग्विजय सिंह ही रहे हैं। दिग्विजय सिंह ने समझना होगा। साध्वी प्रज्ञा की उम्मीदवारी ने लगा है। इसी अवधारणा को पुख्ता करने और आर-पार की लड़ाई के लिए शंखनाद कर रही है। खूब नमक-मिर्च लगाकर हिंदू आतंकवाद के मुद्दे को हालांकि इस बहस को नए आयाम भी दे दिए हैंसांप्रदायिक विभाजन की लकीर को साफ तौर पर अपने प्रारंभिक काल से ही संघ अखंड हिन्दू भारत देश की जनता के सामने रखा। उन्हीं ने हिन्दू या भारत में पिछले पांच साल में हुई लिंचिंग की सामने लाने के लिए ही प्रज्ञा को उतारा गया है। प्रज्ञा की स्थापना के लिए प्रतिबद्ध है। इसे साकार करने भगवा आतंक के आख्यान को देश में फैलाया। यह घटनाओं में सिर्फ अल्पसंख्यक वर्ग को ही निशाना की दावेदारी साफ तौर पर भाजपा की भविष्य के आजादी के पश्चात जनसंघ और फि भाजपा का गठन स्पष्ट है कि दिग्विजय सिंह और कांग्रेस ने इस मुद्दे बनाया गया है। गौरतलब है कि प्रधानमंत्री ने भूले से राजनैतिक एजेंडे को उजागर करती है। इसके साथ एक दूरगामी रणनीति के तहत ही किया गया। यह को ब्रह्मास्त्र की तरह इस्तेमाल कर काफी सुर्खियां भी क्या कभी इन घटनाओं में मारे गए किसी भी ही भाजपा का संकल्प पत्र और भाजपा के कई एक लंबी प्रक्रिया का हिस्सा है जिसमें विगत दो- बटोरीं। दिग्विजय के इसी एजेण्डे के चलते भाजपा व्यक्ति के लिए कोई सहानुभूति प्रकट की या संवेदना हालिया बयान इस बात की ओर स्पष्ट इशारा करते हैं तीन दशकों के दौरान सत्ता पक्ष के कद्दावर नेता भी कई मौकों पर असहज होती रही और हमेशा परेशानी के दो शब्द कहे? एक ओर मुस्लिम-विरोधी हिंसा कि अगर इन्हें दोबारा सत्ता मिली तो देश में पहले से प्रज्ञा, असीमानन्द कर्नल पुरोहित और बाबू बजरंगी में पड़ती रही और कई मौकों पर पूर्व में भाजपा को के ज्यादातर अभियुक्त अब बाहर हैं साथ ही ऐसे ज्यादा कट्टरपंथी राजनीति देखने को मिलेगीये दौर जैसे लोगों के साथ खुलकर खड़े नजर आते हैं। लगातार सफई देनी पड़ी। उल्लेखनीय बात यह है कि बाकी हमलों के दोषी भी धीरे-धीरे छूट रहे हैं। दूसरी बेशर्म और घोर सांप्रदायिक राजनीति का दौर है और विशेष रूप से 2014 में पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने हिंदू आतंक को लेकर भाजपा को कटघरे में खड़ा ओर आतंकवादी घटनाओं में कई ऐसे मुस्लिम युवा यह चुनाव इसका निर्णय करेगा कि देश का के बाद तो भाजपा ने सब कुछ खोलकर रख दिया करने वाले दिग्विजय सिंह आज भी अपनी कही भी रहे हैं जो अपनी जिंदगी के दस-बीस साल जेल बहुसंख्यक मतदाता किस ओर खड़ा है। 2019 के है। अल्प संख्यक ही नहीं बल्कि सेक्युलर व बातों पर दृढ़ता के साथ जस का तस कायम हैं। में काट कर निर्दोष साबित हुए हैं, यदि कोई विपक्षी चुनावी नतीजे इस बात का फैसला भी करेंगे कि तर्कशील समाज के खिलाफ भी अब सीधे-सीधे भाजपा और संघ परिवार दिग्विजय सिंह के इन दल इनमें से किसी को अपना उम्मीदवार बना ले तो समाज की बहुलतावादी संरचना में दरार कितनी कत्लो गारद और खात्मे का खेल शुरु हो चुका है। आरोपों को भूला नहीं है। इसी के चलते साध्वी प्रज्ञा क्या भाजपा उतनी ही सहजता से उसे स्वीकार कर चौड़ी और गहरी हो चुकी है। ये इस बात को भी तय कलबुर्गी, गौरी लंकेश इसी हमलावर व आक्रामक को दिग्विजय सिंह के खिलाफ मैदान में उतार कर पाएगी जैसे प्रज्ञा ठाकुर को कर रही है जो अब भी करेंगे कि संघ व भाजपा के अखंड हिन्दू भारत की होते खेल का हिस्सा है। इसे समझने के लिए यह एक स्पष्ट बहुसंख्यक ध्रुवीकरण की योजना को अभियुक्त हैं? इसी मुद्दे को गंभीरता से लेते हुए राह कितनी आसान या कठिन हुई है। यह चुनाव समझना होगा कि तीन चौथाई बहुमत आने के बाद अंजाम दिया जा रहा है। यह साफ है कि भोपाल में पीडीपी की अध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर में भाजपा के भारत के अल्पसंख्यकों के सबसे बड़े तबके भी उत्तर प्रदेश की बागडोर योगी आदित्यनाथ को साध्वी प्रज्ञा को लाकर भाजपा ने ध्रुवीकरण का साथ गठबंधन सरकार की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुसलमानों के लिए ही नहीं, बल्कि देश की सौंप दी जाती है और पूरी उत्तर प्रदेश भाजपा में कोई माहौल तैयार किया है जिसका उद्देश्य बहुसंख्यक मुफ्ती ने भाजपा पर तीखा हमला बोलते हुए लिखा बहुलतावादी संस्कृति के लिए भी अब इंसान और हलचल नहीं होती। यह उसी एजेंडे के तहत किया हिंदू वोटों को एक करने के बहाने साध्वी को धर्म कि, मैं एक आतंक के आरोपी को मैदान में उतारती अस्तित्व के संकट की सबसे बड़ी चुनौती के रूप में जाता है। साध्वी प्रज्ञा की दावेदारी भी उसी का और दिग्विजय सिंह को अधर्म का साथ देने वाला हूँ तो आप उस क्रोध की कल्पना करिए। चौनल अब तब्दील हो गया है। अब लड़ाई सरकार बनाने की विस्तार है। प्रज्ञा ठाकुर और योगी आदित्यनाथ की बताना है। यह कोई संयोग नहीं है कि खुद प्रधानमंत्री तक कइयों बहस करवा चुके होते। इन लोगों के नहीं, देश में लोकतंत्र और बहुलतावादी संस्कृति के राजनीतिक शैली और भाषा में बड़ा फर्क है। प्रज्ञा प्रज्ञा की उम्मीदवारी को सही व न्यायोचित ठहराने में अनुसार जब बात भगवा आतंकवाद की आती है तो अस्तित्व को बचाने की है।