ट्रेड वॉर से उपजी चुनौतियां और अवसर 

ट्रेड वॉर से उपजी चुनौतियां और अवसर 



 


 


रुख अमेरिका दुनिया का सबसे ताकतवर देश है। ऐसे में जाहिर तौर पर यदि उसका राष्ट्रपति कोई व्यापक नीतिगत फैसला ले या इस आशय की घोषणा करे तो दुनिया पर उसका जबर्दस्त असर देखने को मिलता है। खासकर मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के दौरान तो यह खूब देखा जा रहा है। ट्रंप अक्सर ऐसी घोषणाएं कर देते हैं, जिनसे दुनिया हैरान रह जाती है। ऐसे फैसलों के लिए कई बार उनकी अपने देश में ही नहीं, बल्कि बाहर भी आलोचना होती है, लेकिन वे बाज नहीं आते। ट्रंप का ऐसा ही एक फैसला है चीन के साथ ट्रेड वॉर का आगाज करना, जिसके तहत वे अमेरिका में आयातित होने वाले ज्यादा से ज्यादा चीनी सामानों पर शुल्क बढ़ाना चाहते हैं। अमेरिका-चीन के मध्य आपसी कारोबार के मसले पर इस बढ़ते तनाव का असर व्यापक है। इसकी वजह से दुनियाभर के शेयर बाजारों में गिरावट का दौर जारी है। एक प्रमुख उभरता बाजार होने के नाते भारत भी इसके प्रभाव से अछूता नहीं रह सकता। हालिया दिनों में भारतीय बाजार अंतरराष्ट्रीय कारकों से बुरी तरह प्रभावित नजर आया। बाजार में गिरावट के चलते निवेशक भी आशंकित हैं। अब आगे चलकर हालात क्या मोड़ लेते हैं, यह कोई नहीं बता सकता। लिहाजा भारत के लिए बेहतर यही होगा कि वह घटनाक्रम पर निगाह रखे और अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा की खातिर दूरदर्शितापूर्ण ढंग से पूरी समझदारी के साथ प्रतिक्रिया दे। यदि नई दिल्ली अक्लमंदी से कदम लेकिन उनकी वार्ता असफल रही और इसके डोनाल्ड ट्रंप अस्थिर मिजाज के व्यक्ति हैं, आगे बढ़ाए तो भारत को इस घटनाक्रम का बाद ट्रंप ने चीन से चेतावनी भरे अंदाज में कहा लिहाजा भारत को यह ख्याल रखना होगा कि अमेरिका दुनिया का सबसे ताकतवर देश है। फयदा मिल सकता है। संयुक्त राष्ट्र की एक कि अगर उसने अभी अमेरिका के साथ व्यापार वह अपनी गरिमा और आत्म-सम्मान को ऐसे में जाहिर तौर पर यदि उसका राष्ट्रपति कोई हालिया रिपोर्ट में भी यह कहा गया है कि भारत समझौता नहीं किया तो उसे खामियाजा भुगतना बरकरार रखते हुए किस तरह उन्हें साध सकता व्यापक नीतिगत फैसला ले या इस आशय की उन चुनिंदा अर्थव्यवस्थाओं में शुमार है, जिन्हें पड़ेगा। ट्रंप यहीं नहीं रुके और बोले कि अगर है, ताकि इन स्थितियों का लाभ लिया जा सके। घोषणा करे तो दुनिया पर उसका जबर्दस्त असर दुनिया की इन दो शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं के मध्य चीन यह सोचता है कि 2020 के बाद हालात गौरतलब है कि ट्रंप खुद एक कारोबारी रहे हैं। देखने को मिलता है। खासकर मौजूदा राष्ट्रपति उभरे व्यापारिक तनाव का लाभ मिल सकता है। बदल जाएंगे तो ऐसा नहीं है। 2020 में मेरे और इस नाते वे एक तगड़े सौदेबाज हैं। वैसे डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के दौरान तो यह खूब हालांकि यह भी है कि चीन के बाद ट्रंप अपनी दूसरे कार्यकाल में चीन के लिए यह व्यापार यह तो तय लगता है कि ट्रेड वॉर जारी रहने की देखा जा रहा है। ट्रंप अक्सर ऐसी घोषणाएं कर निगाह भारत की ओर घुमा सकते हैं, जैसा कि समझौता करना और भी बुरा हो सकता है। वजह से अमेरिका के मुकाबले चीन को कहीं देते हैं, जिनसे दुनिया हैरान रह जाती है। ऐसे उन्होंने कहा भी कि वे इस देश (भारत) को भी बहरहाल यह तो तय है कि उच्च अमेरिकी ज्यादा मार पड़ेगी। यदि इसका कुछ नकारात्मक फैसलों के लिए कई बार उनकी अपने देश में ही उच्च टैरिफकी श्रेणी में देखते हैं। हाल ही में ट्रंप टैरिफ की वजह से चीन का माल महंगा हो प्रभाव अमेरिका पर होता भी है, तो वह मामूली नहीं, बल्कि बाहर भी आलोचना होती है, लेकिन ने 200 अरब डॉलर मूल्य के चीनी सामानों पर सकता है इस संदर्भ में भारत के लिए एक ही होगा। अमेरिका की ओर से चीनी वस्तुओं वे बाज नहीं आते। ट्रंप का ऐसा ही एक फैसला आयात शुल्क 10 फसदी से बढ़ाकर 25 फसदी बेहतर परिदृश्य यह हो सकता है कि कुछ के आयात में जो कटौती होती है, उसकी है चीन के साथ ट्रेड वॉर का आगाज करना, करने की घोषणा की। इन चीनी सामानों में सेक्टर्स में उत्पादन क्षमताओं का रुख चीन से भरपाई के लिए भारतीय निर्यातकों को तैयार जिसके तहत वे अमेरिका में आयातित होने वाले हैंडबैग्स, मछली, कपड़े और फुटवियर के हटकर भारत की ओर हो जाए। अब भारत कैसे रहना होगा। हालांकि इसमें लागत का फैक्टर ज्यादा से ज्यादा चीनी सामानों पर शुल्क बढ़ाना अलावा कुछ अन्य सामग्रियां शामिल हैं। इसके इसका लाभ लेता है और क्या नीति अपनाता है, अहम साबित हो सकता है। इसके अलावा यह चाहते हैं। अमेरिका-चीन के मध्य आपसी अलावा ट्रंप ने चीन से अमेरिका को होने वाले इसका दारोमदार 23 मई के बाद गठित होने भी संभावना है कि चीन होड़ में बने रहने के कारोबार के मसले पर इस बढ़ते तनाव का असर 325 अरब डॉलर के दूसरे आयातों पर भी जल्द वाली नई सरकार पर होगा। इस हेतु जरूरी हुनर लिए अपनी मुद्रा का अवमूल्यन कर सकता है, व्यापक है। इसकी वजह से दुनियाभर के शेयर 25 फसदी शुल्क आरोपित करने की धमकी दी। से लैस श्रमशक्ति, सरकार की जमीन को लेकर जैसा कि उसने 2015 में भी किया था। कुल बाजारों में गिरावट का दौर जारी है। एक प्रमुख ट्रंप का तर्क है कि अमेरिका के साथ चीन का अपनाई जाने वाली नीति, लॉजिस्टिक्स व मिलाकर यही लगता है कि आगे व्यापारिक उभरता बाजार होने के नाते भारत भी इसके व्यापार अधिशेष अनुचित कारोबारी गतिविधियों इंफ्रस्ट्रक़र और मुद्रा की स्थिरता इत्यादि कारक महासंग्राम की स्थितियां बन रही हैं। वैसे चीन प्रभाव से अछूता नहीं रह सकता। हालिया दिनों की वजह से है। अमेरिका चीन पर अमेरिकी अहम होंगे। उत्पादन का आधार चीन से भारत ने भी अमेरिका से मुकाबले के लिए अपनी में भारतीय बाजार अंतरराष्ट्रीय कारकों से बुरी फ्र्स से बौद्धिक संपदाओं की चोरी के आरोप अहम बिंदु भी है। अमेरिका द्वारा टैरिफ बढ़ाए के विस्तार को कमजोर करने में अमेरिका-चीन की ओर खिसकने के लिहाज से इन चीजों का आस्तीन में कुछ पत्ते छुपा रखे होंगे। लेकिन तरह प्रभावित नजर आया। बाजार में गिरावट के भी लगा चुका है। उसकी कुछ आलोचनाएं जाने पर चीन की ओर से भी जरूरी जवाबी के मध्य व्यपार तनाव का भी योगदान रहा। इस ध्यान रखना होगा। इस उत्पादन आधार के अब तक तो लगता यही है कि पहला राउंड ट्रंप चलते निवेशक भी आशंकित हैं। अब आगे जायज कही जा सकती हैं और इस संदर्भ में ट्रंप कार्रवाई की बात कही जा रही है। इस संदर्भ में वजह से आईएमएफने अपने 2019 के वैश्विक खिसकने में अमेरिका के साथ भारत के संबंध के पक्ष में गया है जो अपने डेमोक्रेट पूर्ववर्तियों चलकर हालात क्या मोड़ लेते हैं, यह कोई नहीं का तर्क है कि भले ही उनके पूर्ववर्ती इन चीजों अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की विकास पूर्वानुमान को भी घटा दिया। बहरहाल, भी अहम साबित होंगे, लेकिन हम इसी के की नाकामियों को प्रोजेक्ट करते हुए यह बता सकता। लिहाजा भारत के लिए बेहतर यही की ओर आंखें मूंदे रहे हों, लेकिन वे ऐसा नहीं चेतावनी भी गौरतलब है, जिसने कहा कि हाल ही में जब अमेरिका और चीन के भरोसे भी नहीं बैठ सकते। आर्थिक निर्णय दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि किस तरह होगा कि वह घटनाक्रम पर निगाह रखे और करेंगे। ऐसे में अमेरिका चीन के साथ बढ़ते अमेरिका व चीन के मध्य गहराता व्यापार तनाव वार्ताकार इस मुद्दे पर किसी समझौते तक काफ हद तक व्यावहारिक आर्थिक तक पर उनके कार्यकाल में अमेरिकी हितों की बलि अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा की खातिर व्यापार घाटे को कम करने की पूरी कोशिश कर वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए गंभीर खतरा है। पहुंचने की मंशा से चर्चा के लिए बैठे तो ट्रेड टिके होते हैं और ऊपर जो बातें कही गई हैं, वे चढ़ी और चीन लाभ की स्थिति में रहादूरदर्शितापूर्ण ढंग से पूरी समझदारी के साथ रहा है और यही ट्रंप की आर्थिक नीतियों का एक आईएमएफ का तर्क है कि वैश्विक अर्थव्यवस्था वॉर के खत्म होने की कुछ उम्मीद जगी। भी निस्संदेह अहम होंगी। लेकिन चूंकि डोनाल्ड ट्रंप अस्थिर मिजाज के व्यक्ति हैं, लिहाजा भारत को यह ख्याल रखना होगा कि वह अपनी गरिमा और आत्म-सम्मान को बरकरार रखते हुए किस तरह उन्हें साध सकता है, ताकि इन स्थितियों का लाभ लिया जा सके। गौरतलब है कि ट्रंप खुद एक कारोबारी रहे हैं। और इस नाते वे एक तगड़े सौदेबाज हैं। वैसे यह तो तय लगता है कि ट्रेड वॉर जारी रहने की वजह से अमेरिका के मुकाबले चीन को कहीं ज्यादा मार पड़ेगी। यदि इसका कुछ नकारात्मक प्रभाव अमेरिका पर होता भी है, तो वह मामूली ही होगा। अमेरिका की ओर से चीनी वस्तुओं के आयात में जो कटौती होती है, उसकी भरपाई के लिए भारतीय निर्यातकों को तैयार रहना होगा। हालांकि इसमें लागत का फैक्टर अहम साबित हो सकता है। इसके अलावा यह भी संभावना है कि चीन होड़ में बने रहने के लिए अपनी मुद्रा का अवमूल्यन कर सकता है, जैसा कि उसने 2015 में भी किया था। कुल मिलाकर यही लगता है कि आगे व्यापारिक महासंग्राम की स्थितियां बन रही हैं। वैसे चीन ने भी अमेरिका से मुकाबले के लिए अपनी आस्तीन में कुछ पत्ते छुपा रखे होंगे। लेकिन अब तक तो लगता यही है कि पहला राउंड ट्रंप के पक्ष में गया है जो अपने डेमोक्रेट पूर्ववर्तियों की नाकामियों को प्रोजेक्ट करते हुए यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि किस तरह उनके कार्यकाल में अमेरिकी हितों की बलि चढ़ी और चीन लाभ की स्थिति में रहा.