कश्मीर को अब मिलेगा न्याय- राकेश सिंह


                भोपाल। अनुच्छेद 370 और 35 ए जम्मू-कश्मीर के देश की मुख्यधारा में शामिल होने की राह में सबसे बड़ी बाधा थी। एक देश, दो संविधान और दो निशान वाली व्यवस्था अतार्किक ही नहीं, बल्कि असंवैधानिक भी थी।  नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने देश से किए गए अपने वादे को निभाते हुए अनुच्छेद 370 और 35 ए को हटाने का जो निर्णय लिया है, वह स्वागत योग्य है और इससे जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख दोनों ही राज्यों के विकास का रास्ता साफ होगा। भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष राकेश सिंह ने केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 एवं 35ए को हटाने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कही। 


कश्मीर के विलय की शर्त नहीं थी 370


                प्रदेश अध्यक्ष सिंह ने अनुच्छेद 370 और 35ए को जम्मू-कश्मीर के भारत के साथ रिश्ते की डोर बताए जाने पर विपक्षी दलों की भर्त्सना करते हुए कहा कि जम्मू-कश्मीर का भारत में विलय 1947 में हुआ था और उस समय न 370 थी और न ही 35ए। विलय के दो साल बाद यानी 1949 में अनुच्छेद 370 का प्रावधान किया गया, जबकि संविधान के निर्माण में मुख्य भूमिका निबाहने वाले डॉ. भीमराव अंबेडकर इसके पक्ष में नहीं थे। इसे संसद में संक्षिप्त चर्चा के उपरांत अस्थायी उपबंध के रूप में पं. जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने जोड़ा। उन्होंने कहा कि आजादी के 7 साल बाद 1954 में अनुच्छेद 35ए को अनुच्छेद 368 का उल्लंघन करते हुए बिना संसद के सामने पेश किए संविधान में जोड़कर कश्मीर को शेष भारत के साथ कभी न जुड़ने देने की पुख्ता व्यवस्था कर दी गई। सिंह ने कहा कि इन दोनों अनुच्छेदों को जोड़ने वाली कांग्रेस सरकार न जम्मू-कश्मीर का भला चाहती थी और न देश का। बल्कि उसके मानस में सिर्फ अपने और जम्मू-कश्मीर के कुछ रसूखदार राजनीतिक परिवारों के हितों की रक्षा का विचार था।


सामाजिक अन्याय की वजह थे 370 और 35


                 सिंह ने कहा कि संविधान में अस्थायी उपबंध के तौर पर जोड़ी गई 370 और 35ए को तुच्छ राजनीतिक स्वार्थों के कारण कांग्रेस सरकारों ने न सिर्फ चलने दिया, बल्कि उन्हें कश्मीरियों का विशेषाधिकार बना दिया। वास्तव में ये दोनों ही अनुच्छेद जम्मू-कश्मीर में सामाजिक अन्याय की वजह बन गए थे, जिनके अमानवीय दुष्परिणाम देश के अन्य हिस्सों से यहां आकर बसे लोगों को कई पीढ़ियों झेलना पड़ रहे थे। सिंह ने कहा कि क्या यह अन्याय नहीं था कि राज्य से बाहर शादी करने वाले बेटे की संतानों को तो पूरा हक मिले, लेकिन बेटी की संतानों को वहां का नागरिक भी न माना जाए? क्या ये अन्याय नहीं था कि सालों पहले पंजाब से सरकार के बुलावे पर जम्मू-कश्मीर गए वाल्मीकि समाज के लोगों से तरक्की का हक छीनकर उन्हें सिर्फ सफाई करने पर मजबूर किया जाए? क्या यह अन्याय नहीं था कि पाक अधिकृत कश्मीर और अन्य हिस्सों से 1947 में और उसके बाद आए शरणार्थियों से दोयम दर्जें का व्यवहार किया जाए ? क्या यह अन्याय नहीं था कि राज्य के अनुसूचित जाति, जनजाति एवं अल्पसंख्यक वर्ग के लोगों को आरक्षण से वंचित किया जाए ?  सिंह ने नरेंद्र मोदी और अमित शाह को धन्यवाद देते हुए कहा उनकी सरकार के एक निर्णय ने जम्मू-कश्मीर राज्य के लाखों को पूरे सम्मान से जीने का हक प्रदान किया है।


हास्यास्पद और असंवैधानिक थे दोनों अनुच्छेद


                 सिंह ने कहा कि जम्मू-कश्मीर के विलय के बाद संविधान में जोड़े गए अनुच्छेद 370 और 35ए हास्यास्पद ही नहीं, बल्कि असंवैधानिक भी थे। उन्होंने कहा कि देश की सभी विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है, लेकिन जम्मू-कश्मीर विधानसभा कार्यकाल 6 वर्ष का था। देश के सभी राजनीतिक दल इस नारे को दोहराते थे कि कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, लेकिन देश के अन्य हिस्सों के लोग न वहां बस सकते थे, न सरकारी नौकरी कर सकते थे और न ही वोट दे सकते थे। ये कैसा अभिन्न अंग था ? उन्होंने कहा कि देश की संसद जो कानून बनाती थी, वो पूरे देश में लागू हो जाते थे, लेकिन जम्मू-कश्मीर में नहीं होते थे। अभी भी शिक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार, मनी लांड्रिंग विरोधी कानून, कालाधन और भ्रष्टाचार विरोधी कानून उस जम्मू-कश्मीर में लागू नहीं होते, जिसे हम देश का अभिन्न अंग कहते नहीं थकते। सिंह ने कहा कि देश के नागरिकों के बीच भेदभाव पैदा करने वाले ये दोनों अनुच्छेद संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन थे और कानून के समक्ष हर नागरिक की समानता तथा संविधान की मूल रचना के भी खिलाफ थे। अब नरेंद्र मोदी की सरकार ने इन दोनों अनुच्छेदों को हटाने का निर्णय लेकर इस भेदभाव को खत्म कर दिया है और देश के नागरिकों की दशकों पुरानी मांग को पूरा कर दिया है।