शाह के सम्मान में, बंसल कूदे मैदान में


मनोज श्रीवास्तव/लखनऊ।नागरिक संसोधन बिल के समर्थन में आयोजित भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह की रैली को सफल बनाना के लिए उत्तर प्रदेश भाजपा के महामंत्री संगठन सुनील बंसल खुद जनसंपर्क कर रहे हैं। भाजपा दिग्गजों को अब कैडर की उपेक्षा का भाव परेशान करने लगा है। यही कारण है कि अध्य्क्ष निर्वाचित होने के बाद स्वतंत्र देव ने भी कार्यकर्ताओ के लिए कसीदे पढ़े थे।अब बंसल को भी यही कहना और करना पड़ रहा है।माना जा रहा है कि बंसल के जमीन पर उतरने से अभी तक रैली की तैयारी में जो कोई कोर -कसर भी रहा होगा, वह भी ठीक हो जायेगा। अब कार्यकर्ता रैली की सफलता के लिये जी-जान लगा कर कूद जाएगा। दूसरे सोमवार के प्रमुख समाचार पत्रों में इस खबर को जब प्रमुखता से छपेगी तो लखनऊ के 50-50 किलोमीटर तक के कार्यकर्ता एक-एक बूथ से जनसंपर्क साध कर मैदान भर देंगे। CAA को लेकर होने वाली सभी क्षेत्रों की रैलियों की सफलता पर ही पार्टी की प्रदेश इकाई की कार्यकारणी गठन और शेष बचे सरकार के लगभग दो वर्ष के लिए सरकारी निगमों के मनोनयन भी प्रभावित हो सकता है। इस कार्यक्रम में यदि कोई गद्दारी किया और  पार्टी नेतृत्व को कहीं से सही पता चल गया तो दगा करने वाले को पार्टी न सिर्फ बाहर का दरवाजा दिखाएगी बल्कि गद्दारी न करने सबक भी दे सकती है। सूत्रों की मानें तो कुछ उपेक्षित नेताओं द्वारा विश्वासघात करने की सूचना मिली थी। नये प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह स्वयं बूथ स्तर तक मॉनिटरिंग कर रहे हैं। उनका दावा है कि कार्यक्रम की तैयारी बहुत सुव्यवस्थित है, कार्यक्रम सुपरहिट होगा। उन्होंने कहा कि मैं स्वयं जनसंपर्क कर रहा हूँ, जनता का रिस्पॉन्स बहुत अच्छा है। हमारे सभी अनुसांगिक संगठन, विधायकगण, मंत्रीगण और जनप्रतिनिधि जनता में जाकर सीधे संपर्क कर रहे हैं। हम सफलता की नयी इबादत लिखने जा रहे हैं। जबकि भारतीय जनता पार्टी मामलों के जानकार वरिष्ठ पत्रकार विकास कुमार कहना है कि यूपी भाजपा की सरकार का लगभग तीन वर्ष पूरा होने जा रहा है उसके पास सिवा मोदी सरकार की सफल योजनाओं को छोड़ कर प्रदेश सरकार जी और से किये गये कोई ठोस उपलब्धि नहीं है। भाजपा कार्यकर्ता हताश है, 2014 से टिकट देते समय जिताऊ का फार्मूला लगा कर बड़े-बड़े कार्यकर्ताओं को चुनाव लड़ने की प्रक्रिया से बाहर कर दे रही है। इसी कारण 2014 से 2019 तक भाजपा जितने दल-बदलू चुनाव लड़े इतना शायद पहले कभी नहीं लड़े होंगे। सरकार बनने के बाद भी भाजपा कार्यकर्ताओं को सरकार के विभिन्न निगमों आदि कार्यकर्ताओं का समायोजन उस अनुपात में नहीं हुआ जितना कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी व समाजवादी पार्टी अपने कार्यकर्ताओं का कर लेती है। अभी क्या जिस दिन भाजपा हिन्दू-मुस्लिम और देशभक्ति जैसे विषय से हट कर जनता में जायेगी उस दिन कार्यकर्ता नेतृत्व को जवाब देने की प्रतीक्षा में है। उन्होंने कहा कि कार्यकर्ता आधारित संगठन एकाएक कंपनी कल्चर में चलने लगी जिसके कारण समर्पण वाली पीढ़ी खुद की ठगा महसूस कर रही है। कंपनी कल्चर में पुराने कार्यकर्ताओं को किनारे करके अनुभवहीन नेताओं को बड़ी-बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गयी। जिसके चलते युवा नेताओं के साथ-साथ दलबदलू नेताओं का समायोजन हुआ। बताया गया कि वरिष्ठ लोग अनुशासन में नहीं रहते। जबकि मुख्य क्षत्रप को आज्ञाकारी अनुचरों की खेप खड़ी करने  में सफलता मिली। यह खेप आज्ञाकारी मूर्ति के अलावा कभी सवाल नहीं खड़ा करता। विकास कुमार की मानें तो सत्ता जाते ही कंपनी कल्चर के कार्यकर्ता नई सरकार की कंपनी में समायोजित होने की फितरत में सक्रिय हो जाते हैं और भाजपा के समर्पित कार्यकर्ता फिर से परमवैभव का लक्ष्य लेकर सामने दिखते हैं। जिन प्रदेशों में पार्टी सत्ता से गयी वहां के पन्ना प्रमुख अभी तक कोई सफल आंदोलन नहीं खड़ा कर पाये हैं जिसका उदाहरण बताया जा सके। लेकिन जहां सरकार बनती है वहां पन्ना प्रमुख के अदृश्य शक्ति की महिमा प्रकट करके मूल कार्यकर्ताओं को सत्ता से दूर भेजने के कारण ही बड़ों-बड़ो को मैदान में उतरना पड़ रहा है।