आए दिन निजी अस्पताल के धन उगाही और लापरवाही की खबरें आती ही रहती हैं। एक और इलाज में लापरवाही एवं मनमानी का मामला लखनऊ में सामने आया है। लखनऊ की कुसुम हृदय की बीमारी से ग्रस्त थी। उन्हें एक निजी अस्पताल से लखनऊ के अपोलो में एडमिट किया गया था। उनके परिजनों से अपोलो अस्पताल ने मोटा पैसे ऐंठने के बाद भी मरीज को वेंटिलेटर नहीं दिया और वेंटिलेटर की कमी बता कर जबरन मरीज को पीजीआई के लिए भेज दिया। अपोलो अस्पताल की लापरवाही के चलते मरीज की मौत हो गई। पीड़ित के परिवार ने पुलिस से भी मदद मांगी, लेकिन कोई कार्यवाई नहीं हुई।
मृतका की बेटी के अनुसार एक निजी अस्पताल में उनकी मां का इलाज चल रहा था, जहां उनकी हालत स्थिर थी। 3 मई की रात को आईसीयू बंद होने के कारण अस्पताल के डॉक्टरों ने उन्हें अपोलो अस्पताल में ले जाने को कहा । पीड़िता के परिवार ने मरीज को ले जाने से पूर्व ही अपोलो अस्पताल में मरीज की जांचें दिखा कर मरीज की स्थिति और आईसीयू सेवा की जानकारी कर ली थी। लेकिन जब वो अपोलो अस्पताल में अपने मरीज को ले गए तो अस्पताल कर्मियों ने आईसीयू में जगह न होने की बात कही। साथ ही मरीज के इलाज का बिल जमा करने का दवाब बनाना शुरू कर दिया और मरीज को कहीं और ले जाने को कहने लगे ।
कुसुम की बेटी का आरोप है कि अस्पताल प्रशासन ने उन्हें एम्बुलेंस भी नहीं दी और कहा कि सिर्फ मरीज को लाने के लिए ही एम्बुलेंस सेवा उपलब्ध है, कहीं और ले जाने के लिए नहीं। फिर उन्होंने कहीं और से एम्बुलेंस की व्यवस्था की।
जब पीड़िता कुसुम को अपोलो अस्पताल से ले जाया जा रहा था तब अपोलो अस्पताल ने उन्हें ऑक्सीजन भी उपलब्ध नहीं कराया था। अस्पतालकर्मियों (वार्डबॉय व नर्स) ने उनकी चद्दर को हटाने के लिए इतनी जोर से झटका की उनकी सांस उखड़ गई और उन्होंने वहीं दम तोड दिया। उन कर्मियों की संवेदनशीलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की चादर खीचने के दौरान वृद्धा पीड़िता के शरीर पर कोई भी कपड़ा नहीं था ।
धरती पर भगवान का दर्जा दिलाने वाला यह पेशा ऐसे कुछ लोगों के गैरजिम्मेदार रवइये से अपनी विश्वसनीयता खोता जा रहा है।
जब सूर्योदय भारत संवाददाता ने अस्पताल प्रशासन से पक्ष जानने के लिए फोन किया तो उनका फोन नहीं उठा।